December 19, 2025 12:58 pm
Home » देशकाल » जी-राम-जी बिल पास: मनरेगा से गांधी नाम हटाने की राजनीति

जी-राम-जी बिल पास: मनरेगा से गांधी नाम हटाने की राजनीति

लोकसभा में जी-राम-जी बिल पास होने से मनरेगा और गांधी की सोच पर संकट। जानिए कैसे यह कानून ग्रामीण मज़दूरों के अधिकार छीनता है।

लोकसभा में विपक्ष के भारी विरोध को धता बता मनरेगा को किया सरकार ने खत्म

लोकसभा में गुरुवार को जिस तरह से जी-राम-जी (G-RAM-G) बिल पारित किया गया, उसने सिर्फ एक कानून नहीं बदला, बल्कि देश की राजनीति, विचारधारा और ग्रामीण भारत के भविष्य को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह वही सदन है, जहां कभी महात्मा गांधी के नाम पर बनी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को भारत के सबसे गरीब ग्रामीण मज़दूरों के लिए जीवनरेखा माना गया था। लेकिन अब उसी कानून को नए नाम और नए ढांचे में बदलकर पेश किया गया है।

यह महज़ एक प्रशासनिक बदलाव नहीं है। यह उस राजनीतिक परियोजना का हिस्सा है, जो 2014 के बाद से लगातार दिखाई देती रही है—जहां-जहां महात्मा गांधी का नाम है, वहां-वहां ‘डिलीट’ बटन दबाने की कोशिश। दिल्ली की सत्ता में आते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दिशा में कदम बढ़ाए और अब लोकसभा में जी-राम-जी बिल के पास होने के साथ इस मुहिम को एक नया मुकाम मिल गया है।

गांधी नाम हटाने की सुनियोजित कोशिश

सरकार सार्वजनिक मंचों पर आज भी महात्मा गांधी को नमन करती है। विदेशी मेहमानों के सामने राजघाट जाना अब भी एक औपचारिक रस्म है। लेकिन सवाल यह है कि किसका काल चल रहा है? नीति और कानून में गांधी की सोच, गांधी का नाम और गांधी की कल्पना को लगातार किनारे किया जा रहा है।

मनरेगा केवल रोजगार योजना नहीं थी। यह गांधी की उस अवधारणा से जुड़ी थी, जिसमें गांव अपने विकास का निर्णय खुद करते हैं। पंचायतें तय करती थीं कि काम कहां होगा, कैसे होगा और किसे मिलेगा। जी-राम-जी बिल में यह अधिकार लगभग समाप्त कर दिए गए हैं। सारा नियंत्रण केंद्र सरकार के हाथों में सिमटता दिखाई देता है।

रोजगार देने का नहीं, रोजगार छीनने का कानून?

विपक्ष और मज़दूर संगठनों ने इस बिल का तीखा विरोध किया है। उनका कहना है कि यह कानून रोजगार देने से ज़्यादा रोजगार न देने का कानून बनकर रह गया है। आशंका जताई जा रही है कि देशभर के मनरेगा मज़दूरों को लंबे समय तक काम नहीं मिलेगा, और उनकी मज़दूरी पर सौदेबाज़ी या दावा करने की ताकत खत्म हो जाएगी।

आलोचकों का कहना है कि यह व्यवस्था ग्रामीण मज़दूरों को फिर से एक तरह के जमींदारी दौर में धकेलने की कोशिश है, जहां उनके पास न अधिकार होगा, न गारंटी—सब कुछ ‘राम भरोसे’।

पंचायतें बेअसर, राज्य सरकारें कमजोर

जी-राम-जी बिल के तहत सबसे बड़ा झटका पंचायत व्यवस्था को लगा है। जिन पंचायतों के पास अब तक यह अधिकार था कि मनरेगा के तहत कौन-सा काम होगा, वे अब लगभग गायब कर दी गई हैं। राज्य सरकारों की भूमिका भी सीमित होती जा रही है, जिससे पूरा ढांचा अत्यधिक केंद्रीकृत बनता दिख रहा है।

यह सीधा-सीधा गांधी के विकेंद्रीकृत राष्ट्र निर्माण के विचार पर हमला है। गांधी का सपना था कि ग्रामीण भारत अपने विकास की कल्पना खुद करे। लेकिन मौजूदा सरकार के लिए यह कल्पना असहज है।

लोकसभा में विपक्ष का विरोध

लोकसभा में इस बिल के पास होने के दौरान विपक्ष ने एकजुट होकर विरोध दर्ज कराया। सदन के भीतर और बाहर ‘गांधी, गांधी, गांधी’ के नारे लगे। लेकिन संख्या बल के आगे विपक्ष की आवाज़ दबा दी गई। सरकार यह संदेश देने में सफल रही कि अब देश में गांधी का नहीं, किसी और विचार का सिक्का चलेगा।

ममता बनर्जी से लेकर सड़क तक विरोध

इस बिल के खिलाफ देशभर में विरोध देखा जा रहा है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इस कानून को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। हालांकि यह सवाल केवल ममता बनर्जी या कांग्रेस का नहीं है। यह सवाल भारत के भविष्य का है—उस भारत का, जिसकी नींव गांधी और संविधान की सोच पर रखी गई थी।

संविधान के बाद गांधी?

यह पहली बार नहीं है जब मौजूदा सरकार पर संविधान और गांधी—दोनों की भावना को कमजोर करने के आरोप लगे हों। जिस तरह से प्रधानमंत्री सार्वजनिक रूप से कहते हैं कि वे जिनके आगे शीश नवाते हैं, व्यवहार में उन्हीं को ‘निपटाने’ पर उतर आते हैं—चाहे वह महात्मा गांधी हों या फिर देश का संविधान—वह लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है।

अब सवाल आपसे है—क्या जी-राम-जी बिल वास्तव में ग्रामीण भारत के लिए नई सुविधा है, या यह गांधी की विरासत और गरीब मज़दूरों के अधिकारों को खत्म करने की एक और कड़ी?

आप क्या सोचते हैं, हमें लिखकर ज़रूर बताइए।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

Read more
View all posts