December 18, 2025 2:36 am
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शांति बिल कितनी अशांति लेकर आएगा!

परमाणु ऊर्जा बिल 2025 में नागरिक परमाणु दायित्व अधिनियम 2010 को खत्म करने का प्रस्ताव। जानिए यह बिल क्यों नागरिक सुरक्षा और देश के लिए खतरनाक है।

परमाणु ऊर्जा बिल 2025 असलितय में नागरिक सुरक्षा पर खतरा

जब हमारे मोबाइल फोन की जासूसी का मुद्दा सामने आया था, तब पूरे देश में चिंता और हंगामा मच गया था। सरकार को ‘संचार साथी’ ऐप की अनिवार्यता तक वापस लेनी पड़ी। लेकिन इसी तरह का एक और बेहद खतरनाक कानून चुपचाप लाया जा रहा है, जिस पर आम जनता में लगभग कोई चर्चा नहीं है। यह कानून है परमाणु ऊर्जा बिल—एक ऐसा विधेयक जो सीधे-सीधे नागरिकों की सुरक्षा और जीवन-मरण से जुड़ा हुआ है।

क्या है यह नया परमाणु ऊर्जा बिल?

सरकार ने इस बिल को बेहद आकर्षक और सकारात्मक नाम दिया है—Sustainable Harnessing and Advancement of Nuclear Energy for Transforming India Bill 2025। इसका संक्षिप्त नाम रखा गया है ‘शांति’। इस बिल को 15 दिसंबर को लोकसभा में पेश किया गया।

नाम भले ही शांति का हो, लेकिन इसके भीतर छिपे प्रावधान देश की सुरक्षा और नागरिकों के अधिकारों के लिए गंभीर खतरे पैदा करते हैं।

सबसे खतरनाक प्रावधान: नागरिक दायित्व कानून को खत्म करना

इस बिल का सबसे महत्वपूर्ण और खतरनाक पहलू है नागरिक परमाणु दायित्व अधिनियम 2010 को समाप्त करना।

इसका सीधा-सा अर्थ यह है कि:

  • परमाणु रिएक्टर बनाने वाली कंपनियों और सप्लायर्स को किसी भी दुर्घटना की जिम्मेदारी से पूरी तरह मुक्त कर दिया जाएगा।
  • यदि परमाणु संयंत्र में कोई तकनीकी खामी, डिजाइन दोष या निर्माण संबंधी कमी होती है और उससे दुर्घटना होती है, तो सप्लायर पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं होगी।
  • मुआवज़ा देने या सज़ा भुगतने की जिम्मेदारी केवल उस संस्था की होगी जो पावर प्लांट चला रही है।

आसान शब्दों में कहें तो परमाणु तकनीक सप्लाई करने वाली कंपनियों को पूरी तरह अभयदान दे दिया गया है।

रोज़मर्रा की मिसाल से समझिए

अगर आप कोई गाड़ी खरीदते हैं और उसमें मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट निकलता है, तो उसकी जिम्मेदारी सिर्फ दुकानदार की नहीं होती, बल्कि उस गाड़ी को बनाने वाली कंपनी की होती है।

  • कंपनी को गाड़ी ठीक करनी होती है
  • ज़रूरत पड़ने पर बदलनी होती है
  • और यदि उस खराबी के कारण दुर्घटना होती है, तो कंपनी को दोषी माना जाता है

यही नियम टीवी, फ्रिज जैसे घरेलू उपकरणों पर भी लागू होते हैं—गारंटी, वारंटी और जवाबदेही होती है।

लेकिन परमाणु ऊर्जा जैसे खतरनाक और संवेदनशील क्षेत्र में सरकार यह कह रही है कि कोई गारंटी नहीं, कोई वारंटी नहीं, और सप्लायर की कोई जिम्मेदारी नहीं

2010 का कानून क्यों बनाया गया था?

2010 में नागरिक परमाणु दायित्व कानून इसलिए बनाया गया था ताकि:

  • परमाणु दुर्घटना की स्थिति में नागरिकों को मुआवज़ा मिल सके
  • कंपनियों को लापरवाही से रोका जा सके
  • सुरक्षा मानकों को सख्ती से लागू किया जा सके

उस समय भी यह माना गया था कि मुआवज़ा अपर्याप्त है और कानून में कई कमियां हैं, लेकिन कम से कम यह स्वीकार किया गया था कि नागरिक सुरक्षा ज़रूरी है।

अब 2025 के इस नए बिल में उसी कानून को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है।

किसके हित में है यह बिल?

यह सवाल बेहद ज़रूरी है:

  • सरकार परमाणु सप्लायर्स को क्यों बचाना चाहती है?
  • क्या यह विदेशी और बड़ी कॉरपोरेट कंपनियों को आकर्षित करने के लिए किया जा रहा है?
  • क्या नागरिकों की सुरक्षा से ज़्यादा महत्वपूर्ण कंपनियों का मुनाफ़ा हो गया है?

यही वजह है कि विपक्ष इस बिल का विरोध कर रहा है। लेकिन केवल संसद में विरोध पर्याप्त नहीं है।

आम जनता को क्यों चिंता करनी चाहिए?

परमाणु ऊर्जा कोई साधारण उद्योग नहीं है। एक छोटी सी चूक:

  • हज़ारों लोगों की जान ले सकती है
  • पीढ़ियों तक पर्यावरण को ज़हरीला बना सकती है
  • पूरे इलाके को रहने लायक नहीं छोड़ सकती

इसलिए यह सवाल सिर्फ नीति या विकास का नहीं, बल्कि हमारी और आपकी ज़िंदगी का है।

निष्कर्ष

परमाणु ऊर्जा बिल 2025 एक ऐसा कानून है जिसे बेहद सावधानी से समझने और परखने की ज़रूरत है। जिस तरह मोबाइल जासूसी पर देश ने सवाल उठाए थे, उसी तरह इस बिल पर भी सवाल उठाने चाहिए।

हमें सरकार से पूछना चाहिए— जब खतरा जनता को उठाना है, तो सुरक्षा और जवाबदेही से कंपनियों को क्यों मुक्त किया जा रहा है?

मुकुल सरल

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