मोदी-नीतीश ने अब बिहार जीतने के लिए सरकारी खजाने खोले, जुमलों का अंबार लगाया
चौगाईं (बिहार) से ग्राउंड रिपोर्ट
बिहार की धरती पर इस समय चुनावी सरगर्मी चरम पर है। गांव से शहर तक हर जगह सत्ता और विपक्ष दोनों मोर्चे पर अपनी पूरी ताकत झोंक चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक, और विपक्षी नेताओं से लेकर नए दावेदारों तक—हर कोई इस चुनाव को निर्णायक बनाने में जुटा है।
मोदी का ‘खजाना’ और ‘मां’ का कार्ड
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के लिए 40,000 करोड़ रुपये की योजनाओं की घोषणा कर दी है। इसमें पूर्णिया एयरपोर्ट से लेकर अन्य बड़ी सौगातें शामिल हैं। चुनाव से ठीक पहले इस तरह की घोषणाओं ने साफ कर दिया है कि केंद्र सरकार बिहार को जीतने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है।
इसके साथ ही, मोदी ने अपनी मां के नाम पर भावनात्मक कार्ड भी खेलने की कोशिश की है। ‘मा का अपमान’ को राष्ट्रीय मुद्दा बनाकर पेश किया जा रहा है, लेकिन अभी तक यह जमीनी स्तर पर बड़ा असर करता हुआ नहीं दिख रहा है। सवाल यह भी उठ रहे हैं कि आखिर मोदी जी के लिए बिहार जीतना इतना अहम क्यों हो गया है।
नीतीश कुमार और NDA का दांव
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी चुनाव से पहले घोषणाओं पर घोषणाएं कर रहे हैं। EBC (अति पिछड़ा वर्ग) कार्ड से लेकर कई कल्याणकारी योजनाओं की झड़ी लगाई जा रही है। वहीं NDA के भीतर चिराग पासवान की भूमिका अहम हो गई है। केंद्रीय मंत्री होने के साथ-साथ वह खुद को बिहार की राजनीति में मुख्यमंत्री पद का दावेदार साबित करने में जुटे हैं।
इसी बीच जन सुराज के प्रशांत किशोर भी हर जगह नज़र आ रहे हैं। उनकी गाड़ियों से लेकर प्रचार-प्रसार तक, सब कुछ पैसे की ताकत पर टिका दिख रहा है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि उनका फंडर कौन है और वह किसका वोट काटेंगे। यह चुनावी गणित का अहम फैक्टर साबित हो सकता है।
विपक्ष का ‘बदलो बिहार’ अभियान
दूसरी तरफ विपक्ष भी एकजुट दिखाई दे रहा है। राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और भाकपा-माले के दीपांकर भट्टाचार्य ने ‘वोट चोर, गद्दी चोर’ के नारे के साथ चुनावी मैदान में उतरने की रणनीति बनाई है। उनका कहना है कि अब बिहार में बदलाव का समय आ गया है और जनता इस बार वोट चोरी के खिलाफ खड़ी होगी।
दीपांकर भट्टाचार्य ने घोषणा की है कि भाकपा-माले 45 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। विपक्ष का नारा है—“बदलो बिहार, बेहतर बनाओ बिहार”, जो जमीनी स्तर पर असरदार माना जा रहा है।
प्रतीकों की जंग: गांधी की प्रतिमा और भगवा विवाद
मुसाफ्फरपुर में बीजेपी कार्यकर्ताओं ने महात्मा गांधी की प्रतिमा को भगवा रंग में रंगकर उसे पार्टी का प्रतीकात्मक हिस्सा बनाने की कोशिश की। इसके विरोध में राजग और वाम दलों ने गंगाजल से प्रतिमा को धोकर सांकेतिक विरोध दर्ज कराया। यह घटना बताती है कि इस चुनाव में सिर्फ वोटों की नहीं, बल्कि विचारधारा की भी तीखी लड़ाई लड़ी जा रही है।
नतीजा किसके पक्ष में?
एक ओर मोदी-नीतीश का खजाना और भावनात्मक कार्ड है, वहीं विपक्ष अपनी एकजुटता और वोट चोरी के खिलाफ अभियान पर दांव खेल रहा है। चिराग पासवान और प्रशांत किशोर जैसे फैक्टर चुनावी समीकरण को और जटिल बना रहे हैं। नतीजा किसके पक्ष में जाएगा, यह कहना अभी मुश्किल है, लेकिन इतना तय है कि बिहार की धरती पर 2025 का यह चुनाव बेहद दिलचस्प और निर्णायक साबित होगा।