October 6, 2025 8:15 am
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पद्मश्री शाहिद के घर को बनाना चाहिए था स्मारक चला दिया बुलडोज़र

ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता और पद्मश्री से सम्मानित हॉकी खिलाड़ी मोहम्मद शाहिद का वाराणसी स्थित पैतृक घर बुलडोजर से तोड़ा गया। परिवार ने मुआवजा और स्मारक की मांग की।

यह मोदी का बनारस और योगी का शासन है, जहां ऐसी धरोहरों की कोई कीमत नहीं

जब क्रिकेट के नाम पर करोड़ों-अरबों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, वहीं हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी उपेक्षा का शिकार है। उपेक्षित हैं वे खिलाड़ी भी, जिन्होंने देश का नाम रोशन किया। ऐसा ही हुआ पद्मश्री से सम्मानित हॉकी के जादूगर मोहम्मद शाहिद के साथ, जिनका बनारस (वाराणसी) स्थित पैतृक मकान 28 सितंबर को बुलडोजर से ढहा दिया गया।

मोहम्मद शाहिद: हॉकी का दूसरा जादूगर

मेज़र ध्यानचंद के बाद मोहम्मद शाहिद को भारत का दूसरा “हॉकी का जादूगर” कहा जाता था।

  • जन्म: 14 अप्रैल 1960, वाराणसी
  • निधन: 20 जुलाई 2016
  • उपलब्धियां:
    • 1980 मास्को ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय टीम के सदस्य
    • एशियाई खेलों और अन्य ओलंपिक अभियानों में हिस्सा
    • 1985-86 में भारतीय टीम के कप्तान
    • 1980 में अर्जुन पुरस्कार और 1986 में पद्मश्री सम्मान

शाहिद अपनी तेज़ ड्रिब्लिंग और वन-टू पासिंग के लिए मशहूर थे। कहा जाता था कि जब गेंद उनके पास होती थी, तो विरोधी खिलाड़ी ठगे रह जाते थे।

बनारस का पैतृक घर और बुलडोजर

1920 में बना उनका पैतृक मकान बनारस के कचहरी इलाके, गोलघर के पास था। यहीं शाहिद का बचपन बीता। इस मकान पर उनके छह भाइयों और तीन बहनों का नाम दर्ज है।

लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में चल रहे सौंदर्यीकरण अभियान के तहत संदहा से कचहरी तक लगभग 26 मीटर चौड़ी सड़क बनाई जा रही है। इसी परियोजना में शाहिद का घर भी आ गया, जिसे 28 सितंबर को ढहा दिया गया।

सम्मान के बजाय उपेक्षा

दुनिया भर में महान खिलाड़ियों, लेखकों और नेताओं के घरों को संरक्षित किया जाता है। वहीं भारत में एक ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता और पद्मश्री से सम्मानित खिलाड़ी का घर बिना किसी धरोहर मान्यता के गिरा दिया गया।

परिवार बेहद दुखी है, लेकिन विरोध से कुछ हासिल न होने की बात जानते हुए वे सरकार से उचित मुआवजे और मोहम्मद शाहिद की याद में एक स्मारक, चौक या सड़क का नामकरण करने की मांग कर रहे हैं, ताकि उन्हें उनके योगदान के अनुरूप सम्मान मिल सके।

मुकुल सरल

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