December 20, 2025 10:43 pm
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मनरेगा नहीं तो वोट नहीं: देशभर में आक्रोश

जी राम जी बिल के खिलाफ देशभर में मजदूर और किसान सड़कों पर उतर आए हैं। मनरेगा हटाने के फैसले पर आग, नारे और चेतावनी—“मनरेगा नहीं तो वोट नहीं।”

जी राम जी’ बिल के खिलाफ सड़कों पर उतरे मजदूर–किसान

देश के अलग–अलग हिस्सों से जो तस्वीरें सामने आ रही हैं, वे सिर्फ विरोध की नहीं हैं, वे चेतावनी हैं। एक तरफ संसद में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) को हटाकर जी राम जी (G RAM G) बिल पास किया गया और दूसरी तरफ उसी दिन देशभर में मजदूरों और किसानों ने इस नए कानून को आग के हवाले कर दिया।

उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल से लेकर बिहार तक एक ही नारा गूंजा—
“मनरेगा नहीं तो वोट नहीं।”

ये दोनों तस्वीरें अपने आप में बहुत कुछ कहती हैं। ये बताती हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जितनी आसानी से यह मान लिया था कि मनरेगा हटाकर ‘जी राम जी’ लाया जाएगा और लोग ‘विकसित भारत’ के नाम पर मंत्रमुग्ध हो जाएंगे—वह जमीन पर होता हुआ नहीं दिख रहा।

🔥 ‘मनरेगा किसी के बाप का नहीं है’

गांव–देहात का मजदूर साफ शब्दों में कह रहा है—
“मनरेगा हमारा हक है, किसी के बाप का नहीं।”

यह नारा सिर्फ एक राज्य या एक संगठन तक सीमित नहीं रहा। यह पूरे देश में गूंजा है। और यह गूंज बताती है कि अगर यह विरोध और बढ़ा—जिसकी पूरी आशंका है—तो सरकार के लिए हालात बेहद मुश्किल हो सकते हैं।

क्योंकि खेतों और खलिहानों में काम करने वाला मजदूर अगर नाराज हो जाए और किसान उसके साथ खड़ा हो जाए, तो सरकार की खटिया खड़ी कर देता है।

📊 30 करोड़ मजदूर और सरकार की अनदेखी

देश में करीब 30 करोड़ मनरेगा मजदूर पंजीकृत हैं। यह तब है, जब पिछले 11 वर्षों में बड़े पैमाने पर मजदूरों के नाम काटे गए, भुगतान रोका गया और काम के दिन घटाए गए।

अब सरकार कह रही है कि 100 दिन की जगह 125 दिन का रोजगार दिया जाएगा। लेकिन मजदूर इसे झुनझुना मान रहे हैं। उनका साफ कहना है कि यह नया बिल रोजगार की गारंटी नहीं, बल्कि गैरंटी खत्म करने की तैयारी है।

🏛️ संसद के अंदर–बाहर विरोध, जंतर–मंतर पर रोक के बावजूद प्रदर्शन

इस पूरे मसले पर विरोध सिर्फ सड़कों तक सीमित नहीं रहा। संसद के भीतर और बाहर, संसद की सीढ़ियों पर, और देश की राजधानी दिल्ली के जंतर–मंतर तक आवाज उठी।

19 दिसंबर को दिल्ली पुलिस ने जंतर–मंतर पर प्रदर्शन की अनुमति नहीं दी, लेकिन इसके बावजूद भाकपा (माले) के सांसद, प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता इकट्ठा हुए। उनकी एक ही मांग थी—

रोजगार की गारंटी चाहिए, भीख नहीं।

🎶 बिहार में रैली, गीतों के साथ ऐलान

जहां कई राज्यों में छोटे–छोटे समूहों में प्रदर्शन हुए, वहीं बिहार में मनरेगा मजदूरों ने रैली निकाल दी। गाना गाते हुए, नारे लगाते हुए मजदूरों ने साफ ऐलान किया—

मनरेगा से छेड़छाड़ सरकार को भारी पड़ेगी।

🌍 वर्ल्ड बैंक भी मानता है मनरेगा को ‘बेस्ट सेफ्टी नेट’

यह बात सरकार शायद भूल गई है कि कोरोना महामारी के दौरान वर्ल्ड बैंक ने खुद मनरेगा को दुनिया का सबसे बेहतर सेफ्टी नेट बताया था।

जब शहरों से मजदूरों को भगाया गया, तब गांव लौटकर मनरेगा के सहारे ही उन्होंने अपनी जान बचाई। आज वही मजदूर कह रहा है कि अगर यह जीवन रेखा काटी गई, तो वह चुप नहीं बैठेगा।

🚨 “जी राम जी” के खिलाफ देशव्यापी हुंकार

भदोही (उत्तर प्रदेश), टोंक (राजस्थान), हरियाणा, पंजाब—हर जगह से एक ही संदेश आया है—

“मनरेगा चलेगा तो चूल्हा जलेगा, बाजार चलेगा।”

यह सिर्फ मजदूरों का सवाल नहीं है, यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था का सवाल है।

✊ आखिर सवाल यही है…

हो सकता है सरकार को कांग्रेस पसंद न हो।
हो सकता है नेहरू–गांधी नाम से चिढ़ हो।
लेकिन उसकी सजा मजदूरों को क्यों दी जा रही है?

अगर मनरेगा खत्म होगा, तो सिर्फ एक कानून नहीं जाएगा—
लोगों की रोजी–रोटी जाएगी।

और मजदूर साफ कह चुका है—
वोट से जवाब मिलेगा।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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