25 नवंबर 2025 को भारत ने किस दिशा में कदम रखा?
25 नवंबर 2025—एक तारीख, जो भारत के लोकतंत्र में एक नए अध्याय के रूप में दर्ज की जाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में भव्य आयोजन के बीच धर्म ध्वजा फहराई, और इस घटना ने भारतीय लोकतंत्र के उस चक्र को उल्टी दिशा में घुमा दिया जिसकी शुरुआत ठीक 76 साल पहले 25 नवंबर 1949 को बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने संविधान सभा में अपने ऐतिहासिक भाषण से की थी।
आज का सबसे बड़ा सवाल यही है—जहां से स्वतंत्र भारत और उसके संविधान की स्थापना हुई, 76 साल बाद उसी लोकतंत्र को मोदी सरकार किस दिशा में ले जा रही है?
धर्म ध्वजा और लोकतंत्र: तस्वीर में तिरंगा ग़ायब क्यों?
अयोध्या के इस आयोजन में सबके सामने सबसे चुभने वाली बात थी—तिरंगा की अनुपस्थिति।
धर्म ध्वजा लहरा रहा है और उसके आगे-आगे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत चल रहे हैं। यह दृश्य साफ बताता है कि यह प्रतीक मात्र एक धार्मिक कार्यक्रम का नहीं, बल्कि राजनीति और राज्य की नई दिशा का है।
लोकतांत्रिक राष्ट्र के सबसे महत्वपूर्ण दिवसों में से एक पर, जब प्रधानमंत्री जनता को संबोधित कर रहे हों, और वहाँ संविधान का प्रतीक तिरंगा न हो—यह सिर्फ संयोग नहीं, बल्कि एक संदेश है।
क्या 25 नवंबर 2025 के बाद ‘सेकुलरिज़्म’ पर बहस समाप्त हो गई है?
मोदी जी ने जिस तरह कहा कि यह ध्वजा लोगों को भरोसा देगी, यह खुद बताता है कि आगे का रास्ता कैसा होगा।
संदेश बिलकुल स्पष्ट किया गया है:
अब यह बहस आवश्यक नहीं कि भारत सेकुलर है या नहीं।
धर्म ध्वजा जिस तरह राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में प्रस्तुत की जा रही है, उसे देखकर यह समझना मुश्किल नहीं कि राज्य का चरित्र अब किस दिशा में ढल रहा है।
आंबेडकर की चेतावनियाँ आज ज़मीन पर सच बनकर खड़ी हैं
25 नवंबर 1949 को बाबा साहेब आंबेडकर ने दो स्पष्ट चेतावनियाँ दी थीं—
- सबसे बेहतर संविधान भी बुरे हाथों में पड़कर बुरा साबित हो सकता है।
- नायक पूजा (Hero Worship) लोकतंत्र को खत्म करने के लिए काफी है।
76 साल बाद की यह तस्वीर बताती है कि दोनों चेतावनियाँ आज सच बनकर हमारे सामने खड़ी हैं।
नायक पूजा,
अंधभक्ति,
और राज्य का सांस्कृतिक-धार्मिक रंग—ये तीनों मिलकर भारतीय लोकतंत्र को एक नए ढांचे की ओर धकेल रहे हैं।
हिंदू राष्ट्र की घोषणा नहीं, व्यवहार में स्थापना
RSS का अंतिम संकल्प भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना रहा है।
मोदी जी ने 25 नवंबर 2025 को जो किया, उसने यह स्पष्ट कर दिया कि अब घोषणा की ज़रूरत नहीं, व्यवहार ही सिद्धांत है।
धर्म ध्वजा—जो अब राज्य के सर्वोच्च राजनीतिक पदधारी द्वारा फहराई जा रही है—भारत की नागरिक समानता, संवैधानिक तटस्थता और धर्मनिरपेक्ष राज्य की अवधारणा को चुनौती दे रही है।
वीडियो और घटनाओं की पृष्ठभूमि: पहले से बन चुकी थी जमीन
मोदी जी के ध्वजा फहराने से पहले भी देश में ऐसे अनगिनत वीडियो सामने आ चुके हैं जिसमें सबसे बड़ी धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय को जबरन ‘जय श्री राम’ के नारे लगवाए जा रहे हैं।
यह देश में बढ़ रही धमकाने वाली धार्मिक राजनीति का सबूत है।
पत्रकार सुहासिनी हैदर ने आंदोलन का एक महत्वपूर्ण पक्ष उजागर किया—
जब सरकारी आदेशों के बावजूद दूसरे धर्मस्थलों पर तिरंगा नहीं लगाया जाता, तब भगवा लहराया जाता है।
हमारा झंडा, हमारा राष्ट्रीय प्रतीक, धर्म से ऊपर होना चाहिए था—लेकिन आज वह भी प्रतिस्थापित किया जा रहा है।
क्या मोदी जी ने भारत का ‘धर्म’ तय कर दिया है?
मोदी जी का यह कहना कि धर्म ध्वजा लोगों को न्याय का भरोसा देगी, अनेक गंभीर सवाल उठाता है—
- क्या न्याय का आधार अब संविधान नहीं, धर्म होगा?
- क्या यह संदेश है कि राज्य अब धार्मिक पहचान से ही नागरिकों को सुरक्षा महसूस कराएगा?
- क्या अब भारत में न्याय और नागरिक अधिकार धार्मिक पहचान से तय होंगे?
और यह सब उस मंदिर पर आयोजित कार्यक्रम में हुआ जिसके बारे में हम जानते हैं कि उसके पहले वहाँ क्या था, कैसे संघर्ष हुआ और किस तरह एक मस्जिद को ढहाकर रास्ता तैयार किया गया।
जब प्रधानमंत्री स्वयं बाबरी मस्जिद गिराने वालों को वीर बताते हैं, तो यह केवल इतिहास की व्याख्या नहीं—नई राष्ट्रीय पहचान का कार्यक्रम होता है।
धार्मिक भेदभाव की नई राजनीति: जम्मू-कश्मीर से उदाहरण
जम्मू-कश्मीर के मुख्य मंत्री उमर अब्दुल्ला का रोष भी इसी संदर्भ से उपजा—
वैष्णो देवी संस्थान में मुस्लिम छात्रों के दाखिले पर हुए हंगामे को लेकर उन्होंने सवाल उठाया:
धर्म के आधार पर एडमिशन पॉलिसी कब से लागू है?
लेकिन आज जो माहौल है, उसमें ऐसे सवालों का स्पेस कितना बचा है?
क्या 25 नवंबर 2025 के बाद चिंताओं, सवालों, आलोचनाओं और असहमति के लिए कोई जगह बचेगी?
मोदी जी का ‘नया भारत’: संविधान को प्रणाम और धार्मिक राज्य की घोषणा?
समारोह की अंतिम तस्वीरें भारत के द्वंद्व को सामने ला देती हैं—
एक ओर मोदी जी संविधान के आगे सिर झुका रहे हैं,
और दूसरी ओर धर्म ध्वजा फहराकर यह बता रहे हैं कि भविष्य किस रंग में रंगा होगा।
यह वही विरोधाभास है जहाँ से लोकतंत्र का रिवर्स चक्र शुरू होता है।
मोदी जी के नए भारत में आपका स्वागत है—जहाँ धर्म ध्वजा नई राष्ट्रीय पहचान है, और संविधान अपने ही घर में पराया होता जा रहा है।
