October 6, 2025 2:33 pm
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पंजाब में बाढ़ का क़हर लेकिन क्यों निगाहें फेरे हुए हैं नेता व मीडिया!

पंजाब में भीषण बाढ़ से 1300 गांव डूबे, 3 लाख एकड़ फसल बर्बाद, 30 से ज्यादा मौतें। सतलुज, बियास और रावी नदियां उफान पर। क्या यह सिर्फ प्राकृतिक आपदा है या सरकारी लापरवाही भी जिम्मेदार?

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पंजाब आज एक भीषण त्रासदी से जूझ रहा है। जिन नदियों ने उसे जीवन दिया, खेतों को उपजाऊ बनाया, वही अब उसके लिए काल बन गई हैं। सतलुज, बियास, रावी और घग्गर नदियां उफान पर हैं, जबकि भाखड़ा और पोंग जैसे बांध ख़तरनाक स्तर पार कर चुके हैं।

लगभग 1300 गाँव पानी में डूब चुके हैं और करीब 3 लाख एकड़ फसल बर्बाद हो चुकी है। अब तक 30 से अधिक लोगों की मौत दर्ज की गई है, जिनमें मासूम बच्चे भी शामिल हैं।

सबसे प्रभावित जिले

लगभग सभी 23 जिलों में बाढ़ का असर दिख रहा है, लेकिन गुरदासपुर, कपूरथला, अमृतसर, पठानकोट, फतेहगढ़ साहिब, पटियाला, होशियारपुर, संगरूर और बठिंडा सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।

इस बार लगातार तीसरी बार, सामान्य से 1000 प्रतिशत अधिक बारिश दर्ज की गई। 1 सितंबर को जहां सामान्यतः 3.4 मिमी बारिश होनी चाहिए थी, वहां 41 मिमी बारिश हुई।

राहत और बचाव कार्य

राहत कार्य जारी हैं। वॉलंटियर राशन, मच्छरदानी और प्राथमिक चिकित्सा का सामान लेकर प्रभावित इलाकों तक पहुँच रहे हैं, लेकिन ज़रूरत की तुलना में यह बेहद कम है।
पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार ने केंद्र से राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर राहत फंड जारी करने की अपील की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री भगवंत मान से हालात की समीक्षा की और मदद का आश्वासन दिया।

पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा ने भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर विशेष राहत पैकेज की मांग की है।

1988 जैसी तबाही की यादें

विशेषज्ञों का मानना है कि यह बाढ़ 1988 के बाद सबसे गंभीर है। उस समय भी सितंबर में चार दिन की भारी बारिश ने पंजाब को तहस-नहस कर दिया था।

इस बार की तबाही की एक बड़ी वजह है हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के ऊपरी इलाकों में असामान्य बारिश। इसके कारण नदियां उफान पर आ गईं और बांधों से अधिक पानी छोड़े जाने से हालात और बिगड़े।

  • भाखड़ा बांध: सतलुज नदी पर, बिलासपुर (हिमाचल)
  • पोंग बांध: बियास नदी पर, हिमाचल-पंजाब सीमा
  • रंजीत सागर बांध (थिन डैम): रावी नदी पर, पठानकोट (पंजाब)

इन सभी का जलस्तर अधिकतम सीमा पार कर चुका है।

पड़ोसी राज्यों पर असर

पंजाब के साथ-साथ हरियाणा भी बुरी तरह प्रभावित है। हथिनीकुंड बैराज ओवरफ्लो कर रहा है। उत्तर प्रदेश में भी नदियां उफान पर हैं।

क्या यह केवल प्राकृतिक आपदा है?

दरअसल, इस आपदा में मानवीय कारणों का योगदान भी उतना ही बड़ा है:

  • ड्रेनेज सिस्टम का नष्ट होना
  • नदियों-नालों पर अवैध कब्ज़ा
  • बाढ़ पट्टियों पर निर्माण कार्य
  • जंगलों की अंधाधुंध कटाई
  • नदियों की सफाई (डिसिल्टिंग) का अभाव

इन कारणों से पानी की निकासी बाधित होती है और बाढ़ और घातक बन जाती है।

निष्कर्ष

पंजाब का यह संकट सिर्फ एक प्राकृतिक आपदा नहीं है, बल्कि अनियोजित विकास और सरकारी लापरवाही का परिणाम भी है।
पहाड़ी राज्य जैसे उत्तराखंड, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर पहले से ही संवेदनशील हैं और वहां की आपदाएँ मैदानों तक तबाही लेकर आती हैं।

आज जब किसान की ज़मीन डूब चुकी है और उसकी मेहनत बर्बाद हो गई है, तब हमारे लिए ज़रूरी है कि इस त्रासदी को केवल “प्राकृतिक” कहकर न टालें, बल्कि इसके पीछे छिपी नीतिगत विफलताओं और लालच को भी पहचानें।

मुकुल सरल

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