October 6, 2025 2:33 pm
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जाति अतीत नहीं, आज की कड़वी सच्चाई है

RSS प्रमुख मोहन भागवत को खुले पत्र में जाति पर बयान का जवाब। ताज़ा घटनाओं के हवाले से बताया गया कि जाति भारत की आज की सच्चाई है, अतीत नहीं।

RSS प्रमुख मोहन भागवत को खुला पत्र- हम रोज झेलते हैं जाति का दंश

दलित डिस्कोर्स में आज मैं RSS प्रमुख मोहन भागवत को एक खुला पत्र पेश कर रहा हूं। हाल ही में भागवत जी ने अपने एक बयान में कहा कि “जाति अब अतीत की बात हो गई है।”

लेकिन यह कथन उन तमाम दलितों के जीवन की वास्तविकता से बहुत दूर है, जो हर रोज जातिगत हिंसा और भेदभाव का सामना कर रहे हैं।

हाल की घटनाओं से साफ तस्वीर

अगर जाति अतीत की बात होती, तो अगस्त 2025 की ये घटनाएं क्यों घटित होतीं?

  • मध्यप्रदेश: एक दलित युवक की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गई क्योंकि उसने एक ब्राह्मण लड़की से शादी की।
  • उड़ीसा (गंजम जिला): दो दलितों को पशुओं की तरह घुमाया गया, उनके बाल काटे गए और उन्हें गंदा पानी पीने को मजबूर किया गया।
  • गुजरात: एक शिक्षक ने दलित छात्र को केवल उसकी जाति की वजह से पीटा और जातिसूचक गालियां दीं।
  • उत्तर प्रदेश (प्रतापगढ़): दबंगों ने एक दलित महिला और उसकी तीन बेटियों की बेरहमी से पिटाई की।

ये घटनाएं चीख-चीख कर कह रही हैं कि जाति आज भी हमारे समाज में जिंदा है और यह केवल दलितों की रोजमर्रा की जिंदगी का दर्दनाक अनुभव नहीं बल्कि एक सामाजिक हकीकत है।

दलित दृष्टिकोण: जाति का दंश

दलितों से पूछिए, हम हर रोज जाति का दंश झेलते हैं। मैला ढुलवाना, सीवर सफाई, लाशों का पोस्टमार्टम – ये सब काम अब भी जाति के आधार पर दलितों को ही सौंपे जाते हैं।

हमारा संविधान हर नागरिक को बराबरी का अधिकार देता है। लेकिन संविधान की बराबरी और जमीनी हकीकत के बीच का यह फासला जाति की वजह से ही है।

डॉ. आंबेडकर और जाति का विनाश

बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने “Annihilation of Caste” (जाति का विनाश) लिखकर साफ कहा था कि जब तक जाति है, तब तक समानता और मानवता अधूरी है।
हर दलित यही चाहता है कि जाति का विनाश हो।

मोहन भागवत और RSS से सवाल

2025 में RSS के 100 साल पूरे हो रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे दुनिया का सबसे बड़ा NGO कह चुके हैं। लेकिन अगर RSS को सम्मान चाहिए, तो उसे दलित दृष्टिकोण से भी देखना होगा।

मोहन भागवत जी, क्या आप जाति के विनाश की दिशा में कदम उठाएंगे, या दलितों को अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए बार-बार सवाल उठाते रहना होगा?

जब तक जाति रहेगी, तब तक भेदभाव और छुआछूत भी रहेगा—और तब तक दलित अपनी बराबरी और इंसाफ के लिए संघर्ष करते रहेंगे।

राज वाल्मीकि

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