October 28, 2025 9:42 am
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बचके रहना रे बाबा, बचके रहना रहे मोदी जी!

ट्रम्प से क्यों बच रहे हैं मोदी जी? बेबाक व्यंग्य में पढ़िए कैसे ट्रम्प की धमक ने मोदी की विदेश नीति और छवि दोनों को हिला दिया।

रूस के तेल के चक्कर में खटाई में पड़ी ट्रंप से मोदीजी की friendship!

यह कोई मज़ाक नहीं—यह चेतावनी है। क्योंकि ट्रम्पवाका का कोई ठिकाना नहीं। आज मुस्कुराते हैं, कल धमकाते हैं, और परसों वही वीडियो निकाल देते हैं जिसमें कह देते हैं — “मोदी ने तो मेरी बात मान ली।”

तो मोदी जी, आपने अगर इस बार “हर संभव अड्डे” पर ट्रम्प से मिलने से परहेज़ किया, तो 140 करोड़ भारतीयों की सामूहिक राहत की साँस सुनाई दी। सही किया आपने, फोटो-शोटो, झप्पी-मंपी सब ठीक है—but what if इस बार वह पगलाया ट्रम्प आपसे कुछ ऐसा बुलवा देता, जो वह खुद बोल रहा है? तब क्या होता, मोदी जी?

ट्रम्प से दूरी—डर या रणनीति?

देश के भक्त समझते हैं कि इसमें मोदी जी का कोई कसूर नहीं है।
गलती तो नेहरू जी की है!
भक्तों की तर्कशक्ति में तो हर अंतरराष्ट्रीय संकट की जड़ वही हैं। लेकिन फिर भी, सवाल तो बनता है — क्या वाकई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने “old friend” ट्रम्प से डर गए हैं?

क्योंकि ट्रम्प इस वक्त दुनिया के सबसे अनपेक्षित और अनियंत्रित राजनीतिक व्यक्तित्व बन चुके हैं। एक दिन वह कहते हैं कि “मैं और मोदी बहुत अच्छे दोस्त हैं”, और अगले ही दिन घोषणा कर देते हैं — “भारत रूस से तेल खरीदेगा तो मैं खुश नहीं रहूंगा!”

वह दिन जब ट्रम्प ने मोदी जी का मज़ा किरकिरा कर दिया

ज़रा सोचिए, क्वालालंपुर में प्रधानमंत्री मोदी पूरे जल्वे के साथ मंच पर उतरते, कैमरे की चमक, झप्पियाँ, शेक हैंड्स — कितना “फील गुड” मोमेंट होता भारत के लिए!
लेकिन ट्रम्प नामक इस “जानी दुश्मन” ने ऐसा डरा दिया कि मोदी जी को दिल पर पत्थर रखकर यात्रा टालनी पड़ी।
इजिप्ट में भी यही हुआ — गाज़ा सीज़फायर के वक्त ट्रम्प मौजूद थे, और मोदी जी अनुपस्थित।

और यह वही ट्रम्प हैं जिन्हें कभी “सनातनी हिंदू एवार्ड” से नवाजने की तैयारी भक्तों ने खुद की थी। irony इतनी गहरी कि अब वही ट्रम्प, मोदी जी के हर कदम पर छाया बनकर खड़ा है।

विदेश नीति अब “वॉशिंगटन ओरिजिनेटेड” है?

सच कहिए तो आज स्थिति ऐसी है कि अमेरिका ही हमारी विदेश नीति की दिशा तय कर रहा है।
ट्रम्प पहले घोषणा करते हैं, मोदी बाद में प्रतिक्रिया देते हैं।
वो कहते हैं — “भारत रूस से तेल नहीं खरीदेगा।”
और हमारे प्रधानमंत्री की चुप्पी खुद एक जवाब बन जाती है।

अब तो लगता है, कमांड वही चला रहे हैं, और हम तालियां बजा रहे हैं।

भक्तों की दिलचस्प व्याख्या

कांग्रेस लगातार कह रही है कि मोदी जी डर गए हैं,
कि वह “कायर” हैं,
कि उन्होंने ट्रम्प के आगे घुटने टेक दिए।

लेकिन भक्तों का जवाब तय है —
“मोदी जी नहीं डरते, ट्रम्प डराता है क्योंकि गलती नेहरू जी की थी।”
और इसी में पूरा नैरेटिव ढँक जाता है।

देश में लाइट शो, विदेश में साइलेंस शो

जब ट्रम्प तेल पर रोक लगाने की बात कर रहे हैं, तब मोदी जी बिहार के चुनावी दौरे में मोबाइल की टॉर्च से रोशनी करवा रहे हैं —
शायद सोच रहे हों कि “बेगूसराय से निकली ये रोशनी ट्रम्प को डराएगी।”

लेकिन अमेरिका में बैठा ट्रम्प तो रोज़ एक नया बम खोल रहा है —
कहता है, “मुझे अच्छा नहीं लगा कि भारत रूस से तेल खरीद रहा है,”
फिर जोड़ता है, “मगर मोदी ने मेरी बात मान ली।”
अब भक्त चाहें तो इसे “कूटनीतिक जीत” कहें,
पर सच्चाई यही है कि माइक ट्रम्प के हाथ में है।

मोदी जी की चुप्पी — डर की नहीं, गणना की

मोदी जी फिलहाल ट्रम्प से मिलना नहीं चाह रहे।
हर मीटिंग का मौका “थैंक यू, नेक्स्ट टाइम” में बदल रहा है।
वजह?
कहीं ऐसा न हो कि कोई नया वीडियो निकल आए जिसमें ट्रम्प कहें —
“मोदी ने मेरे सामने हामी भरी थी।”

इसलिए यह चुप्पी रणनीतिक है, डरपोक नहीं।
लेकिन जनता के बीच व्यंग्य तो यही चलता रहेगा —
“बचके रहना रे बाबा, बचके रहना रे मोदी जी!”

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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