क्या हिंसा व संशय में डूबे इस राज्य को कोई राहत मिलेगी?
13 सितंबर 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मणिपुर का दौरा किया। मीडिया और सरकारी तंत्र ने इसे “एतिहासिक दिन” बताया, लेकिन मणिपुर के लिए यह दौरा देर से आया मलहम है, जिसे लोग भूलने वाले नहीं हैं। सवाल यह नहीं कि प्रधानमंत्री आए, बल्कि यह कि क्यों 28 महीने लगे?
मई 2023 से मणिपुर जल रहा है।
- जातीय संघर्ष में अब तक 60,000 से अधिक लोग विस्थापित।
- महिलाओं के साथ अमानवीय हिंसा, नग्न परेड और सामूहिक बलात्कार जैसी घटनाएँ।
- चर्च और घर जला दिए गए, पूरी अर्थव्यवस्था चौपट।
इन सबके बीच प्रधानमंत्री मोदी विदेश यात्राएँ करते रहे, संसद का 2024 चुनाव निपट गया, लेकिन मणिपुर के लिए समय नहीं निकाला गया।
मोदी का भाषण: शांति, समृद्धि और प्रगति के जुमले
प्रधानमंत्री ने इंफाल पहुँचकर कहा:
- “मणिपुर वासियों, मैं तुम्हारे साथ हूँ।”
- “भारत सरकार तुम्हारे साथ है।”
- “मणिपुर शांति, समृद्धि और प्रगति का प्रतीक बनेगा।”
उन्होंने 7,000 नए घर बनाने और 7,000 करोड़ की परियोजनाओं की घोषणा भी की। भाषण में बार-बार पीस, प्रॉस्पेरिटी और प्रोग्रेस (PPP) दोहराया गया।
लेकिन हकीकत यह है कि:
- शांति उसी सरकार के दौरान टूटी।
- समृद्धि हिंसा और विस्थापन में डूबी।
- प्रगति के नाम पर अब महज घोषणाएँ हैं।
ज़मीनी सच: 28 महीने क्यों लगे?
प्रधानमंत्री मोदी को मणिपुर आने में 28 महीने क्यों लगे?
- विपक्ष और नागरिक समाज बार-बार सवाल उठाते रहे कि मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को पद पर क्यों बनाए रखा गया, जबकि उन पर हिंसा बढ़ाने के आरोप थे।
- कई रिपोर्ट्स (The Wire और Reporters’ Collective की “Manipur Files”) ने खुलासा किया कि कॉल रिकॉर्ड्स तक से हिंसा की साजिशों के सूत्र मिले, लेकिन केंद्र सरकार ने कदम नहीं उठाए।
- प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में न तो इस विफलता पर अफसोस जताया और न ही जिम्मेदारी ली।
समुदायों का जिक्र नहीं: कुकी और मैतेई की चुप्पी
मणिपुर हिंसा का सबसे बड़ा पहलू है—
- कुकी (आदिवासी समुदाय, हिल्स में बसे)
- मैतेई (घाटी में बसे)
दोनों के बीच संघर्ष ने पूरे राज्य को बाँट दिया।
लेकिन प्रधानमंत्री के भाषण में न तो कुकी शब्द आया, न मैतेई। सिर्फ़ “हिल्स और वैली” कहकर बात टाल दी गई।
महिलाओं की पीड़ा और प्रधानमंत्री की चुप्पी
2023 में जिस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था—
- महिलाओं को नंगा करके सड़क पर घुमाना,
- सामूहिक बलात्कार करना,
- वीडियो को सार्वजनिक करना।
आज जब प्रधानमंत्री मणिपुर में थे, उन्होंने एक शब्द भी अफसोस का नहीं कहा। न पीड़ित महिलाओं का जिक्र किया, न उस अन्याय पर संवेदना जताई।
राहुल गांधी और मोदी: संवेदनशीलता का फर्क
मई-जुलाई 2023 में जब मणिपुर जल रहा था, विपक्ष के नेता राहुल गांधी चूराचाँदपुर और अन्य हिंसाग्रस्त इलाकों में पीड़ितों से मिलने पहुँचे थे।
इसके उलट प्रधानमंत्री मोदी ने पीड़ितों से दो साल चार महीने बाद संवाद किया और तब भी घोषणाओं से आगे कुछ नहीं कहा।
राजनीतिक पैटर्न: घोषणाएँ बनाम जवाबदेही
प्रधानमंत्री के भाषण का लहजा चुनावी मंच जैसा था—
- “7,000 करोड़ की परियोजनाएँ, 7,000 घर, हेल्थ और एजुकेशन सुविधाएँ”
- लेकिन मणिपुर के लोगों को चाहिए था: न्याय और शांति।
मोदी का यह अंदाज़ वैसा ही दिखा जैसा उन्होंने पहले किया—
- GST को पहले “गब्बर सिंह टैक्स” कहकर लागू करना, फिर चुनावी सीज़न में दरें घटाना।
- महंगाई बढ़ने पर वर्षों तक चुप्पी और फिर अचानक “राहत पैकेज” का ऐलान।
विरोध की गूँज: मणिपुर से असम और लद्दाख तक
प्रधानमंत्री का दौरा केवल मणिपुर तक सीमित नहीं है।
- असम में आदिवासी लगातार अन्याय और दमन के खिलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं।
- लद्दाख में सोनम वांगचुक आमरण अनशन पर बैठे हैं, क्योंकि वहाँ की जनजातीय माँगें अनसुनी की जा रही हैं।
यानी नॉर्थईस्ट और सीमावर्ती राज्य—जिन्हें सरकार ‘रणनीतिक और सांस्कृतिक’ महत्व का बताती है—आज खुद को उपेक्षित और ठगा महसूस कर रहे हैं।
निष्कर्ष: मणिपुर की आग और लोकतंत्र का सवाल
प्रधानमंत्री मोदी का मणिपुर दौरा देर से आया, और भाषण ने राहत की जगह नए सवाल खड़े कर दिए:
- क्या घोषणाएँ न्याय की जगह ले सकती हैं?
- क्या 28 महीने बाद आना नेतृत्व की विफलता का प्रतीक नहीं है?
- क्या प्रधानमंत्री पीड़ितों के जख्मों पर मरहम लगाने की बजाय प्रचार और परियोजनाओं की राजनीति कर रहे हैं?
मणिपुर आज भी जल रहा है—
- कुकी और मैतेई के बीच अविश्वास गहरा है।
- विस्थापितों का पुनर्वास अधूरा है।
- महिलाओं को न्याय नहीं मिला।
इसलिए 13 सितंबर 2025 मणिपुर के इतिहास में सिर्फ़ एक राजनीतिक इवेंट बनकर रह सकता है, जब प्रधानमंत्री आए लेकिन सवालों के जवाब नहीं दे पाए।