शी-मोदी–ट्रम्प के रिश्ते किसी टीवी सीरियल सरीखे हो गए हैं
क्या मोदी और ट्रम्प का रिश्ता किसी एकता कपूर के टीवी सीरियल से कम है? कभी प्यार, कभी नफ़रत, कभी दोस्ती, कभी धोखा। एक ओर मंच से “दोस्त” कहकर संबोधन, तो दूसरी ओर सोशल मीडिया पर तंज़ और धमकियां। यह रिश्ता अब न सिर्फ़ राजनीतिक विश्लेषकों बल्कि आम जनता के लिए भी पहेली बन गया है। सवाल उठता है—भारत की विदेश नीति किस मोड़ पर खड़ी है और इसका असर 140 करोड़ लोगों पर कैसे पड़ेगा?
बदलता नैरेटिव: मीडिया और पॉलिटिक्स
भारतीय मीडिया ने कभी यह नैरेटिव गढ़ा कि जब मोदी जी ट्रम्प से मिले तो चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को “पसीना छूट गया”। लेकिन वही मीडिया आज कह रहा है कि ट्रम्प “दगाबाज़ दोस्त” साबित हुए।
चीन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में जब मोदी, पुतिन और शी जिनपिंग एक साथ नज़र आए तो अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प की बौखलाहट और बढ़ गई। मीडिया ने पहले इसे “नई विश्व व्यवस्था” कहा, और फिर पलटकर बताया कि मोदी की कूटनीति ने ट्रम्प की नींद उड़ा दी है।
50% टैरिफ और भारत की मुश्किलें
ट्रम्प प्रशासन ने भारत पर 50% टैरिफ का डंडा चलाया।
- सीधा असर: 20 लाख से अधिक नौकरियां ख़तरे में।
- उद्योगों पर चोट: कई स्वदेशी इंडस्ट्रीज़ बर्बाद होने की कगार पर।
- कारण: अंबानी और अन्य कंपनियों द्वारा रूस से सस्ता तेल खरीदकर देशवासियों को देने की बजाय विदेश में बेचना।
ट्रम्प का यह कदम केवल व्यापारिक नहीं बल्कि राजनीतिक दबाव बनाने का प्रयास भी माना जा रहा है।
क्वाड बनाम ब्रिक्स: दो नावों की सवारी
मोदी सरकार एक ओर अमेरिका के नेतृत्व वाले क्वाड (अमेरिका, भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया) में साझेदारी करती है, वहीं दूसरी ओर ब्रिक्स (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) में भी सक्रिय है।
- क्वाड को अमेरिका अपने “चीन-निरोधक” प्रोजेक्ट के रूप में देखता है।
- ब्रिक्स को ट्रम्प ने “अमेरिका विरोधी एजेंडा” करार दिया है।
यानी मोदी सरकार एक साथ दोनों नावों की सवारी कर रही है। सवाल यह है कि यह रणनीति भारत के हित में है या खतरनाक जुआ?
किसानों और मछुआरों का कार्ड
मोदी सरकार अमेरिका के साथ बातचीत में किसानों और मछुआरों के हितों की चिंता जताती है। लेकिन हक़ीक़त यह है कि किसान वही तबका है जिसने 700 से अधिक शहादतें देकर कृषि कानून वापस करवाए।
किसानों को पता है कि सरकार का असली एजेंडा बड़े उद्योगपतियों—अंबानी और अडानी—के हितों से जुड़ा है। यही उद्योगपति अमेरिका में गहरे कारोबारी रिश्ते रखते हैं।
ट्रम्प का दबाव और मोदी का जवाब
- ट्रम्प का दावा: “मैंने भारत-पाकिस्तान युद्ध रुकवाया। वरना न्यूक्लियर तबाही हो जाती।”
- भारत की प्रतिक्रिया: विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बयान दिया—”अमेरिका हमारे लिए अहम है, क्वाड का भविष्य उज्ज्वल है।”
यानी कूटनीतिक भाषा में भारत ने झुकने का संकेत दिया।
लेकिन मोदी जी ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा कि “भारत-अमेरिका साझेदारी मज़बूत है।”
यह विरोधाभास ही बताता है कि रिश्ते प्यार और नफ़रत के बीच झूल रहे हैं।
निष्कर्ष
मोदी और ट्रम्प का रिश्ता न पूरी तरह दोस्ताना है और न पूरी तरह दुश्मनी। यह रिश्ता “लव-हेट” गेम जैसा है—जहां कभी गले लगना, कभी धमकी देना, कभी टैरिफ लगाना और कभी साझेदारी की बात करना शामिल है।
भारत की विदेश नीति फिलहाल इसी दोराहे पर खड़ी है।
सवाल यह है कि—
- क्या ट्रम्प भारत पर लगाया गया 50% टैरिफ हटाएंगे?
- क्या मोदी जी दो नावों पर सवारी करके भारत को सुरक्षित निकाल पाएंगे?
- या फिर यह रिश्ता भारतीय अर्थव्यवस्था और विदेश नीति को और उलझा देगा?