मोदी जी, बिहार में फंड दिखा-दिखा कर वोट मांगने का नया style
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बिहार दौरा इस बार योजनाओं की बरसात और चुनावी वादों के नाम रहा। पूर्णिया की सभा से लेकर नितीश कुमार की “धमकाऊ भाषा” तक, सब कुछ इस बार चुनावी मौसम की बेकरारी को साफ़ दिखाता है।
“मैंने दिया राशन, तुम दो वोट” – सीधी डील?
मोदी जी का भाषण इस बार भी चुनावी स्क्रिप्ट से भरा रहा। मुफ्त राशन, 5 लाख का मुफ्त इलाज, प्रधानमंत्री आवास योजना – सबको गिनवाते हुए उनका संदेश साफ़ था:
“मैंने तुम्हें दिया, तुम मुझे वोट दो।”
यानी योजनाओं का अम्बार ही वोट की गारंटी है। सवाल यह है कि 11 साल से केंद्र में और 20 साल से बिहार में सत्ता में रहते हुए क्या वाकई जनता आज भी मुफ्त राशन पर निर्भर हो गई है? अगर 80 करोड़ लोग राशन पर निर्भर हैं, तो विकास कहाँ है?
नीतीश कुमार की धमकी और बंधक जनता
सभा में मौजूद लोगों को जब मोदी जी के “महान” ऐलानों पर तालियाँ बजाने की इच्छा नहीं हुई, तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुद ही धमकी भरे अंदाज़ में कहा:
“राजा बाबू आए हैं, खड़े होकर ताली बजाओ।”
यानी जनता को तालियाँ बजाने तक के लिए आदेश की ज़रूरत है। और यह भी सामने आया कि सभा में भीड़ जुटाने के लिए सरकारी आदेश जारी हुए – जीविका दीदियों और शिक्षिकाओं को बसों में भरकर सभा स्थल पर पहुँचाया गया।
“मखाना” की याद क्यों आई?
मोदी जी ने बिहार के मखाना किसानों का जिक्र किया। लेकिन यह सवाल भी उठता है कि 11 साल में पहली बार यह याद क्यों आई? क्या वजह यह है कि राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और माले के नेताओं ने मखाना किसानों की समस्याओं को सुना और उठाया? चुनाव से ठीक पहले किसानों के नाम पर संवेदनशीलता दिखाना महज़ राजनीतिक मजबूरी लगती है।
रेणू का नाम और राजनीति का खेल
मोदी जी ने मैथिली में भाषण शुरू किया और फणीश्वर नाथ रेणू का जिक्र किया। लेकिन सवाल यह है कि क्या रेणू के मूल्यों को समझे बिना केवल उनका नाम लेना राजनीतिक इस्तेमाल नहीं है? किसानों और गरीबों की हालत आज भी जस की तस है।
अडानी को ‘तोहफ़ा’ और 10 लाख पेड़ों की बलि
सबसे बड़ा खुलासा यही है कि मोदी के भाषण के साथ ही अडानी समूह को भागलपुर में 1,050 एकड़ ज़मीन सौंपने की तैयारी है। 33 साल के लिए एक रुपए प्रति वर्ष पर यह ज़मीन दी जा रही है। इस जमीन को “बंजर” दिखाकर 10 लाख पेड़ काटे जाने की मंज़ूरी दी गई है। यह वही पैटर्न है जो महाराष्ट्र के धारावी प्रोजेक्ट में देखा गया था – चुनाव से पहले अडानी के लिए सरकारी तोहफ़ा।
“घुसपैठिया” का मुद्दा और दोहरा रवैया
मोदी जी ने भाषण में “घुसपैठियों” को बाहर निकालने की बात की। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब बांग्लादेश सरकार खुद कह रही है कि शेख हसीना उनकी नागरिक हैं, तो उन्हें भारत में मेहमान बनाकर क्यों रखा गया है? चुनावी सभाओं में घुसपैठिए का डर दिखाना उसी तरह है जैसे “भेड़िया आया” वाली कहानी।
निष्कर्ष
बिहार की धरती पर इस बार मोदी जी का नया स्टाइल साफ़ दिखा – योजनाओं की बरसात, माफी मांगने का अभिनय, महिलाओं के नाम पर भीड़ जुटाना, और अडानी के लिए सौगातें। लेकिन जनता का बड़ा सवाल अब भी वही है:
“विकास कहाँ है मोदी जी?”