October 6, 2025 8:19 am
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हमास ने मानी शर्तें, पर क्या रुकेंगे इज़रायल के ख़ूनी मंसूबे

गाज़ा पर इस्राइल की बमबारी और ट्रम्प की शांति योजना पर सवाल। क्या यह असली युद्धविराम है या सिर्फ कत्लेआम को वैध ठहराने का नया तरीका? पढ़िए पूरी पड़ताल।

युद्धविराम या छलावा: ट्रम्प की शांति योजना और इज़रायल की रणनीति

डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल ही में इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ मिलकर जो 20 बिंदुओं की शांति योजना जारी की है, उसने मध्य पूर्व की राजनीति को नए मोड़ पर खड़ा कर दिया है। ट्रम्प खुद को शांति निर्माता के रूप में पेश करते हुए बार-बार “नोबेल पुरस्कार” की मांग कर रहे हैं। लेकिन जमीनी हकीकत इसके बिल्कुल उलट दिखाई देती है – गाज़ा अब भी बमबारी की चपेट में है और युद्धविराम की घोषणाएं खोखली लग रही हैं।

युद्धविराम की घोषणा और जारी कत्लेआम

हमास ने पहल करते हुए कहा कि वह अपने कब्ज़े में लिए गए सभी बंधकों को छोड़ने को तैयार है। इसके बावजूद इज़रायल ने गाज़ा पर हमले जारी रखे। अलजज़ीरा की रिपोर्ट बताती है कि युद्धविराम की चर्चाओं के बीच ही पिछले 24 घंटों में 70 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए। यह सवाल खड़ा करता है कि क्या इस्राइल का मकसद शांति है या गाज़ा का पूर्ण विनाश।

ट्रम्प-नेतन्याहू की साझेदारी

ट्रम्प की शांति योजना का बड़ा हिस्सा इज़रायल की सुरक्षा और हितों पर केंद्रित है, जबकि फिलिस्तीनी जनता को न तो प्रतिनिधित्व दिया गया है और न ही उनकी ज़मीन और अधिकारों पर विचार किया गया है। नेतन्याहू, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय अदालत ने युद्ध अपराधों का दोषी माना है, बार-बार युद्धविराम तोड़ चुके हैं। ऐसे में यह योजना एक बार फिर फिलिस्तीन को हाशिये पर धकेलने का प्रयास दिखती है।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और विरोध

दुनिया भर में इज़रायल के खिलाफ गुस्सा उभर रहा है। बार्सिलोना, लंदन, रोम, पेरिस और बर्लिन से लेकर सैकड़ों शहरों में “स्टॉप जेनोसाइड” के नारे गूंज रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा में नेतन्याहू के भाषण के दौरान 77 देशों के प्रतिनिधि वॉकआउट कर गए। यह इस बात का संकेत है कि इस्राइल अब वैश्विक स्तर पर अलग-थलग पड़ता जा रहा है।

फ्लोटिला का मसला और ग्रेटा थन्बर्ग

गाज़ा में राहत सामग्री लेकर जा रहे 50 जहाज़ों के फ्लोतिला को इज़रायली सेना ने इंटरनेशनल वाटर्स से रोका। इनमें पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थन्बर्ग, नेल्सन मंडेला के पोते और यूरोपीय संसद के सदस्य शामिल थे। इन शांति कार्यकर्ताओं के साथ अपमानजनक व्यवहार किया गया। ग्रेटा को इज़रायली झंडे में लपेटकर ठंडे कमरे में बिना पानी और कपड़ों के रखा गया। यह घटना इस्राइल के असली चेहरे को उजागर करती है कि वह न सिर्फ फिलिस्तीनियों बल्कि अंतरराष्ट्रीय एक्टिविस्ट्स को भी दुश्मन मानता है।

भारत की स्थिति और आलोचना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना की सराहना की है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या भारत जैसी लोकतांत्रिक व्यवस्था को एकतरफा “शांति योजना” का समर्थन करना चाहिए, जिसमें फिलिस्तीनियों की आवाज़ ही शामिल नहीं है? आलोचकों का कहना है कि भारत ने इस प्रक्रिया में अपनी नैतिक स्थिति कमजोर की है।

बड़ा सवाल

ट्रम्प और नेतन्याहू का गठजोड़ गाज़ा पर नियंत्रण और फिलिस्तीन को दबाने की रणनीति का हिस्सा लगता है। लेकिन जब दुनिया भर में लाखों लोग विरोध में सड़कों पर हैं और इस्राइल की कार्रवाइयों को “जेनोसाइड” कहा जा रहा है, तब असली सवाल यह है – क्या शांति योजना वास्तव में शांति लाएगी या यह सिर्फ कत्लेआम को वैध ठहराने का नया छलावा है?

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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