वर्ल्ड इनिक्वालिटी लैब रिपोर्ट 2026 के आईने में ‘फील गुड’ भारत
भक्तों, कैसा फील गुड हो रहा है? हमारे परमपूजनीय, सदाविस्मरणीय विश्वगुरु स्वरूप मोदी जी के राज में भारत का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है। और इस बार जो डंका बजा है, वो किसी ओलंपिक, शिक्षा या स्वास्थ्य में नहीं — बल्कि असमानता में। जी हां, वर्ल्ड इनिक्वालिटी लैब रिपोर्ट 2026 के मुताबिक भारत आज दुनिया के सबसे असमान देशों में शुमार है।
अमीरों का राज, गरीबों का संघर्ष
रिपोर्ट बताती है कि भारत में सबसे अमीर 1% आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का करीब 40% है। नाम आप खुद भर लीजिए — अडानी, अंबानी और मित्र मंडली।
अगर दायरा थोड़ा और बढ़ाएं तो तस्वीर और भी ‘फील गुड’ हो जाती है। टॉप 10% अमीरों के पास भारत की 58% संपत्ति है। यानी नेले पर देला। दूसरी तरफ, देश की निचली 50% आबादी के हिस्से में सिर्फ 15% संपत्ति बचती है।
क्या इसके लिए रिपोर्ट की भी ज़रूरत थी?
सवाल ये है कि क्या हमें ये समझने के लिए वर्ल्ड इनिक्वालिटी लैब की रिपोर्ट चाहिए? क्या ये हकीकत हम रोज़मर्रा की ज़िंदगी में नहीं देख रहे?
जिस देश में 80 करोड़ लोग 5 किलो मुफ्त राशन पर ज़िंदा हों, वहां असमानता किसी ग्राफ या चार्ट की मोहताज नहीं होती। ये वो भारत है, जहां एक तरफ थालियां खाली हैं और दूसरी तरफ तिजोरियां छलक रही हैं।
किसान: कर्ज़ में, लाठियों के सामने
मोदी शासन में अमीरों का ख्याल कितना रखा जाता है, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाइए कि जहां किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं, वहीं उद्योगपतियों के कर्ज़ माफ किए जा रहे हैं।
सरकार ने खुद संसद में बताया कि 6.15 लाख करोड़ रुपये का कर्ज़ उद्योगपतियों का माफ किया गया।
महाराष्ट्र में, जहां डबल इंजन की सरकार है, सिर्फ 9 महीनों में 781 किसानों ने आत्महत्या कर ली। देश के बाकी हिस्सों में भी हालात अलग नहीं हैं।
दिल्ली से कुछ ही किलोमीटर दूर राजस्थान के हनुमानगढ़ में किसान सड़कों पर हैं। वे एशिया की सबसे बड़ी इथेनॉल फैक्ट्री के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि कहीं उनका हश्र छत्तीसगढ़ या मध्य प्रदेश के सिंगरौली जैसा न हो जाए — जहां न जमीन बची, न जंगल, न रोज़गार।
विकास किसका?
जब देश की 90% आबादी के हिस्से में सिर्फ 42% संपत्ति बचती हो, तो ज़रा सोचिए कि उस ‘बंटवारे’ में क्या हाल होता होगा। फिर भी हर तरफ एक ही नारा गूंजता है — मोदी हैं तो मुमकिन है।
हां, ये मुमकिन ज़रूर हुआ है कि:
- बेरोज़गारी रिकॉर्ड तोड़ रही है
- किसानों की हालत बदतर है
- और महिलाओं की स्थिति और भी चिंताजनक
महिलाएं और मनुवाद का ‘विकास मॉडल’
मनुवाद की वापसी, मनुस्मृति की शिक्षा और पितृसत्तात्मक सोच का सीधा असर महिला रोजगार पर पड़ा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक महिला लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट सिर्फ 15.7% रह गया है।
इसे ही अगर ‘अच्छे दिन’ कहा जा रहा है, तो सवाल उठना लाज़मी है कि बुरे दिन किसे कहते हैं?
विदेश यात्राएं और देश की हकीकत
शायद यही वजह है कि विकास को खोजने के लिए प्रधानमंत्री को बार-बार विदेश जाना पड़ता है। क्योंकि देश के भीतर अगर नज़र डालें, तो वहां असमानता, बेरोज़गारी, भूख और कर्ज़ साफ दिखाई देते हैं।
निष्कर्ष: रिकॉर्ड तोड़ असमानता का भारत
वर्ल्ड इनिक्वालिटी लैब रिपोर्ट 2026 ने बस उस सच्चाई पर मुहर लगाई है, जिसे जनता पहले से जानती थी। मोदी राज में भारत अमीरों का स्वर्ग और गरीबों का संघर्ष क्षेत्र बनता जा रहा है।
तो अगली बार जब कोई कहे कि भारत का डंका बज रहा है, तो ज़रा पूछिएगा — किसका भारत, और किसके लिए?
