October 6, 2025 8:15 am
Home » देशकाल » गीतांजलि अंगमो ने सरकार पर लगाए गंभीर आरोप

गीतांजलि अंगमो ने सरकार पर लगाए गंभीर आरोप

मोदी सरकार के सारे कदम लद्दाख को अशांति की ओर धकेलने वाले, क्यों?

हालिया घटनाक्रम में लद्दाख के पर्यावरणवादी-शिक्षाविद् सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी ने न सिर्फ स्थानीय बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं — क्या सरकार असल समस्याओं का हल खोजने की बजाय जानबूझकर समस्याएँ बना रही है? सोनम वांगचुक की पत्नी गीतांजलि अंगमो ने तो यह तक कह डाला है कि मोदी सरकार अंग्रेजी हुकूमत से भी खराब बरताव कर रही है।

मामला क्या है — संक्षेप में

सोनम वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत गिरफ्तार कर जोधपुर जेल में बंद किया गया। साथ ही लेह में इंटरनेट सेवाएँ 3 अक्टूबर तक बंद कर दी गईं और इलाके में कर्फ्यू जैसी स्थिति बनी। इस समय, स्थानीय संचालित निकायों — लेह एपीक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस — ने स्पष्ट कहा है: जब तक सोनम वांगचुक रिहा नहीं होंगे और संबंधित मामले वापस नहीं लिए जाएंगे, तब तक किसी वार्ता का कोई अर्थ नहीं होगा। यह स्थिति स्पष्ट करती है कि आधिकारिक मशीनरी किसी भी तरह के संवाद के लिए जगह नहीं छोड़ रही है।

प्रशासनिक कार्रवाई: NSA, जेल और इंटरनेट कटौती

सरकार ने गिरफ्तारी के साथ-साथ संचार बंद कर, इलाके की आवाज़ को कुंद करने जैसा कदम उठाया। इंटरनेट बंदी और कर्फ्यू जैसी कार्रवाइयाँ सूचना के पारदर्शी प्रवाह को रोके बिना नहीं रहतीं — और जब सूचना बंद हो, तो अफ़वाहें और संपादित सामग्री तेज़ी से फैलती हैं। इस बीच, चुनी हुई मीडिया और सोशल मीडिया पर सोनम के खिलाफ लगातार प्रचार-प्रसार और कथित रूप से एडिटेड वीडियो सामने आये — जो असलियत छुपाने और मुद्दे को बदनाम करने का काम करते हैं।

क्या यह संवाद को रोकने की योजना है?

लेह के प्रमुख संगठनों का स्पष्ट रवैया यही दर्शाता है कि स्थानीय जनता और प्रतिनिधि संवाद की जमीन पर भरोसा नहीं कर रहे। जब शर्त यही रखी जाए कि किसी की रिहाई तक कोई वार्ता नहीं होगी, तो सवाल उठता है: क्या राज्य ही वार्ता के दरवाज़े बंद कर रहा है?

आरोप, दुष्प्रचार और सवालों के बिंदु

सरकार और कुछ टुकड़ों ने सोनम पर कई आरोप लगाए — जिनमें कुछ संस्थागत वित्तीय पारदर्शिता और विदेशी संपर्क से जुड़े सवाल भी शामिल हैं। पर यहाँ दो मूल बातें याद रखने लायक हैं:

  1. सोनम वांगचुक का जाना किस संदर्भ में हुआ? — ट्रांसक्रिप्ट के अनुसार वे संयुक्त राष्ट्र द्वारा आमंत्रित एक conference में भाग लेने के लिए पाकिस्तान गए थे, और उन्होंने वीज़ा और औपचारिक प्रक्रियाएँ पूरी की थीं। क्या अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेना देशद्रोह है? (ध्यान रहे: इसी तरह के अनुष्ठान अनेक नेताओं और राजनयिकों द्वारा किए जाते रहे हैं।)
  2. संस्थागत आरोप — जिन संस्थाओं पर आरोप लगे हैं (जैसे कि उनकी संस्थाएँ), वे आरोप कितने सत्यापित हैं? कुछ रिपोर्ट्स बताती हैं कि जांचकर्ताओं ने पाया कि FCRA/सेवा समझौते और वित्तीय पहलू पर स्पष्टता रही है और प्रारम्भिक तथ्य-परख में उल्लंघन नहीं दिखा। (यह दावा स्थानीय स्रोतों के बयान पर आधारित है; किसी निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले स्वतंत्र जांच आवश्यक है।)

इन बिंदुओं के बावजूद, मीडिया और पार्टी-आधारित प्रचार ने घटनाक्रम को ऐसी रूपरेखा में पेश किया कि सामान्य दर्शक के लिए असलियत और आरोपों में फर्क करना मुश्किल हो गया।

विदेश यात्रा और ‘देशद्रोह’ के आरोप

सोनम वांगचुक की पत्नी गीतांजलि अंगमो ने स्पष्ट किया कि वे proper visa पर गए थे, तीन दिन की conference थी और वापसी भी कर ली गई थी। फिर भी यह सवाल उठाया गया कि पाकिस्तान जाना क्या गैरकानूनी है? यही दुविधा दर्शाती है कि देश में ‘परराष्ट्र गतिविधि’ और ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ की धारणा का दायरा कभी-कभी राजनीतिक और मीडिया-प्रचार के साथ बढ़ाया जा रहा है।

मीडिया और सोशल मीडिया: किस तरह बनाया जा रहा है नैरेटिव?

साफ है कि BJP IT सेल, कुछ मीडिया हाउस और सोशल मीडिया पर लगातार सोनम के खिलाफ सामग्री डाला जा रहा है—edited videos, फेक न्यूज़ और चरित्र-हत्या की रणनीतियाँ। जब सूचना बंद हो और न्यायिक/पारदर्शी प्रक्रिया अस्पष्ट हो, तो यही सूचनात्मक शून्य अफवाहों और मनगढ़ंत आरोपों से भर जाता है।

क्या समाधान नहीं बनाकर समस्या बनाई जा रही है?

प्रश्न यही है: क्या केंद्र सरकार — जो लद्दाख को स्थिर और विकासशील दिखाने का दावा करती है — असल में स्थायी अशांति की दिशा में कदम बढ़ा रही है? अगर मुद्दों का हल संवाद, पारदर्शिता और स्थानीय प्रतिनिधियों के साथ मिलकर किया जा सकता है, तो वार्ताओं को रोककर और लोगों की आवाज़ दबाकर समस्याओं को सुलझाया नहीं जा सकता।

लेह के स्थानीय निकायों ने साफ किया है कि उनकी शर्त रिहाई और मामलों की वापसी है — यह मांग साफ बताती है कि बिना भरोसे और न्याय के संवाद का कोई अर्थ नहीं रह जाता।

कैसा होना चाहिए समाधान

  • तुरंत पारदर्शी जांच: सभी आरोपों की स्वतंत्र और पारदर्शी जांच हो, सार्वजनिक रिपोर्ट के साथ।
  • डायलॉग की बहाली: स्थानीय नेतृत्व, नागरिक समाज और केंद्र के बीच संयमित वार्ता की शुरुआत हो — रिहाई और शर्तों पर बातचीत के लिए खुला रास्ता दिया जाए।
  • संचार बहाल करना: इंटरनेट और सूचनात्मक चैनलों को आवश्यक सुरक्षा के साथ बहाल किया जाए ताकि सत्य और जानकारी का प्रवाह वापस आ सके।
  • मीडिया नैतिकता: दुष्प्रचार और एडिटेड सामग्री पर मीडिया हाउस और प्लेटफ़ॉर्म जवाबदेह हों।

निष्कर्ष: लद्दाख का भविष्य — आवाज़ चाहिए, गोली नहीं

अंत में यह कहना गलत न होगा कि लद्दाख को किसी गोलाबारी या दमन की भाषा से सुरक्षित नहीं रखा जा सकता। वहाँ के लोगों को निर्णय में शामिल कर, उनकी चिंताओं को सुनकर ही पक्का समाधान निकलेगा। इंटरनेट बंद करने, गिरफ्तारी करके और संवाद के दरवाज़े बंद कर के समस्या छिपाई नहीं जा सकती — उल्टा, यह अशांति को जन्म दे सकता है।

सोनम वांगचुक की रिहाई और सभी आरोपों की निष्पक्ष जाँच से ही कोई भरोसेमंद वार्ता संभव है। बेबाग भाषा इस मुद्दे पर आवाज़ उठाती रहेगी — क्योंकि जो सवाल वहाँ उठ रहे हैं, वे सिर्फ एक व्यक्ति के नहीं, लद्दाख के नागरिकों और लोकतंत्र के हैं।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

Read more
View all posts

ताजा खबर