बनारस हो या कश्मीर- विरोध के अधिकार पर हर जगह लग रहा ताला
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी पहुंचे तो वहां उनके स्वागत से पहले ही विपक्षी नेताओं को हाउस अरेस्ट कर दिया गया। कांग्रेस के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष अजय राय को लखनऊ में ही नजरबंद कर लिया गया, जबकि सैकड़ों कार्यकर्ताओं को पुलिस ने रोक दिया। यह पूरा घटनाक्रम बताता है कि सत्ता विरोधी नारों से बीजेपी और प्रशासन कितना विचलित है।
गंगा मैया के बुलावे पर, लेकिन विरोध से घबराहट?
मोदी जी ने कहा था कि वे काशी गंगा मैया के बुलावे पर आते हैं। इस बार वे मॉरीशस के प्रधानमंत्री के साथ पहुंचे। लेकिन जिस तरह से उनका तीन किलोमीटर लंबा काफिला चला, उससे यह साफ दिखा कि सरकार को डर था कि कहीं वाराणसी में भी वही माहौल न बन जाए, जैसा गया में बना था—जहां लोगों ने “वोट चोर गद्दी छोड़” के नारे लगाए थे।
बीजेपी कार्यकर्ता भी हाउस अरेस्ट!
स्थिति तब और हास्यास्पद हो गई जब चंदौली में बीजेपी के ही कार्यकर्ता ओम प्रकाश सिंह को पुलिस ने हाउस अरेस्ट कर दिया। दरअसल उनका नाम कांग्रेस नेता से मिलता-जुलता था। पुलिस ने उनकी दलीलें तक नहीं सुनीं कि वे बीजेपी के सक्रिय कार्यकर्ता हैं।
विपक्ष का आरोप: तानाशाही रवैया
कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का आरोप है कि यह सरकार पूरी तरह से तानाशाही रवैया अपना रही है। अजय राय ने कहा कि 300 से ज्यादा कार्यकर्ताओं को घरों में बंद कर दिया गया। सवाल यह उठता है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी अपने ही संसदीय क्षेत्र में जनविरोधी नारों और प्रदर्शनों से घबरा रहे हैं?
जम्मू-कश्मीर से वाराणसी तक: विरोध पर पहरा
हाउस अरेस्ट की राजनीति केवल यूपी तक सीमित नहीं रही। जम्मू-कश्मीर में आम आदमी पार्टी के विधायक मेहराज मलिक को PSA के तहत गिरफ्तार किया गया। जब आम आदमी पार्टी ने श्रीनगर में प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलानी चाही तो पुलिस ने गेट पर तैनाती कर सबको रोक दिया। वहां पहुंचे राज्यसभा सांसद संजय सिंह को भी प्रेस से बात नहीं करने दी गई। यहां तक कि प्रशासन यह बताने को तैयार नहीं था कि रोक क्यों लगाई गई है।
पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी इस कदम का विरोध किया और इसे लोकतंत्र की हत्या बताया।
राहुल गांधी बनाम मोदी: विरोध का अलग अंदाज
जब राहुल गांधी रायबरेली पहुंचे थे और बीजेपी के मंत्री दिनेश प्रताप सिंह ने पूरे लाव-लश्कर के साथ विरोध किया था, तब राहुल गांधी ने उन्हें बुलाकर बातचीत की कोशिश की थी। यह तस्वीर मोदी सरकार के रवैये से बिल्कुल अलग दिखी।
निष्कर्ष: डर की राजनीति?
लोकतंत्र में विरोध होना स्वाभाविक है, लेकिन जिस तरह से विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं को हाउस अरेस्ट किया जा रहा है, उससे यही संदेश जा रहा है कि मोदी सरकार विरोध से डरती है। यही कारण है कि “वोट चोर गद्दी छोड़” का नारा अब वाराणसी में “वोट चोर काशी छोड़” बन गया है।