बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम : NDA–BJP की ऐतिहासिक जीत के पाँच बड़े सबक
बिहार के हालिया विधानसभा चुनाव नतीजे सिर्फ एक राज्य की राजनीति का संकेत नहीं हैं, बल्कि आने वाले राष्ट्रीय चुनावों और भारतीय लोकतंत्र की दिशा का भी आईना हैं। एनडीए और बीजेपी ने जिस तरह ऐतिहासिक जीत हासिल की है, वह कई बड़े राजनीतिक सबक छोड़ कर गई है। यह परिणाम सिर्फ गठबंधन की जीत नहीं, बल्कि एक ऐसी राजनीति की विजय है जिसे बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते एक दशक में देश में स्थापित किया है।
इस चुनाव ने पाँच ऐसे निर्णायक सबक दिए हैं, जिनका सीधा असर राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ने वाला है।
1. “मोदी हैं तो मुमकिन है” : एक बार फिर स्थापित
बिहार में 11 वर्षों तक राजनीतिक रूप से सीमित रहने के बाद बीजेपी आखिरकार सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।
यह जीत साफ संदेश देती है कि—
बीजेपी की जीत = मोदी ब्रांड की जीत
चाहे अमित शाह को “चाणक्य” कहा जाता हो, लेकिन बिहार में रंगदारी, जंगलराज, कट्टा-संस्कृति, महिलाओं की सुरक्षा जैसे मुद्दों को जिस अंदाज़ में मोदी ने मंचों पर उठाया, उनका असर सीधे मतदाताओं पर पड़ा।
बेरोजगारी, पलायन, भूखमरी जैसे वास्तविक मुद्दे पीछे छूट गए और मोदी-नेरेटिव छा गया।
भाजपा के समर्थक वर्ग में यह धारणा तेजी से मजबूत हुई है कि “मोदी कुछ भी कर सकते हैं”, और बिहार का जनादेश इस नेरेटिव को और मजबूत करता है।
2. सांप्रदायिक राजनीति ही कोर स्ट्रैटेजी : असम से लेकर बिहार तक एक ही मॉडल
दूसरा सबसे बड़ा सबक यह है कि बीजेपी के लिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण ही असली पॉलिटिकल इंजन है।
असम के कैबिनेट मंत्री अशोक सिंगल का बयान — “Bihar approves gobhi farming” — कोई साधारण टिप्पणी नहीं।
‘गोभी फार्मिंग’ वह कुख्यात रेफरेंस है जिसे बार-बार मुसलमानों के खिलाफ हिंसा को जस्टिफाई करने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। इसका प्रचार यह संदेश देता है कि—
ध्रुवीकरण जितना गहरा होगा, बीजेपी उतनी मज़बूत होगी।
इसी श्रृंखला में अमित शाह का SIR (Special Intensive Revision) को “शुद्धीकरण” बताना और इसे “घुसपैठियों के सफाए” से जोड़ना भी मुस्लिम नागरिकों पर संस्थागत दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा है।
बीजेपी की जीत को समझने के लिए यह पहचानना जरूरी है कि—
धर्म आधारित राजनीति अब “एड-ऑन” नहीं, बल्कि बीजेपी का मुख्य राजनीतिक ईंजन बन चुकी है।
3. क्षेत्रीय पार्टियों का पतन : “मित्रता” का अंत हमेशा एक जैसा
बिहार का तीसरा सबक स्पष्ट है—
राष्ट्रीय राजनीति से क्षेत्रीय पार्टियों के ख़ात्मे की शुरुआत हो चुकी है।
बिहार में जीत का “श्रेय” नितीश कुमार को दिया गया, लेकिन जेडीयू द्वारा X (ट्विटर) पर किया गया पोस्ट —
“भूतों न भविष्यति, नितीश ही मुख्यमंत्री थे, हैं और रहेंगे”
— और फिर जल्दी से उसे डिलीट कर देना यह साफ करता है कि:
बीजेपी के साथ जाने वाली हर क्षेत्रीय पार्टी का भविष्य एक जैसा है — महाराष्ट्र मॉडल।
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और अजीत पवार का अनुभव इसका सटीक उदाहरण है। बिहार में आरजेडी को लगभग न्यूनतम पर पहुंचा दिया गया।
नतीजतन, राष्ट्रीय राजनीति में अब “क्षेत्रीय शक्ति” का स्पेस तेजी से सिकुड़ रहा है।
4. विपक्षहीन लोकतंत्र = हिंदू राष्ट्र की पहली सीढ़ी
बीजेपी की यह जीत एक गहरे राजनीतिक खतरे की ओर संकेत करती है—
विपक्ष को कमज़ोर कर देना, लोकतंत्र को विपक्षहीन बना देना = हिंदू राष्ट्र परियोजना का आधार।
मतदाताओं के बीच यह नेरेटिव स्थापित कर दिया गया है कि—
“केंद्र में मोदी, राज्य में मोदी—तभी विकास होगा।”
यह वही माइंडसेट है जिसे हम दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र में देख चुके हैं।
और अब बिहार इसका नवीनतम उदाहरण है।
RSS के “ऑपरेशन त्रिशूल” का ज़िक्र भी अब बिहार की राजनीति में खुलकर हो रहा है।
इसका उद्देश्य है—
- बूथ प्रबंधन
- समाज में ध्रुवीकरण
- राजनीतिक नरेटिव तय करना
- और अंततः बीजेपी को नंबर 1 पोज़ीशन पर लाना
यह मॉडल अब राष्ट्रीय स्तर पर लागू हो चुका है।
5. साम-दाम-दंड-भेद : चुनावी राजनीति का नया सामान्य
आख़िरी और सबसे महत्वपूर्ण सबक—
अब राजनीति में नैतिकता = शून्य।
साम, दाम, दंड, भेद = चुनाव जीतने की ‘राज्य नीति’।
बिहार चुनाव में चुनाव आयोग की भूमिका पर उठे सवाल इसका बड़ा उदाहरण हैं।
जैसे—
- राज्य में मद्दाताओं की संख्या 7 करोड़ 42 लाख
- वोट पड़े 66.6%
- लेकिन अचानक कुल मतदाता 7 करोड़ 45 लाख दिखाया गया
इस तरह के अंतर को “एडमिनिस्ट्रेटिव एरर” नहीं, बल्कि राजनीतिक मैनेजमेंट कहा जाता है।
बीजेपी का चुनावी मंत्र साफ है—
“हर कीमत पर सत्ता” — और इसका कोई मुकाबला फिलहाल किसी दल के पास नहीं है।
आगे क्या? बंगाल, असम और तमिलनाडु में इसी मॉडल की एंट्री
बिहार के ये पाँच सबक इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि अब पूरा देश बंगाल, असम और तमिलनाडु चुनावों की ओर देख रहा है।
बीजेपी जिन पाँच फॉर्मूलों से बिहार जीती है, उन्हें वही फॉर्मूला अब अन्य राज्यों में लागू करने जा रही है।
और अंत में, जैसा कि भक्तों का नारा है—
“मोदी हैं तो सबकुछ मुमकिन है।”
