सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से बिहार में एक-एक वोट को बचाने की लड़ाई को मिली ताकत
देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने बिहार की चल रही Special Intensive Revision (SIR) प्रक्रिया में एक अहम आदेश सुनाया है। अदालत ने केंद्रीय चुनाव आयोग (CEC) को स्पष्ट निर्देश दिया है कि बिहार में तैयार हो रही नई वोटर लिस्ट में आधार कार्ड को 12वें वैध दस्तावेज़ के रूप में शामिल किया जाए।
यह फैसला न केवल बिहार बल्कि पूरे देश की वोटर लिस्ट संशोधन प्रक्रिया पर असर डालेगा, क्योंकि चुनाव आयोग देशभर में SIR प्रक्रिया चला रहा है। अदालत ने कहा कि आधार भले ही नागरिकता का प्रमाण नहीं है, लेकिन इसे पहचान के लिए स्वीकार करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए।
पृष्ठभूमि: 10 जुलाई से 8 सितंबर तक की लड़ाई
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही 10 जुलाई को चुनाव आयोग को यह निर्देश दिया था कि आधार को शामिल किया जाए, लेकिन आयोग लगातार टालमटोल कर रहा था। इस दौरान 65 लाख वोटरों के नाम काटे गए, जिन्हें अब वापस शामिल करने की प्रक्रिया में आधार एक अहम दस्तावेज़ साबित होगा।
अदालत में बहस और वकीलों की दलीलें
- कपिल सिब्बल और वरिष्ठ वकील वृंदा ग्रोवर ने आयोग की दलीलों को कठघरे में खड़ा किया।
- वृंदा ग्रोवर ने अदालत को याद दिलाया कि फॉर्म-6 (जिसके जरिए नए नाम वोटर लिस्ट में जोड़े जाते हैं) में पहले से ही आधार को वैध दस्तावेज़ के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- कपिल सिब्बल ने चुनाव आयोग पर झूठ बोलने का आरोप लगाया और सबूत पेश किए कि बूथ लेवल अधिकारियों (BLOs) को आधार मानकर फॉर्म स्वीकार करने पर नोटिस दिए जा रहे थे।
जस्टिस बागची की अहम टिप्पणी
जस्टिस बागची ने सुनवाई के दौरान कहा:
- “सिर्फ आधार ही नहीं, कई अन्य दस्तावेज़ भी फर्जी हो सकते हैं। यह आधार नहीं हो सकता कि केवल फर्जीवाड़े के डर से आधार को बाहर कर दिया जाए।”
- उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि नागरिकता साबित करने वाले दस्तावेज़ सिर्फ पासपोर्ट और जन्म प्रमाण पत्र हैं। चुनाव आयोग की सूची में अन्य 9 दस्तावेज़ नागरिकता सिद्ध नहीं करते।
क्यों है यह फैसला महत्वपूर्ण?
यह फैसला लोकतांत्रिक अधिकारों और वोटर सूची में निष्पक्षता के लिए बेहद अहम है।
- बिहार की राजनीतिक पृष्ठभूमि में, जहां “वोट चोर, गद्दी छोड़” जैसे नारे गूंज रहे हैं, वहां हर वोट की अहमियत है।
- सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश सुनिश्चित करेगा कि किसी भी नागरिक को सिर्फ आधार के आधार पर वोटर सूची से बाहर न किया जाए।
अन्य कानूनी विकास
इसी दिन देशभर में न्यायपालिका से जुड़े दो और बड़े घटनाक्रम हुए:
- दिल्ली में वकीलों का आंदोलन – दिल्ली पुलिस ने आखिरकार मान लिया कि उसके अधिकारी अदालत में पेश होकर साक्ष्य देंगे।
- मध्य प्रदेश मामला – सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि एक दोषी व्यक्ति को 4.7 साल अतिरिक्त जेल में रखने पर 25 लाख मुआवज़ा दिया जाए।
निष्कर्ष
आज का दिन वोटर अधिकारों की लड़ाई के इतिहास में दर्ज होगा। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने साफ कर दिया है कि लोकतंत्र में वोट चोरी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। अब देखना यह है कि बिहार से शुरू हुई यह बहस आने वाले समय में देशभर की चुनावी प्रक्रिया को किस तरह प्रभावित करती है।