October 6, 2025 8:15 am
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हमारे बारे में

बेबाक भाषा – The Fearless Voice

बेबाक भाषा एक निडर, स्वतंत्र और वैकल्पिक ऑनलाइन मंच है, जो सामाजिक न्याय, संविधान, पर्यावरण और हाशिये की आवाज़ों पर केंद्रित जनपक्षधर लेखन को प्राथमिकता देता है। यह मंच सत्ता और बाजार के प्रभाव से परे, आम जन के संघर्षों, अनुभवों और विचारों को दर्ज करने के लिए समर्पित है।

हमारा मानना है कि लोकतंत्र सिर्फ सूचना से नहीं, बल्कि सवालों, बहसों और निर्भीक अभिव्यक्ति से मजबूत होता है। बेबाक भाषा इसी सोच से जन्मा एक ऐसा मंच है जहाँ बिना किसी डर या दबाव के संवेदनशील, विवेकपूर्ण और समाज-सापेक्ष लेखन को स्थान दिया जाता है।

हम कैसे काम करते हैं

बेबाक भाषा एक सामुदायिक मंच है, जहाँ कोई भी लेखक अपने विचार और अनुभव साझा कर सकता है, बशर्ते वे सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और जन सरोकार से जुड़े हों।
यह मंच पूरी तरह अव्यावसायिक और स्वतंत्र है। सभी संपादक और लेखक स्वेच्छा से व निःशुल्क योगदान करते हैं।
रचनाएं bebaakbhasha@gmail.com पर भेजी जा सकती हैं। लेखों का प्रकाशन सामग्री की प्रासंगिकता और संपादकीय विवेक पर निर्भर करता है।
प्रकाशित लेखों की लिंक लेखकों को मेल द्वारा भेजी जाती है।
लेखकों को अपने लेखों का पूर्ण अधिकार है; वे चाहें तो उसे अन्यत्र भी प्रकाशित कर सकते हैं।

हमारी प्रमुख श्रेणियाँ

हम विविध विषयों को बेहतर ढंग से प्रस्तुत करने के लिए लेखों को निम्न श्रेणियों में वर्गीकृत करते हैं:

देशकाल – समकालीन राजनीतिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य।
दुनियाभर की – वैश्विक मुद्दे और अंतरराष्ट्रीय राजनीति।
रोज़नामा – आम जनजीवन और अनुभव आधारित लेख।
ज़मीनी ताप – आंदोलन, प्रतिरोध और जमीनी स्तर की रिपोर्टिंग।
संविधान के लेंस से – संवैधानिक मूल्य, अधिकार और न्याय से जुड़ी बातें।
गुफ़्तगू – संवाद, साक्षात्कार और विचारों की खुली चर्चा।
हाशिये की आवाज़ – दलित, आदिवासी, महिलाओं, अल्पसंख्यकों और LGBTQ+ समुदाय की आवाज़।
समाज-संस्कृति – सामाजिक बदलाव, परंपराएं और सांस्कृतिक विमर्श।
आबोहवा – पर्यावरण, जलवायु संकट और सतत विकास।
ज़िंदगी का विज्ञान – विज्ञान, स्वास्थ्य, तकनीक और जीवनशैली।

संस्थापक के शब्दों में

बेबाक भाषा की नींव रखने वाली लेखिका और वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह का उद्देश्य हमेशा से यही रहा है — उन आवाज़ों को जगह देना जिन्हें मुख्यधारा मीडिया अक्सर नजरअंदाज कर देता है। उनका मानना है कि लेखन सिर्फ अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव का एक ज़रूरी औज़ार है।

संस्थापक का परिचय

1971 में दिल्ली में जन्म, शिक्षा लखनऊ से प्राप्त।
1996 से पत्रकारिता में सक्रिय।
अमर उजाला, नवभारत टाइम्स, आउटलुक, नई दुनिया, नेशनल हेराल्ड, न्यूज़क्लिक जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में कार्य।
मैला ढोने जैसी अमानवीय प्रथा पर गहन रिपोर्टिंग और शोध।
दलितों, अल्पसंख्यकों, लैंगिक मुद्दों और हाशिए पर मौजूद समुदायों पर सतत लेखन।
2005 – प्रभा दत्त संस्कृति फ़ेलोशिप
2007 – रामनाथ गोयनका पुरस्कार (प्रिंट, हिंदी) – वर्ष की सर्वश्रेष्ठ पत्रकार
अन्य फ़ेलोशिप्स – NFI, Panos, PARI
तीन पुस्तकों की लेखिका: ‘अनसीन (अदृश्य भारत)’, ‘शाहीन बाग: लोकतंत्र की नई करवट’, योनि-सत्ता संवाद (कविता संग्रह)

बेबाक भाषा न केवल एक वैकल्पिक मंच है, बल्कि यह एक आंदोलन है — विचारों को मुक्त और ज़िम्मेदार ढंग से रखने का। यह उन सभी के लिए है, जो बोलने और सुनने का साहस रखते हैं।

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