पटना की सड़कों से उठी आवाज़: वोट चोर, गद्दी छोड़ – जवाब में क्यों है मुद्दे भटकाने की कोशिश!
पटना की तपती दोपहर थी। सदाकत आश्रम—कांग्रेस का ऐतिहासिक दफ्तर—लोगों की भीड़ से गूंज रहा था। बाहर सड़क पर नीले साफे और आंबेडकर के पोस्टर लहरा रहे थे। हाथों में संविधान की प्रतियां और गले में “वोट चोर, गद्दी छोड़” के नारे लिखी तख्तियां थीं। माहौल में एक ग़जब का जोश था—जैसे यह केवल यात्रा नहीं बल्कि एक राजनीतिक हुंकार हो।
वोटर अधिकार यात्रा का असर
राहुल गांधी की “वोटर अधिकार यात्रा” बिहार की गलियों से होते हुए जिस अंदाज में आगे बढ़ रही है, उसने राजनीति की तस्वीर बदल दी है।
सिवान और गोपालगंज की गलियों से लेकर पटना की भीड़ तक—हर जगह एक ही आवाज़:
“वोट चोर, गद्दी छोड़!”
लोग कहते हैं कि यह नारा अब केवल चुनावी मुद्दा नहीं रहा, बल्कि जनता की रोज़मर्रा की बेचैनी और गुस्से की पहचान बन गया है।
चुनाव आयोग और संदिग्ध वोटर
इस बीच चुनाव आयोग ने तीन लाख बिहारी मतदाताओं को संदिग्ध सूची में डाल दिया। गाँव-गाँव में यह खबर आग की तरह फैली। लोग पूछ रहे हैं कि आखिर क्यों उनके नाम मतदाता सूची से काटे जा रहे हैं। इसी गुस्से को राहुल गांधी की यात्रा ने स्वर दिया है—और भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
सदाकत आश्रम पर हमला
लेकिन यात्रा की बढ़ती लोकप्रियता के बीच पटना में एक और बड़ा राजनीतिक ड्रामा हुआ।
भाजपा के झंडों और नारेबाजी के बीच भीड़ सीधे कांग्रेस दफ्तर पर टूट पड़ी। गाड़ियों के शीशे टूटे, पोस्टर फाड़े गए, कार्यकर्ताओं के साथ धक्का-मुक्की और मारपीट हुई।
कांग्रेस ने इसे भाजपा की बौखलाहट का सबूत बताया और कहा:
“यह हमला भाजपा के विधायकों और गुंडों ने मिलकर किया है। मगर याद रखिए—हम न वोट चोरी से डरेंगे, न हिंसा से।”
राहुल गांधी की नई तस्वीर
भीड़ में राहुल गांधी नीले साफे में दिखे—भीमराव आंबेडकर के पोस्टरों के साथ चलते हुए। उनके साथ तेजस्वी यादव, CPI की एनी राजा और CPIML के दीपांकर भट्टाचार्य भी थे।
दिलचस्प यह कि एनी राजा, जिन्होंने वायनाड से राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था, आज उसी यात्रा में उनके बगल में खड़ी दिखीं।
राजनीति के समीकरण बदलते देख भीड़ जोश में थी।
यात्रा में जनता का जोश
गांव-गांव से उमड़ती भीड़ बाइक पर, कारों पर, यहां तक कि घोड़ा गाड़ी तक पर सवार होकर आ रही थी।
बच्चे हाथों में झंडे लिए, महिलाएं नारे लगातीं, और बुजुर्ग संविधान थामे चलते दिखे।
किसी ने कहा—
“यह भीड़ किराए की नहीं है। यह भीड़ वोट के अधिकार के लिए आई है।”
सड़क पर हर तरफ नारा गूंज रहा था:
“वोट चोर, गद्दी छोड़!”
इतना कि पटना की हवा तक सियासी तंज में बदल गई।
भाजपा की मुश्किलें
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने साफ कहा—
“यह सब भाजपा की टूलकिट है। अपने ही लोगों से गाली दिलवाओ, एफआईआर करवाओ, और फिर कांग्रेस दफ्तर पर हमला करो। असली मकसद है यात्रा के असर को दबाना।”
लेकिन भीड़ को देखकर साफ है कि भाजपा इस यात्रा से बेचैन है।
निष्कर्ष: डर किसका है?
बिहार में यात्रा को केवल कांग्रेस की राजनीतिक मुहिम कहना गलत होगा। यह दरअसल लोगों के वोट के अधिकार की लड़ाई बन चुकी है।
पटना की सड़कों पर भीड़ का जोश साफ कह रहा है कि जनता अब सवाल पूछ रही है।
मूल सवाल यही है—
क्या भाजपा इस जनसैलाब को झुठला पाएगी?
या फिर यह यात्रा बिहार की राजनीति में एक नए मोड़ की शुरुआत है?