बिहार के इतिहास के रिकॉर्ड मतदान के बाद किसके हाथ लगेगी बाजी
बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण की वोटिंग और तुरंत बाद आए एक्जिट-पॉल ने चुनावी परिदृश्य को फिर से उलट-पुलट कर दिया है। शाम तक मिले आँकड़े — जिनमें कई एजेंसियों ने NDA को बड़ा बहुमत दिखाया है — ने सवाल खड़े कर दिए हैं: क्या ये वास्तविक जनता-मूड को बयान कर रहे हैं या फिर ये एक्जिट-पॉल का खेला है जिसे परोसा जा रहा है?
नीचे हम वही बातें और सबूतों की पड़ताल कर रहे हैं जो हमारी लाइव रिपोर्टिंग और जमीन पर मिली तस्वीर से मेल खाती हैं।
रिकॉर्ड और संदिग्ध मतदान — दोनों साथ-साथ
दोपहर तीन बजे तक कुछ जिलों में साढ़े साती-सत्तर प्रतिशत के आस-पास वोटिंग दिखी, जबकि शाम पांच बजे तक की रिपोर्ट बताती है कि वोटिंग 67.1% से बढ़कर 70% तक जा सकती है। किशनगंज के प्राणपूर में 78.89% वोटिंग का दावा भी रिपोर्ट हुआ — यानी रिकॉर्ड हाज़िरी।
पर साथ ही धरती पर मिली तस्वीरें ये भी दिखाती हैं कि कहीं-कहीं:
- लंबी-लंबी कतारें खड़ी कराई गईं,
- बाहरी और प्रवासी मतदाताओं की आवाजाही का रिकॉर्ड मिला,
- कई वीडियो और फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हैं जिनमें एक ही व्यक्ति ने तीन-तीन अलग राज्यों/क्षेत्रों में वोट डाला दिखा दिया गया है।
हमारी रिपोर्टिंग में ऐसे कई वीडियो, सीसीटीवी और गवाहों के बयानों के कारण ये डर/सवाल बनते हैं कि रिकॉर्ड वोटिंग के साथ-साथ फर्जी या प्रभावित मतदान भी संचालित हुआ है।
एक्जिट-पॉल: कंसेंसस या कंस्ट्रक्टेड स्टोरी?
इन्हीं घंटों में सात प्रमुख एक्जिट-पॉल प्रकाशित हुए — जिनमें से अधिकांश ने NDA को स्पष्ट बढ़त दी। कुछ प्रमुख बिंदु:
- सातों में से कई ने NDA को 130-170 सीटों की रेंज दी (243 सीटों की विधानसभा में) — कुछ मामलों में 147–167 तक।
- कुछ पॉल्स (People’s Pulse, Dainik Bhaskar वगैरह) ने NDA को 133–160 की रेंज दिखायी।
- वहीं एक-दो पॉल्स ने थोड़ा कम सीमा दिखाई, और एक-दो ने बिल्कुल अलग चित्र (कमज़ोर NDA) भी दर्शाया — यानी पॉल्स के बीच असहमति भी है।
ऐसा नहीं कि एक्जिट-पॉल का इतिहास साफ है — हरियाणा, महाराष्ट्र और 2024 के लोकसभा के अनुभव में भी एक्जिट-पॉल ने कई बार बड़ी तस्वीर बतायी पर असल चुनावी नतीजे उससे भिन्न निकले। इसलिए सवाल उठता है: क्या इस बार भी एक्जिट-पॉल मीडिया-बायस, फंडिंग और पॉलिटिकल बायस के कारण तस्वीर बना रहे हैं?
दो ‘ट्रंप-कार्ड’ — राशन/नकद और बाहरी मतदाता-मोबिलाइज़ेशन
हमारी बातचीत और जमीन रिपोर्टों के आधार पर दो बड़ी वजहें बतायी जा रही हैं जिनकी वजह से एक्जिट-पॉल की तस्वीर बन रही हो सकती है:
- नकद ट्रांसफर (दो-दस हज़ार) और लक्षित मदद — रिपोर्ट्स कहती हैं कि करोड़ों महिलाओं को सीधे पैसे दिए गये। कई चैनल और विश्लेषक इसे चुनावी असर का सबसे बड़ा कारण बता रहे हैं। सवाल यह है कि क्या ये नकद हस्तांतरण वोट बैंक को प्रभावित करने में निर्णायक रहा?
- प्रवासी/बाहरी मतदाताओं की तैनाती — हरियाणा-से, फरीदाबाद-से ट्रेनें, मजदूरों की आवाजाही और कैमरे पर पकड़ी गयी तस्वीरे — सब यह संकेत देती हैं कि बाहरी मतदाता या व्यवस्थित तौर पर लाये गए वोटर को पोलिंग में शामिल करके परिणामों को मोड़ा गया है। कुछ जगहों पर एक ही शख्स के तीन-तीन जगहों में वोट देने की तस्वीरें भी आईं।
यदि ये दोनों ही चीज़ें बड़े पैमाने पर सच हैं, तो एक्जिट-पॉल में दिखी NDA-सफलता का हिस्सा यही मैकेनिज्म भी बना होगा।
विपक्ष का रुख और महागठबंधन की दलीलें
महागठबंधन-दल अभी भी मानते हैं कि जमीन पर बदलाव की लहर थी: रैलियों में भीड़, जोश और समर्थन दिखा। उनका दावा है कि जो एक्जिट-पॉल के आंकड़े आये हैं, वे गलत/मिटाये गए रियलिटी को दिखाते हैं और असल गिनती में ये झूठ साबित होंगे।
हमारा निष्कर्ष यह है कि दोनों दावों में से कौन-सा सच निकलेगा — यह 12 नवम्बर की काउंटिंग के दिन ही साफ होगा। पर तब तक की तस्वीर बताती है कि बिहार की राजनीति में—लोकतंत्र के संचालन, चुनाव आयोग की जवाबदेही और वोटर-अधिकारों की रक्षा पर—गम्भीर प्रश्न खड़े हैं।
निष्कर्ष — क्या यह ‘एक्जिट-पॉल का खेला’ है?
बेबाग भाषा की रिपोर्टिंग कहती है: एक्जिट-पॉल एक खेला हो सकता है — इसके पीछे फंडिंग, सैम्पलिंग के तरीके, और पॉलिटिकल एजेंडा का हाथ। पर जमीन पर मिले कई सबूत — फर्जी मतदान, बाहरी मतदाता-मोबिलाइज़ेशन और लक्षित नकद हस्तांतरण — ये भी संकेत करते हैं कि चुनावी परिदृश्य केवल पॉलिटिकल नरेटिव से नहीं बल्कि प्रभावी (और संभवतः अवैध) तरीकों से भी परिवर्तित हुआ है।
हमारी अपील: चुनाव आयोग को इन वीडियोज और सबूतों की खासी संजीदगी से जांच करनी चाहिए; और देशवासियों को भी — अपने-अपने हिस्से पर — वोटिंग की प्रक्रिया का रिकॉर्ड, फोटोग्राफ और गवाह कोर्ट/प्रशासन के पास उपलब्ध कराना चाहिए।
