सोनम वांगचुक के अनशन के 16वें दिन शांत लद्दाख के लोगों का धैर्य टूटा
गहरे दुख और चिंता की बात है कि मोदी सरकार के वादों की नाकामी के कारण लद्दाख के लेह में भड़के जैंजी (GenZ) आंदोलन में चार लोगों की मौत पुलिस फायरिंग में बताई जा रही है और सत्तर से अधिक घायल अस्पतालों में भर्ती हैं — जिनमें कई की हालत नाजुक बताई जा रही है। शांतिपूर्ण रहने के लिए विख्यात लद्दाख कैसे हिंसा की इस कगार पर पहुँच गया, यह देश के लिए चिंतनीय प्रश्न है।
क्या मांग थी — और क्यों भड़का आंदोलन?
लेह-लद्दाख के लोग चार साल से शांतिपूर्ण तरीके से बार-बार अनशन पर बैठे, लेह से दिल्ली तक पदयात्रा की और वे मोदी सरकार से दो स्पष्ट मांगें कर रहे थे: 2019 में दिया गया वादा — लद्दाख को एक स्वतंत्र राज्य (Independent State) जैसा दर्जा व छठे अनुसूची (Sixth Schedule) में शामिल करने की गारंटी — पूरी की जाए। यही बुनियादी मांगें हैं जिनकी वजह से यह आंदोलन लगातार चला और स्थानीय युवा बरबस सड़क पर उतर आए। इस बार फिर सोनम वांगचुक की अगुआई में लद्दाख के लोग 35 दिन के अनशन पर थे। कल पंद्रहवें दिन अनशन पर बैठे कुछ लोगों की तबियत खराब हो गई और उसके बाद वहां युवाओं में असंतोष फूट पड़ा। हालांकि खुद सोनम कभी हिंसक प्रदर्शन के पक्ष में नहीं रहे और हिंसा के बाद उन्होंने अपना अनशन खत्म कर दिया।
घटना का सिलसिला — लेह कैसे जला?
बताया जा रहा है कि हजारों (लगभग 5,000 से अधिक) युवा सड़कों पर उतर आए। उनका धैर्य टूट गया — वे बीजेपी के स्थानीय कार्यालय तक पहुँचे, तोड़फोड़ की, भाजपा का झंडा उतार फेंका और आग लगा दी। इसके बाद पुलिस की ओर से की गई फायरिंग में चार लोगों के मारे जाने और सत्तर से अधिक के घायल होने की खबरें सामने आईं। घटनास्थल पर तनाव चरम पर है और अंतर्निहित सवाल साफ है: इसका जिम्मेदार कौन है?
स्थानीय नेताओं और एक्टिविस्ट्स की प्रतिक्रिया
विख्यात समाजसेवी-एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक ने घटना को दिल दहला देने वाला बताया और कहा कि मौते और भारी संख्या में घायल होना उजाड़ देने वाला हादसा है। लेह के एपेक्स बॉडी के चेयरपर्सन चेरिंग दोरजिंग ने भी चार मौतों और कई घायल होने पर गहरा दुख जताया है और इसे भरने वाला जख्म बताया है। जम्मू-कश्मीर के विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सीधे मोदी सरकार से कहा है — लद्दाख को वह दर्जा दिया जाना चाहिए जो 2019 में वादा किया गया था, और इसे किसी तरह का दमन या हिंसा का शिकार न बनाया जाए। उन्होंने चेतावनी दी कि लद्दाख को मणिपुर जैसा न बनने दिया जाए।
मीडिया, टूलकिट और प्रोपेगैंडा का खेल
घटना के बाद जो मीडिया परतें खुलीं, उनमें यह भी बताया जा रहा है कि मामले को बदनाम करने के लिए एक “टूलकिट” प्रकाशित किया गया है और इसे गुमराह करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है — यह दावा किया जा रहा है कि प्रदर्शन के पीछे विदेशी ताकतें या कोई राजनीतिक पार्टी हो सकती है। सोनम वांगचुक ने साफ कहा कि स्थानीय कांग्रेस की ताकत इतनी नहीं कि वह 5,000 लोगों को सड़कों पर ला सके। इस तरह आरोप-प्रत्यारोप से मूल मांगों की चर्चा पीछे धकेल दी जा रही है।
संयोग नहीं — देश के अन्य हिस्सों में भी युवा गुस्से में
इसी समय हिमालय से सटे दूसरे हिस्सों में भी छात्र-युवा सड़कों पर हैं — उदाहरण के लिए उत्तराखंड में SSC पेपर लीक के विरोध में छात्र संघर्षरत हैं। दोनों घटनाओं में युवा पीढ़ी की नब्ज़ एक जैसी लगती है: बेरोजगारी, वादाखिलाफी और उम्मीदों की कुर्की ने जनांदोलन को बढ़ा दिया है।
क्या कारण है इतनी तीव्र प्रतिक्रिया का?
वो युवा जो सालों से बेरोजगारी और वादों के टूटने का सामना कर रहे हैं, जब शांति से आवाज़ उठाते हैं और उन्हें अनसुना किया जाता है — कई बार उन्हीं नेताओं और व्यवस्थाओं के खिलाफ — तो उनका गुस्सा सड़कों पर उतरकर फूट पड़ता है। जब शांतिपूर्ण आक्रोश को दबाने का प्रयास किया जाता है, तब हिंसा की आशंका बढ़ जाती है। लेह जैसी जगह पर, जहां प्रदर्शन परंपरागत रूप से शांतिपूर्ण होते रहे हैं, यह अचानक उबलना और भी चिंताजनक है।
सरकार की जिम्मेदारी और आगे का रास्ता
यह सदा का प्रश्न है — किसे जिम्मेदार ठहराया जाए? केंद्र सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी बनती है कि वह स्पष्ट और त्वरित संवाद करे, वादों को समझे और स्थानीय मांगों का शान्तिपूर्ण समाधान निकाले। गोलीबारी और दमन कभी भी समाधान नहीं दे सकते। उमर अब्दुल्ला जैसे नेताओं ने भी अपील की है कि वार्ता कीजिए, दमन नहीं। युवाओं की माँगें — रोज़गार, राजनीतिक अधिकार और पारदर्शिता — जायज़ हैं और इन्हें सुनना ही देश के लोकतंत्र की मजबूती है।
निष्कर्ष — शांति और संवाद ही एकमात्र रास्ता
लद्दाख का यह जख्म गहरा है। राज्य-रूप देने के वादे और स्थानीय आश्वासनों को नजरअंदाज करना सिर्फ जल्दबाज़ी में आग पर तेल डालने जैसा होगा। केंद्र-शासन को चाहिए कि तुरंत वार्ता की पहल करे, जांच कराए और पीड़ितों को न्याय तथा परिवारों को समुचित मुआवजा दे। साथ ही मीडिया को संतुलित रिपोर्टिंग कर कीलक्षणों को साफ़ दिखाने की ज़िम्मेदारी निभानी चाहिए — ताकि असल मुद्दा पर ध्यान रखा जा सके और केहने को नफरत या साजिश के नाम पर भटका दिया जाए।