October 6, 2025 8:21 am
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अंग्रेजों की मदद करने वाला RSS आज दे रहा देशप्रेम की नसीहत

बेबाक भाषा के ख़ास कार्यक्रम Decoding RSS में प्रसिद्ध लेखक और मानवाधिकार कार्यकर्ता राम पुनियानी बता रहे हैं कि RSS की स्थापना कब, क्यों और किस मक़सद से हुई और वह किस तरह आज़ादी के पूरे आंदोलन से दूर रहा।

आज़ादी के आंदोलन से बाहर रहा संघ आज सबको पढ़ा रहा राष्ट्रवाद का पाठ!

2 अक्टूबर 2025 को आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) अपने 100 साल पूरे कर रहा है। यह तारीख ऐतिहासिक रूप से और भी खास है क्योंकि इसी दिन महात्मा गांधी का जन्मदिन भी है और इसी दिन डॉ. भीमराव आंबेडकर ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी। ऐसे में आरएसएस की शताब्दी केवल एक संगठन के इतिहास को नहीं बल्कि भारत की राजनीति, समाज और विचारधारा के टकराव को भी सामने लाती है।

आरएसएस का जन्म : पृष्ठभूमि

1920 के दशक में जब भारत में औद्योगिकरण, परिवहन और सामाजिक परिवर्तन की लहर उठ रही थी, तब पारंपरिक सामंती और ब्राह्मणवादी वर्चस्व कमजोर हो रहा था। दलितों, महिलाओं और आम जन की बराबरी की मांग ने ऊँची जातियों और जमींदारों को असहज किया।
इसी असहजता से 2 अक्टूबर 1925 को नागपुर में पाँच चितपावन ब्राह्मणों ने मिलकर आरएसएस की स्थापना की। इसका उद्देश्य था – “हिंदू राष्ट्र” की स्थापना, जैसा कि सावरकर ने अपनी पुस्तक हिंदुत्व में लिखा था।

विचारधारा : हिंदू राष्ट्र बनाम राष्ट्रीय आंदोलन

  • आरएसएस की शाखाओं में लड़कों को बुलाकर शारीरिक प्रशिक्षण और वैचारिक शिक्षा दी जाती थी।
  • मुख्य संदेश यह था कि भारत केवल हिंदुओं का राष्ट्र है, जबकि गांधी, नेहरू और अन्य नेता इसे सभी नागरिकों का देश मानते थे।
  • मुसलमानों और ईसाइयों को विदेशी कहा जाता था।
  • महिलाओं को संगठन में बराबरी का स्थान नहीं दिया गया। 1936 में “राष्ट्र सेविका समिति” नामक सहायक संगठन बनाया गया, पर वह भी आरएसएस के अधीन ही रहा।

स्वतंत्रता आंदोलन से दूरी

आरएसएस ने कभी भी ब्रिटिश-विरोधी आंदोलनों में हिस्सा नहीं लिया।

  • 1930 का सविनय अवज्ञा आंदोलन और 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन – दोनों से संघ ने दूरी बनाई।
  • डॉ. हेडगेवार ने जेल भी काटी, पर वह भी संगठन को मजबूत करने की रणनीति के तहत।
  • संघ ने शाखाओं को आदेश दिया कि अंग्रेजों के खिलाफ किसी गतिविधि में भाग न लें।

गांधी की हत्या और प्रतिबंध

30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या नाथूराम गोडसे ने की। गोडसे आरएसएस से जुड़े रहे थे और बाद में हिंदू महासभा में सक्रिय हुए। इस हत्या के बाद सरदार पटेल ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया और कहा कि संघ ने नफरत का वातावरण तैयार किया।

विस्तार और राजनीति में प्रवेश

  • 1950 के दशक में आरएसएस ने नए संगठन खड़े किए – अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP), वनवासी कल्याण आश्रम, आदि।
  • प्रचारकों के जरिए शाखाएं देशभर में फैलाई गईं।
  • 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई, जो आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी (BJP) बनी।
  • 1980–90 के दशक में राम मंदिर आंदोलन और बाबरी मस्जिद विध्वंस ने संघ परिवार को राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में ला दिया।

सत्ता और विचारधारा का असर

1996 से लेकर 2014 तक बीजेपी गठबंधन की राजनीति से सत्ता में आई। लेकिन 2014 के बाद मोदी सरकार के साथ संघ की विचारधारा ने नीतिगत स्तर पर गहरी छाप छोड़ी।

  • गाय और राम मंदिर जैसे मुद्दों से समाज में ध्रुवीकरण हुआ।
  • कमजोर वर्गों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर असर पड़ा।
  • हिंदुत्व की राजनीति मुख्यधारा बन गई।

निष्कर्ष

आरएसएस के 100 सालों का इतिहास यह दिखाता है कि संगठन ने खुद को सामाजिक-राजनीतिक संरचना में कैसे स्थापित किया। इसकी जड़ें “हिंदू राष्ट्रवाद” में हैं, जो लगातार भारतीय संविधान की समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व की मूल भावना से टकराती रही हैं। आने वाले वर्षों में यह संघर्ष और भी गहरा होने वाला है।

राम पुनियानी

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