November 22, 2025 12:16 am
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Delhi Blast पर क्यों जांच एजेंसियां नहीं दे रहीं पुख्ता जानकारी?

दिल्ली ब्लास्ट को मोदी सरकार ने 50 घंटे बाद आतंकी घटना माना। जांच पर चुप्पी, मीडिया की सूत्र-राजनीति और कांग्रेस की जवाबदेही की मांग।

सरकार की चुप्पी: 50 घंटे बाद ‘आतंकी घटना’ मानने की मजबूरी और मीडिया की सूत्र-राजनीति

10 नवंबर को देश की राजधानी दिल्ली में लाल किले के सामने हुआ धमाका आखिरकार मोदी सरकार ने 50 घंटे बाद ‘आतंकी घटना’ मान लिया। लेकिन इस स्वीकारोक्ति के बावजूद अब तक यह स्पष्ट नहीं है कि इस घटना की जिम्मेदारी किसकी है, जांच किस स्तर पर पहुंची है, और इतने संवेदनशील मामले में सूचना जनता तक आधिकारिक रूप से क्यों नहीं पहुंचाई जा रही है।

सरकार की ओर से कोई प्रेस ब्रीफिंग नहीं हुई, न ही किसी एजेंसी या पुलिस ने इस घटना पर औपचारिक बयान दिया। इसके उलट मीडिया में लगातार “सूत्रों” के हवाले से खबरें लीक हो रही हैं — ऐसी सूचनाएँ जो न केवल अधूरी हैं बल्कि कई बार अफवाहों और सांप्रदायिक उकसावे का रूप ले लेती हैं।

‘बेबाक भाषा’ के कार्यक्रम ‘सीधे सवाल’ में भाषा सिंह ने कहा — “जब ओपरेशन सिंदूर के दौरान सेना रोज़ाना ब्रीफिंग दे सकती है, तब दिल्ली जैसे संवेदनशील शहर में हुए धमाके पर सरकार और एजेंसियाँ चुप क्यों हैं? आखिर ये ‘सूत्र-मूत्र’ वाली पत्रकारिता क्यों चल रही है?”

कांग्रेस की सीधी मांग: जवाबदेही कौन लेगा?

कांग्रेस पार्टी ने इस मामले में गृह मंत्री अमित शाह से सीधी जवाबदेही मांगी है। पार्टी ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर साझा किए गए पोस्टर में बताया कि पिछले 523 दिनों में देश में 57 आतंकी घटनाएँ हुईं और 69 भारतीय नागरिक मारे गए

कांग्रेस नेताओं सुप्रिया श्रीनेत और पवन खेड़ा ने कहा कि मोदी सरकार आतंकवाद जैसे गंभीर मुद्दे पर भी राजनीतिक ‘स्पिन’ देने में लगी है।
पवन खेड़ा ने अपने बयान में कहा — “जब खबरें ‘सूत्रों’ के हवाले से चलती हैं तो उससे न केवल भ्रम फैलता है, बल्कि देश में विभाजनकारी माहौल भी बनता है।”

मीडिया की भूमिका पर गंभीर सवाल

भाषा सिंह ने कार्यक्रम में कई टीवी चैनलों की कवरेज के उदाहरण दिखाए —

  • News18 ने दावा किया कि “लाखों हिंदुओं को मारने की साज़िश” रची गई थी। सवाल यह है कि यह जानकारी उन्हें किसने दी?
  • NDTV का कैमरा कथित तौर पर ब्लास्ट स्थल पर पहुंचकर ‘रेकी’ करता दिखाई दिया।

इस तरह की कवरेज ने गंभीर जांच की जगह मीडिया को “इंवेस्टिगेशन एजेंसी” की भूमिका में खड़ा कर दिया है। टाइम्स नाउ, आज तक, न्यूज18, एनडीटीवी — सभी चैनल अपनी-अपनी कथा गढ़ रहे हैं, मानो यह किसी सीरियल की स्क्रिप्ट हो।

भाषा सिंह ने कहा — “अगर इन्हें ही जांच का जिम्मा दे दिया जाए तो एजेंसियों की जरूरत ही नहीं रहेगी। यही वही मीडिया है जिसने ओपरेशन सिंदूर के दौरान जनता को गुमराह किया था, झूठे दावे किए थे कि भारतीय सेना लाहौर पहुंच गई है।”

प्रधानमंत्री की पुरानी बातें और आज की चुप्पी

दिल्ली ब्लास्ट के बाद सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री मोदी के पुराने वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिनमें वे गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए आतंकवादी घटनाओं पर तत्कालीन केंद्र सरकार से इस्तीफे की मांग करते दिखते हैं।

लोग अब वही सवाल मोदी से पूछ रहे हैं —

“जब आप विपक्ष में थे तब हर धमाके पर सरकार की नाकामी का आरोप लगाते थे, अब आपके शासन में ऐसा क्यों हो रहा है? कोई इस्तीफा क्यों नहीं?”

याद रहे, ओपरेशन सिंदूर के दौरान खुद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि “भारत में कोई भी टेरर एक्ट, एक्ट ऑफ वॉर माना जाएगा।”
आज विपक्ष सवाल पूछ रहा है कि अगर दिल्ली का धमाका आतंकी घटना है, तो क्या यह “एक्ट ऑफ वॉर” नहीं? और अगर है, तो फिर सरकार की प्रतिक्रिया इतनी ठंडी क्यों?

निष्कर्ष

दिल्ली धमाके ने एक बार फिर यह सवाल उठाया है कि देश की सुरक्षा व्यवस्था और उसकी जवाबदेही आखिर किसके पास है।
जब सरकार चुप रहती है और मीडिया “सूत्रों” के हवाले से अफवाहें फैलाता है, तब सच्चाई जनता से और दूर चली जाती है।
इस घटना ने यह भी दिखाया कि “सूचना नियंत्रण” आज की राजनीति का नया हथियार बन गया है — जिसमें लोकतंत्र की असली कीमत विश्वसनीयता चुकाती है।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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