पंजाब के स्थानीय निकाय चुनाव में कांग्रेस व अकाली दल रह गए पीछे, भाजपा फिसड्डी
पंजाब में हुए जिला परिषद और पंचायत समिति चुनावों में आम आदमी पार्टी (AAP) ने बड़ी जीत दर्ज की है। इन नतीजों को 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी के लिए एक सकारात्मक संकेत के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि, पंजाब का राजनीतिक इतिहास यह भी बताता है कि स्थानीय निकाय चुनावों के नतीजे सीधे-सीधे विधानसभा चुनावों में तब्दील नहीं होते।
14 दिसंबर को पंजाब के 22 जिला परिषदों के 346 ज़ोन और 153 पंचायत समितियों के 2834 ज़ोन के लिए मतदान हुआ था। मतगणना 17 दिसंबर को शुरू हुई और 18 दिसंबर की देर शाम तक नतीजे आते रहे। इन नतीजों में आम आदमी पार्टी ने जिला परिषदों के लगभग 63 प्रतिशत और पंचायत समितियों के करीब 54 प्रतिशत क्षेत्रों में जीत हासिल की।
सत्ता में रहने वाली पार्टी को बढ़त—पुराना ट्रेंड
स्थानीय निकाय चुनावों में आमतौर पर सत्ता में रहने वाली पार्टी को बढ़त मिलती रही है।
- 2012 में जब पंजाब में अकाली दल-भाजपा की सरकार थी, तब स्थानीय निकाय चुनाव अकाली दल ने जीते। लेकिन 2017 में विधानसभा चुनाव में उसे हार का सामना करना पड़ा और कांग्रेस सत्ता में आई।
- 2018 में कांग्रेस सरकार के दौरान स्थानीय निकाय चुनावों में कांग्रेस को जीत मिली, लेकिन 2022 में वह सत्ता से बाहर हो गई और आम आदमी पार्टी ने सरकार बनाई।
- अब 2025 में आम आदमी पार्टी ने स्थानीय निकाय चुनाव जीते हैं, लेकिन सवाल वही है—क्या यह जीत 2027 में भी दोहराई जाएगी?
इतिहास बताता है कि ऐसा मान लेना जल्दबाज़ी होगी कि स्थानीय निकाय चुनावों के नतीजे सीधे विधानसभा चुनावों में ट्रांसलेट हो जाते हैं।
विपक्ष की स्थिति: कांग्रेस दूसरे नंबर पर, अकाली दल की आंशिक वापसी
इन चुनावों में कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही, लेकिन पार्टी का प्रदर्शन उसकी उम्मीदों से कम रहा।
शिरोमणि अकाली दल को कुछ इलाकों में फायदा हुआ है, जिसे आंशिक वापसी कहा जा सकता है।
वहीं भाजपा की राजनीति को पंजाब लगातार नकारता दिख रहा है—इन चुनावों में उसका प्रदर्शन बेहद सीमित रहा।
आरोप-प्रत्यारोप का दौर
आम आदमी पार्टी का दावा है कि ये नतीजे भगवंत मान सरकार के कामकाज पर जनता की मुहर हैं और ग्रामीण इलाकों में सरकार की स्वीकार्यता बढ़ी है।
वहीं कांग्रेस का तर्क है कि पंचायत और जिला परिषद चुनाव सरकार की लोकप्रियता का पैमाना नहीं होते और विधानसभा चुनाव पूरी तरह अलग होंगे। इसके साथ ही कांग्रेस ने चुनावों में धांधली और “चुनाव चोरी” के आरोप भी लगाए।
शिरोमणि अकाली दल ने विपक्षी उम्मीदवारों के साथ ज़ोर-जबरदस्ती और सरकारी तंत्र के दुरुपयोग के आरोप लगाए।
केजरीवाल का जवाब और एक अहम स्वीकारोक्ति
इन आरोपों पर आम आदमी पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री भगवंत मान के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सभी आरोपों को सिरे से खारिज किया।
केजरीवाल ने कहा कि 580 सीटें ऐसी थीं जहां जीत-हार का अंतर 100 वोटों से भी कम था। इनमें से
- 261 सीटें आम आदमी पार्टी ने जीतीं
- 319 सीटें विपक्ष के खाते में गईं
उन्होंने कहा कि अगर ज़िला कलेक्टर या एसडीएम को फोन करने की ज़रूरत होती, तो विपक्ष की सीटों पर भी वोट आम आदमी पार्टी के पक्ष में पड़ सकते थे—लेकिन पार्टी ने “धक्का-शाही” नहीं की।
हालांकि, इस बयान से यह सवाल भी खड़ा होता है कि क्या वाकई चुनावी नतीजों को प्रभावित करना इतना आसान है? यह बयान अनजाने में ही चुनावी प्रक्रिया की संवेदनशीलता को उजागर करता है।
2027 पर नज़र
फिलहाल आम आदमी पार्टी जश्न मना रही है, लेकिन जैसा कि इतिहास बार-बार बताता है—स्थानीय निकाय चुनावों की जीत को विधानसभा चुनाव की गारंटी मान लेना राजनीतिक भूल होगी।
अब असली परीक्षा 2027 के विधानसभा चुनाव होंगे, जहां यह तय होगा कि यह बढ़त कायम रहती है या नहीं।
