October 6, 2025 10:18 am
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मोदी सरकार क्यों डरी एक शांतिपूर्ण आवाज़ से?

लद्दाख के सोनम वांग्चुक की गिरफ्तारी और डीजीपी द्वारा उठाए गए पाकिस्तान/विदेशी फंडिंग के दावों ने राष्ट्रीय बहस को तेज कर दिया है। पढ़ें पूरा विश्लेषण और क्या है सच-क्या राजनीतिक दमन?

अब तो सोनम वांगचुक को दुश्मन साबित करने के लिए पाकिस्तानी एंगल भी ढूंढ निकाला गया

लद्दाख के प्रसिद्ध पर्यावरणविद और आविष्कारक सोनम वांग्चुक की हालिया गिरफ़्तारी ने देश में धीमे-धीमे आक्रोश से एक बड़ी राष्ट्रीय बहस जगा दी है। वांग्चुक, जिन्हें उनकी लोकप्रियता, नवाचार और सामाजिक सक्रियता के लिए जाना जाता है, को लेह/लद्दाख में चल रहे विरोध-प्रदर्शन के सिलसिले में गिरफ्तार कर जोधपुर भेजा गया। सरकार ने उनकी गिरफ्तारी की वजह के तौर पर न केवल स्थानीय अशांति बल्कि विदेशी कनेक्शन और फंडिंग के आरोप भी पेश किए हैं — जिसे अधिकारी ‘सबसे महत्वपूर्ण मसला’ बता रहे हैं।

गिरफ्तारी पर सरकारी स्पष्टीकरण — क्या कहा जा रहा है?

केंद्र सरकार और स्थानीय प्रशासन ने कहा है कि लद्दाख में जो हिंसा और जौश (गुस्सा) फूटा, उस पर व्यापक जांच चल रही है और सोनम वांग्चुक का नाम जांच के केंद्र में है। आधिकारिक बयानों में यह भी कहा गया कि वांग्चुक के खिलाफ कुछ ऐसे तथ्य मिले हैं जिन पर अलग-अलग एजेंसियाँ — जैसे FCRA/विदेशी फंडिंग की जाँच और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े विभाग — पहले से काम कर रही हैं।

ध्यान देने वाली बात यह भी रही कि आधिकारिक रिलीज़ में उनका नाम कई जगह ठीक से तक नहीं लिखा गया (उन्हें “सोनल” कहा गया), जो कि सरकारी रवैये पर और सवाल खड़े करता है।

डीजीपी का पाकिस्तान-एंगल और विदेशी कनेक्शन

सरकारी और पुलिस अधिकारियों ने खुलकर यह संकेत दिया कि मामला सिर्फ स्थानीय असंतोष तक सीमित नहीं है। डीजीपी और अन्य अधिकारियों के बयानों में जो मुख्य दावे आये, उन्हें संक्षेप में इस तरह पेश किया जा रहा है:

  • वांग्चुक के विदेश दौरे और बांग्लादेश/पाकिस्तान जैसी जगहों पर भागीदारी के रिकॉर्ड मौजूद हैं — जिन्हें प्रशासन “संदिग्ध गतिविधि” की तरह देख रहा है।
  • पुलिस का दावा है कि एक पाकिस्तानी POI (पर्सन ऑफ इंटरेस्ट) भी उनके संपर्क में पाया गया और उसके साथ मिलकर कुछ रिपोर्टिंग/इवेंट कराई गयी — जिसके रिकॉर्ड एजेंसियों के पास हैं।
  • सरकार का कहना है कि वांग्चुक पाकिस्तानी “डॉन” अखबार के कार्यक्रम में हिस्सा लिया औऱ वे बांग्लादेश भी गए थे लिहाजा उनके विदेशी विज़िट्स और संपर्कों पर भी जांच चल रही है।
  • FCRA (विदेशी चंदा/फंडिंग) के उल्लंघन की संभावनाओं की जाँच जारी है और अधिकारियों ने कहा कि इस पर आगे कार्रवाई संभव है।

यानी सरकार/डीजीपी का कथन है कि यह केवल स्थानीय प्रदर्शन नहीं बल्कि विदेशों से जुड़े एजेंडा और संभावित विदेशी फंडिंग का मामला भी बन चुका है — और यही सरकारी तर्क गिरफ्तारियों और कड़ी कार्रवाई का प्रमुख आधार बताया जा रहा है।

महत्वपूर्ण नोट: ये सभी बातें प्रशासन और डीजीपी के दावे के रूप में रिपोर्ट की जा रही हैं। इन दावों की साक्ष्य-आधारित स्वतंत्र जाँच और कानूनी प्रक्रिया अभी निर्धारित करेगी कि ये आरोप ठोस हैं या नहीं — और क्या इन्हें लोकतांत्रिक आंदोलन दबाने के लिए बहाना बनाया जा रहा है क्योंकि ये सारी बातें पहले से public domain में हैं और इनमें से किसी को भी कभी छुपाया नहीं गया।

लद्दाख में हिंसा और पुलिस प्रतिक्रिया

लेह में हालिया घटनाओं का ज़िक्र करते हुए प्रशासन ने कहा कि बीजेपी ऑफिस पर आग लगी, पुलिस ने कार्रवाई की और प्रदर्शन के दौरान गोलीबारी की घटनाएँ हुईं — जिसमें रिपोर्ट के मुताबिक चार लोग मारे गए और दर्जनों घायल हुए। सरकार इसे कानून-व्यवस्था का मुद्दा बता रही है, जबकि प्रदर्शनकारियों और सक्रिय नागरिक समाज का कहना है कि केंद्र की नीतियों और स्थानीय लोगों की अनसुनी मांगों ने गुस्से को भड़काया।

सवाल यह उठता है कि अगर मामला राष्ट्रीय सुरक्षा/विदेशी कनेक्शन का है तो ऐसे आरोपों की जाँच क्यों सार्वजनिक और पारदर्शी तरीके से नहीं की जा रही — और क्या इसी कवरेज का अभाव है जो लोगों में शक पैदा कर रहा है।

क्या यह दमन है या सुरक्षा की आवश्यकता?

सरकार के सुरक्षा-आधारित दावों और डीजीपी के पाकिस्तान-एंगल के संकेतों के बीच विरोध में यह आरोप है कि असल मकसद शांतिपूर्ण और जड़ से जुड़े सवाल उठाने वालों को आतंक/विदेशी एजेंडों के जरिए बदनाम करना है। दूसरी तरफ़ राज्य का तर्क है कि अगर कोई विदेशी कनेक्शन और फंडिंग है तो वह संवैधानिक सुरक्षा का विषय है और उस पर कार्रवाई आवश्यक है।

कॉर्पोरेट हित और अडानी फैक्टर — एक और बैकड्रॉप

स्थानीय और सामाजिक स्रोतों का मानना है कि लद्दाख के कुछ विकास-परियोजनाओं में बड़े कॉर्पोरेट हित शामिल हैं, और सोनम वांग्चुक जैसे सक्रिय नागरिक इन परियोजनाओं के पर्यावरणीय/भौगोलिक प्रभावों पर सवाल उठा रहे थे — जो उनसे टकराव का कारण बना। कई लोग मानते हैं कि बड़े निवेशों के हितों को देखते हुए वांग्चुक की आवाज़ सरकार और प्राइवेट पावर दोनों के लिए खटकने लगी थी।

राष्ट्रभक्ति, पढ़ा-लिखा वर्ग और सवाल उठाने का जोखिम

वांग्चुक ने गिरफ्तारी से पहले कहा था कि उनकी गिरफ्तारी से देश “जागेगा।” यह बयान उस विश्वास का प्रतीक था कि देश विरोध और सवाल को समझेगा। लेकिन डीजीपी के पाकिस्तान-एंगल जैसे दावे मध्यमवर्ग/शिक्षित तबके के लिए चुनौती हैं — क्या वे समझ पाएँगे कि किस हद तक बहादुरी सवाल पूछने की कीमत चुकानी पड़ सकती है? क्या पढ़े-लिखे वैज्ञानिक, इंजीनियर और चिकित्सक जो शासन के समर्थक रहे हैं, वह भी आश्वस्त रहेंगे कि अगर वे सरकार को असहज प्रश्न उठाएँ तो उनपर भी संदेह नहीं किया जाएगा?

निष्कर्ष

सोनम वांग्चुक की गिरफ़्तारी अब सिर्फ़ एक स्थानीय घटना नहीं रह गयी है — यह एक राष्ट्रीय विमर्श बन चुकी है जिसमें तीन मुख्य धागे जुड़े हैं: (1) स्थानीय मांगें और उनकी अनसुनी आवाज़, (2) सरकार का सुरक्षा-आधारित व विदेश कनेक्शन वाला तर्क, और (3) बड़ी-कॉर्पोरेट परियोजनाओं के साथ होने वाला टकराव। डीजीपी द्वारा उठाया गया पाकिस्तान-एंगल अगर सही साबित होता है तो मामला अलग है; पर यदि ये दावे राजनीतिक दबाव के तहत उपयोग किए जा रहे हैं तो यह लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक उदाहरण बनेगा।

हमारा आग्रह है कि इस पूरे मामले की पारदर्शी, स्वतंत्र और साक्ष्य-आधारित जाँच हो — ताकि न तो वास्तविक राष्ट्रीय सुरक्षा के मसलों को हल्के में लिया जाए और न ही किसी नागरिक की शांतिपूर्ण आवाज़ को दबाने का गलत ढाँचा स्थापित हो।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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