October 6, 2025 12:26 pm
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जाना था ट्रम्प के यहाँ, पहुँच गए चीन: मोदी डिप्लोमेसी का यू-टर्न

मोदी सात साल बाद चीन पहुँचे, SCO में रेड कारपेट स्वागत। ट्रम्प का टैरिफ, बदलता वर्ल्ड ऑर्डर और भक्तों का तुरही-बैंड ड्रामा।

क्या इस twist से सबक सीखेंगे भक्त, विदेश नीति में पलटती है बाज़ी!

भारतीय कूटनीति अब किसी रणनीति की किताब से नहीं, बल्कि फ़िल्मी गानों से चल रही है। ताज़ा गाना है – “जाना था जापान, पहुँच गए चीन”। और इस गाने के हीरो हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।

कल तक चीन के खिलाफ लाल-लाल आंखें दिखाने वाले मोदी जी जब शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन (SCO) की बैठक में चीन की धरती पर रेड कारपेट पर मुस्कुराते नज़र आए। वही चीन, जिसे बहिष्कार करने की अपील भक्तों की WhatsApp University में रोज़ की क्लास थी।

गोदी मीडिया का ‘तुरही स्विच’

जिस गोदी मीडिया ने 2024 तक हमें समझाया था कि “ट्रम्प-मोदी की गले मिलने वाली तस्वीर से शी जिनपिंग का बीपी बढ़ा है”, वही आज गा रहा है – “नया विश्व ऑर्डर, महाशक्तियों का मिलन”
यानी मालिक का रुख बदला, तुरही भी बदल गई। भक्तों को समझाना मुश्किल नहीं, बस टीवी का चैनल बदलना होता है।

सात साल बाद चीन में मोदी: वही पुराना नाटक

मोदी जी सात साल बाद चीन पहुँचे। स्वागत में नाच-गाना, लाल कालीन और चीनी गनेश की मूर्तियाँ। वही चीन, जिसके लिए मोदी जी ने “छोटी-छोटी आँखों वाले गनेश का बायकॉट” करने की सलाह दी थी।
अब वही चीन गनेश की मूर्ति दिखाकर मोदी जी का स्वागत कर रहा है। इसे कहते हैं नमक छिड़कना। और भक्त इसे भी “रणनीतिक मास्टरस्ट्रोक” कहकर पोस्टर छाप देंगे।

ट्रम्प का टैरिफ और मोदी का टर्न

असल वजह यह है कि अमेरिका ने भारत पर 25% टैरिफ लगाकर झटका दिया। भारत की अर्थव्यवस्था डगमगाई और मोदी जी मजबूरन चीन की ओर मुड़े।
यानी “मुमकिन है मोदी” का असली मतलब है – कल तक चीन दुश्मन, आज चीन दोस्त।
भक्तों की मुश्किल यह है कि जो लोग कल तक “Boycott China” लिखकर TikTok पर वीडियो बना रहे थे, आज वही चीन की कंपनियों से सेल्फी रिंग-लाइट खरीद रहे हैं।

SCO: व्यंग्य से आगे का विश्लेषण

अब गंभीर पहलू पर आइए। SCO (शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन) सिर्फ एक प्रतीकात्मक मंच नहीं है। इसमें चीन, रूस, भारत, पाकिस्तान और तुर्की जैसे देश शामिल हैं।

  • भू-राजनीतिक संकेत: भारत का चीन से हाथ मिलाना अमेरिकी वर्चस्व को सीधी चुनौती है।
  • ट्रम्प पर असर: भारत की इस चाल से डोनाल्ड ट्रम्प का दबाव बढ़ेगा। उन्होंने भारत को “dead economy” कहकर नीचा दिखाया था। अब भारत का चीन और रूस के करीब जाना उनकी रणनीति के लिए झटका है।
  • तुर्की की वापसी: वही तुर्की, जिस पर ऑपरेशन सिंदूर के बाद सैंक्शन लगाए गए थे, अब दोबारा मेज़ पर है। यह दिखाता है कि भारत अपनी ज़रूरत के हिसाब से “दोस्ती-दुश्मनी” का खेल खेल रहा है।
  • भारत-चीन रिश्ते: सीमा विवाद और आर्थिक प्रतिस्पर्धा के बावजूद भारत का चीन के साथ खड़ा होना बताता है कि कूटनीति में स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होते, सिर्फ स्थायी हित होते हैं।

भक्तों का बैंड-बाजा

लेकिन भक्तों की समस्या अलग है। उन्हें हर बार तुरही और बैंड-बाजा नए सुर में बजाना पड़ता है। कल तक “नमस्ते ट्रम्प” था, आज “नमस्ते मोदी-शी” है।
कठिनाई यह नहीं कि मोदी जी पलटी मारते हैं, कठिनाई यह है कि भक्त हर पलटी को “नया विश्व ऑर्डर” कहकर तालियां पीटते हैं।

असली सवाल

अब असली सवाल यह है कि जब मोदी, शी और पुतिन एक ही मंच पर खड़े होंगे, तो क्या दुनिया का समीकरण बदलेगा?
क्या यह सचमुच नया विश्व ऑर्डर बनेगा या सिर्फ “गोदी हेडलाइन्स” तक सीमित रहेगा?
और सबसे दिलचस्प – ट्रम्प की प्रतिक्रिया क्या होगी?
इतना तय है कि ट्रम्प की छाती पर साँप तो लोटेगा ही।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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