लाल किला विस्फोट के 12 घंटे बाद ही विदेश निकले PM, देश को जवाब कौन देगा
देश की राजधानी दिल्ली में हुए उस भयंकर बम धमाके ने 13 मासूमों की जान ले ली। ऐसी त्रासदी के अगले दिन — जब राष्ट्रीय सुरक्षा, सघन जांच और जवाबदेही की बात सबसे जरूरी थी — प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भूटान के लिए प्रस्थान कर गए और वहां भूटान नरेश के जन्मदिन के कार्यक्रम में शामिल हुए। यह वही वक्त था जब दिल्ली पुलिस-व इंटेलिजेंस रिपोर्टों और गृह मंत्रालय से जुड़े सवालों का जवाब आम जनता के पास होना चाहिए था। सवाल सरल है: क्या देश की सुरक्षा संकट में होने पर भी सबसे ऊपर बैठे लोग विदेश जाकर जश्न मनाना तर्कसंगत है?
सवाल जो 140 करोड़ लोग पूछने के हक़दार हैं
जब देश की राजधानी पर आतंक का साया हो, चोटिल परिवारों को सांत्वना देने, त्वरित जांच का ऑर्डर देने और नागरिकों को आश्वस्त करने की ज़िम्मेदारी सबसे ऊपर की प्राथमिकता होनी चाहिए। पर हमें क्या मिला? एक ट्वीट, थोड़ी-सी सहानुभूति भरी लाइनें और वह भी भूटान में पत्रकारों व जनता के समक्ष। क्या यही पूरा उत्तर है जब सुरक्षा में बड़ी चूक हुई हो?
ऐतिहासिक संदर्भ भी मायने रखता है। मुंबई बम धमाकों के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने घटनास्थल का दौरा किया, मीडिया को विस्तृत जानकारी दी और गृह मंत्री की जवाबदेही पर बहस हुई — यहां यह समझना कठिन है कि समान संकट में इतनी अलग प्रतिक्रिया क्यों दी जा रही है। जब गृह मंत्री अमित शाह से ही सुरक्षा-व इंटेलिजेंस की रिपोर्ट जुड़ी होती हैं, तब आमजन का भरोसा टूटता है कि क्या राज्य मशीनरी निष्पक्ष और सक्रिय है।
जिम्मेदारी और जवाबदेही — कौन दे रहा है जवाब?
गृह मंत्री और प्रधानमंत्री से सीधे सवाल उठते हैं — क्या इंटेलिजेंस विफल रही, अथवा उसे नजरअंदाज किया गया? सुरक्षा व्यवस्था में जो चूकें हुईं, उनका लेखा-जोखा जनता के सामने होना चाहिए। अगर किसी ने भी दोषियों का नाम लिया है या गिरफ्तारी हुई है, वह भी पारदर्शी तरीके से साझा किया जाना चाहिए। केवल आश्वासन देने और विदेश यात्रा करना बहुत से लोगों के लिए पर्याप्त नहीं है — खासकर तब जब वे अपने प्रियजनों को खो चुके हों।
राजनीतिक भाषण और सुरक्षा — प्राथमिकता किसकी?
चुनावी रैलियों और राजनीतिक भाषणों के बीच सुरक्षा पर ध्यान देना ही सरकार की मूल जिम्मेदारी है। पर पिछले कुछ महीनों में हुई घटनाओं की श्रंखला यह संकेत देती है कि सुरक्षा रणनीति पर गंभीर प्रश्न उठते हैं। क्या राजनीतिक व्यस्तताओं के कारण सुरक्षा को प्राथमिकता से हटाया जा रहा है? जनता को यह जानने का अधिकार है कि उनके जीवन और शहर की सुरक्षा किसके हाथों में है और उस सुरक्षा का स्तर क्या है।
नफ़रत और विभाजन — कौन और क्यों भड़काता है?
आकस्मिक घटनाओं के बाद अक्सर विभाजनकारी भाषणों और नफ़रती बयानबाज़ी का सामाजिक असर बढ़ जाता है। ऐसे वक्त में नेताओं और समाज के प्रभावशाली तबकों की ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है कि वे संयम बरतें, तथ्यों को साझा करें और अफ़वाहों से बचें। बिना प्रमाण के किसी देश या समुदाय का नाम लेना, या किसी को बिना जांच के दोषी ठहराना राष्ट्र-निर्माण के विरुद्ध है।
निष्कर्ष — जवाब की मांग जायज़ है
यह मांग न तो राजनीतिक न तो व्यक्तिगत है — यह नागरिकों का मूल अधिकार है। जब उनका जीवन खतरे में होता है, तो शासन से पारदर्शिता, सक्रियता और तत्काल कार्रवाई की अपेक्षा रखना स्वाभाविक है। विदेश यात्रा और सार्वजनिक कार्यक्रम जीवन का हिस्सा हो सकते हैं, पर संकट में प्राथमिकता क्या है — यह हर नागरिक, हर परिवार और पूरे देश को जानने का अधिकार है। सरकार को इस सवाल का ठोस, पारदर्शी और जवाबदेह जवाब देना चाहिए।
