October 6, 2025 12:30 pm
Home » रोज़नामा » मोदी का लाल किले से नफरती भाषण और मीडिया की चुप्पी

मोदी का लाल किले से नफरती भाषण और मीडिया की चुप्पी

PM मोदी के स्वतंत्रता दिवस भाषण में "डेमोग्राफी मिशन" और "घुसपैठिया" जैसे मुद्दों को उछालकर नफरत की राजनीति की गई। लेकिन भारतीय मीडिया ने इस पर कोई सवाल नहीं उठाया। पढ़िए पूरी पड़ताल।

नफ़रती भाषण पर सवाल उठाने के बजाय बेशर्म PR करता गोदी मीडिया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2025 को लाल किले से दिया अपना 103 मिनट का भाषण। लेकिन इस ऐतिहासिक मौके पर जब उम्मीद थी कि वे देश को विकास, समानता और लोकतांत्रिक मूल्यों की राह दिखाएंगे, उन्होंने इसके बजाय “डेमोग्राफी मिशन” जैसे नए नफरती एजेंडे को हवा दी। मोदी के भाषण में बार-बार “घुसपैठिया” और “डेमोग्राफिक बदलाव” की बातें उठीं, जो सीधे-सीधे मुसलमानों को निशाना बनाती हैं।

मीडिया की बेशर्मी

भारत का मीडिया, जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, इस भाषण पर सवाल उठाने के बजाय चुप्पी साधे रहा। न किसी अखबार ने पूछा कि मोदी के भाषण में असली एजेंडा क्या था, न किसी टीवी चैनल ने यह पूछा कि आखिर 11 साल तक सत्ता में रहने के बाद अब अचानक “डेमोग्राफिक खतरे” की बात क्यों की जा रही है।

  • आज तक की अंजना ओम कश्यप हों या टाइम्स नाउ की नविका कुमार, सभी ने मोदी सरकार के इस भाषण को जस का तस प्रचारित किया।
  • इंडियन एक्सप्रेस जैसे अखबारों ने भी बस भाषण का सार छाप दिया, बिना कोई तीखा सवाल उठाए।

RSS एजेंडा और “डेमोग्राफी मिशन”

मोदी ने अपने भाषण में आरएसएस को दुनिया का सबसे बड़ा NGO बताया। सवाल उठता है कि जिस संगठन का आज़ादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं रहा, जिसके नेताओं पर गांधी की हत्या का आरोप रहा, और जिसे खुद सरदार पटेल ने बैन किया था—उसे आज़ादी दिवस पर क्यों महिमामंडित किया गया?

  • 2018 से ही आरएसएस इस “डेमोग्राफिक बदलाव” के नैरेटिव को हवा दे रहा है।
  • 2019 से अमित शाह बांग्लादेशियों को “दीमक” कहकर नफरत फैलाते आए हैं।
  • 2022 में मोहन भागवत ने दशहरे के भाषण में “पॉपुलेशन इंबैलेंस” का मुद्दा उठाया।

स्पष्ट है कि मोदी का “डेमोग्राफी मिशन” इसी आरएसएस नैरेटिव का सीधा विस्तार है।

असम के मुख्यमंत्री का नफरती भाषण

मोदी के सुर में सुर मिलाते हुए असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा शर्मा ने भी स्वतंत्रता दिवस पर हिंदुओं को “डर” दिखाने वाला भाषण दिया। उन्होंने कहा कि अगर आज असम के नौजवान चुप रहे तो 10–20 सालों में “घुसपैठिये” मुख्यमंत्री बन जाएंगे। यहां “अनजान लोग” कहना सीधा-सीधा मुसलमानों के लिए कोड वर्ड था।

असली मुद्दे गायब

मोदी के भाषण में न बेरोज़गारी की चर्चा थी, न महंगाई की।

  • 2 करोड़ नौकरियों का वादा कहाँ गया?
  • अर्थव्यवस्था का संकट क्यों छिपाया गया?
  • मणिपुर की आग क्यों दबाई गई?

इसके बजाय “घुसपैठिया” और “जनसंख्या संतुलन” के नाम पर जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश की गई।

मीडिया का दोहरा मापदंड

इसी बीच जयपुर में पकड़े गए 6 लोग, जो 15 अगस्त पर धमाका करने की साजिश रच रहे थे, हिंदू निकले। यही वजह रही कि यह खबर टीवी स्क्रीन से गायब कर दी गई। अगर वे मुसलमान होते तो पूरे मीडिया ने इसे “आतंकी साजिश” बनाकर दिन-रात चलाया होता।

निष्कर्ष

मोदी का लाल किले का भाषण यह साफ कर गया कि 11 साल सत्ता में रहने के बावजूद उनके पास जनता को दिखाने के लिए कोई ठोस उपलब्धि नहीं है। इसलिए वे अब नफरत और डर की राजनीति पर उतर आए हैं। सवाल यही है कि क्या भारत का लोकतंत्र इतना कमजोर हो गया है कि मीडिया सत्ता की हर नफरती लाइन पर चुपचाप खड़ा रहे?

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

Read more
View all posts

ताजा खबर