सोनम वांगचुक के नेतृत्व में लद्दाख के लोग फिर से 35 दिन की भूख हड़ताल पर बैठे हैं
मोदी जी, लद्दाख ने ऐसा क्या गुनाह किया है कि उनकी आवाज़ तक आप और आपका मीडिया सुनने को तैयार नहीं? यह सवाल सिर्फ कार्यकर्ता सोनम वांगचुक का नहीं, बल्कि पूरे लद्दाख की जनता का है, जो लगातार अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही है।
सोनम वांगचुक का संघर्ष
लद्दाख के पर्यावरणविद और सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने 35 दिन लंबी भूख हड़ताल शुरू की है। उनका कहना है कि लद्दाख को राज्य का दर्जा (Statehood) और छठे शेड्यूल (Sixth Schedule) में शामिल करना जरूरी है, ताकि यहां की आदिवासी और स्थानीय समुदायों के अधिकार सुरक्षित रह सकें।
2019 में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। लेकिन तब से वहां के लोगों के लोकतांत्रिक अधिकार सीमित हो गए हैं। न विधानसभा है, न चुनी हुई पंचायतें। सिर्फ एक सांसद के भरोसे पूरा लद्दाख लोकतंत्र से वंचित हो गया है।
छठे शेड्यूल की मांग
लद्दाख के विभिन्न समुदायों और राजनीतिक समूहों का कहना है कि यहां की संस्कृति, जनजातीय पहचान और नाज़ुक पर्यावरण को बचाने के लिए छठे शेड्यूल के तहत विशेष संवैधानिक संरक्षण मिलना चाहिए। भाजपा ने 2019 और 2020 के अपने घोषणापत्र में इस वादे को नंबर एक पर रखा था, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
केंद्र सरकार की चुप्पी
जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने जन्मदिन और सरकार के जश्न में व्यस्त हैं, लद्दाख के लोग लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग को लेकर सड़कों पर हैं। मुख्यधारा का मीडिया भी इस आंदोलन को दबा रहा है और इसकी जगह “कदम का पेड़ लगाने” जैसी खबरों को प्राथमिकता दे रहा है।
कारगिल और लेह की एकजुटता
इससे पहले कारगिल में भी बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुए, जिनमें राज्य का दर्जा और छठे शेड्यूल की मांग को दोहराया गया। अब लेह और कारगिल दोनों जगह के लोग इस आंदोलन में एकजुट दिख रहे हैं। यह लद्दाख के इतिहास का अहम मोड़ बनता जा रहा है।
निष्कर्ष
लद्दाख आज लोकतंत्र से वंचित है, जबकि पूरे भारत के नागरिक अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार रखते हैं। सोनम वांगचुक की भूख हड़ताल और जनता का यह आंदोलन हमें याद दिलाता है कि संविधानिक अधिकार किसी भी हिस्से के लोगों से छीने नहीं जा सकते।
सरकार और मीडिया को चाहिए कि वे लद्दाख की आवाज़ सुनें और इस संघर्ष को अनदेखा न करें।