नवनीत राणा के बयान, संघ की सोच और नफ़रत की राजनीति का खतरनाक मेल
“आपके कितने बच्चे हैं, उसी से तय होगा कि आप देशभक्त हैं या नहीं।”
यह कथन कोई व्हाट्सएप फॉरवर्ड नहीं है, बल्कि भारतीय जनता पार्टी की पूर्व सांसद नवनीत राणा का है। उनके मुताबिक अगर किसी के बच्चे नहीं हैं, या कम हैं, तो उसकी देशभक्ति संदिग्ध है। यहाँ तक कि उन्होंने यह भी कह दिया कि अगर किसी के 19 बच्चे हों, तो कम से कम “हिंदुओं को देशभक्ति के लिए चार बच्चे तो पैदा करने ही चाहिए।”
नवनीत राणा का यह बयान सुनने में भले ही बेतुका लगे, लेकिन यह एक अकेला बयान नहीं है। यह उसी संगठित सोच और राजनीति की कड़ी है, जो लंबे समय से जनसंख्या, धर्म और देशभक्ति को आपस में गड्डमड्ड कर एक खतरनाक नैरेटिव गढ़ रही है।
देशभक्ति की नई परिभाषा और उसका राजनीतिक मकसद
नवनीत राणा ने देशभक्ति को प्रजनन से जोड़कर जो परिभाषा दी है, वह खुद उनके राजनीतिक आकाओं पर ही लागू नहीं होती। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कोई बच्चे नहीं हैं। संघ प्रमुख मोहन भागवत के भी नहीं। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर जैसे कई बड़े नेता इस “देशभक्ति टेस्ट” में फेल हो जाते हैं।
यानी यह परिभाषा असल में देशभक्ति तय करने के लिए नहीं, बल्कि टीआरपी बटोरने, नफरत फैलाने और एक खास समुदाय को निशाना बनाने के लिए है।
सनातन प्रोग्राम और नफरत का खुला प्रदर्शन
इस बयान का सीधा कनेक्शन दिल्ली में हुए तथाकथित “सनातनी कार्यक्रम” से जुड़ता है, जहाँ खुले मंच से मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाई गई। इसी कार्यक्रम में नफरती तत्वों ने कहा कि “अब मुसलमानों से बदला लेने का समय आ गया है।”
यह कार्यक्रम कोई गली-मोहल्ले का आयोजन नहीं था। यह राजधानी दिल्ली में, केंद्र सरकार की नाक के नीचे, मंत्रियों की मौजूदगी और सरकारी संरक्षण में हुआ। देशभर में सनातन संस्था के बोर्ड लगे थे, और मंच से मुसलमानों को गालियाँ दी गईं, धमकाया गया, और उन्हें देश से बाहर जाने की बात कही गई।
नवनीत राणा का बयान उसी परंपरा का विस्तार है—जहाँ अब सीधे हिंसा की जगह देशभक्ति की परिभाषा बदलकर नफरत को वैध बनाया जा रहा है।
औरतों के शरीर पर सियासत
यह भी ध्यान देने वाली बात है कि इस पूरी बहस में निशाने पर सबसे पहले औरतें हैं। उनसे कहा जा रहा है कि देश बचाने की जिम्मेदारी उनके गर्भ पर है। कितने बच्चे पैदा करने हैं, कब करने हैं, और क्यों करने हैं—यह सब अब राजनीतिक एजेंडा बन चुका है।
2025 और 2026 के दौर में, जब महंगाई, बेरोज़गारी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मुद्दे असली संकट हैं, तब हिंदू औरतों को यह डर दिखाया जा रहा है कि वे “खतरे में हैं”, जबकि आंकड़ों के मुताबिक देश की आबादी में हिंदू लगभग 80 प्रतिशत हैं।
फिर भी सत्ता के गलियारों से कहा जा रहा है कि हिंदू “खतरे में” हैं, इसलिए ज्यादा बच्चे पैदा करो।
लिस्ट बनाम सच
नवनीत राणा के बयान के बाद सोशल मीडिया पर लोग व्यंग्य में “लिस्ट” बनाने लगे हैं—उन नेताओं की लिस्ट, जिनके एक, दो या तीन बच्चे हैं या बिल्कुल नहीं हैं। यह लिस्ट लंबी है और सीधे-सीधे सत्ता के शीर्ष तक जाती है।
यही इस पूरे बयान की सबसे बड़ी विडंबना है।
असली सवाल
असल सवाल यह नहीं है कि किसके कितने बच्चे हैं। असल सवाल यह है कि—
- क्या देशभक्ति अब नफरत से तय होगी?
- क्या औरतों के शरीर पर कब्ज़ा जमाना राष्ट्रवाद है?
- क्या अल्पसंख्यकों को डराना ही अब राजनीति का स्थायी एजेंडा बन चुका है?
नवनीत राणा का बयान एक चेतावनी है। यह बताता है कि देश को किस दिशा में ले जाया जा रहा है—जहाँ नागरिक नहीं, सिर्फ “उत्पादक शरीर” चाहिए; जहाँ सवाल नहीं, सिर्फ नारे चाहिए; और जहाँ देशभक्ति अब संविधान से नहीं, संघ की स्क्रिप्ट से तय होगी।
