बिहार चुनाव 2025: एनडीए में खींचतान और गिरफ्तारियां बनीं सुर्खियां
“हमारे साथ अन्याय होता रहता है, साजिशें होती रहती हैं, पर जनता हमें हर बार विजयी बनाती है।” — यह शब्द हैं दरौली विधानसभा से भाकपा (माले) के उम्मीदवार सत्यदेव राम के, जिन्हें नामांकन से ठीक पहले गिरफ्तार कर लिया गया। यह दृश्य केवल एक व्यक्ति की गिरफ्तारी नहीं, बल्कि बिहार की मौजूदा राजनीति का एक प्रतीक बन गया है।
बिहार में विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे सियासी पारा तेज़ होता जा रहा है। एक ओर एनडीए के भीतर सीटों के बंटवारे को लेकर टकराव और असंतोष गहराता जा रहा है, वहीं दूसरी ओर भाकपा (माले) बिना किसी देरी के अपने उम्मीदवार घोषित कर, मैदान में उतर चुकी है।
सत्यदेव राम की गिरफ्तारी: लोकतंत्र के नाम पर साजिश?
दरौली से भाकपा (माले) के उम्मीदवार सत्यदेव राम की गिरफ्तारी ने चुनावी माहौल में हलचल मचा दी है। पार्टी ने इसे “फर्जी मामला” बताते हुए कहा कि यह विपक्ष को रोकने की कोशिश है। गौरतलब है कि भाकपा (माले) के कई उम्मीदवार पहले भी जेल में रहते हुए चुनाव जीत चुके हैं। इस घटना ने एक बार फिर बिहार में लोकतांत्रिक संस्थाओं की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए हैं।
भाकपा (माले) का मास्टर स्ट्रोक: सिम्बल वितरण और रिपोर्ट कार्ड की राजनीति
जब इंडिया गठबंधन में सीटों के बंटवारे पर लंबी खींचतान चल रही है, तब भाकपा (माले)** ने अपने उम्मीदवारों को चुनाव चिन्ह सौंपने और नामांकन कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इससे पार्टी ने साफ संकेत दे दिया है कि वह किसी समझौते का इंतजार नहीं करेगी।
पार्टी ने बिहार की राजनीति में एक नया उदाहरण भी पेश किया है — अपने मौजूदा विधायकों का रिपोर्ट कार्ड जारी करके। इसमें जनता के सामने विधायकों के काम का पूरा लेखा-जोखा रखा गया है। यह न केवल पारदर्शिता का कदम है बल्कि जनता से संवाद की एक नई पहल भी है।
महिलाओं की मजबूत भागीदारी: दिव्या गौतम का उदाहरण
दीघा से पार्टी ने दिव्या गौतम को मैदान में उतारा है — जो पटना वुमेन्स कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं और पार्टी की जानी-मानी कार्यकर्ता भी। दिव्या गौतम का नामांकन और प्रचार ने पूरे पटना में हलचल मचा दी है। उनके बैनरों और नारों से साफ है कि भाकपा (माले)** बिहार में महिला नेतृत्व को नई दिशा देना चाहती है।
एनडीए में खींचतान, जेडीयू में असंतोष
उधर, एनडीए खेमे में सीटों के बंटवारे को लेकर तनाव बढ़ता जा रहा है। जदयू कैडर नाराज़ है कि चिराग पासवान को कई ऐसी सीटें दी गई हैं जो जदयू के पारंपरिक गढ़ मानी जाती हैं। जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा की नाराज़गी भी बनी हुई है। नीतीश कुमार कोशिश कर रहे हैं कि गठबंधन में “बड़े भाई” की स्थिति बनाए रखें, लेकिन असंतोष की लपटें अब सतह पर दिखने लगी हैं।
भाकपा (माले) का जमीनी प्रदर्शन और आने वाला संघर्ष
दरभंगा से लेकर भोजपुर तक भाकपा (माले)** ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है —
- तरारी से मदन सिंह चंद्रवंशी
- अगियाओं से शिव प्रकाश रंजन
- आरा से कम्यूदीन अंसारी
- जिरादेई से अमरजीत कुशवाहा
- पालीगंज से डॉ. संदीप सौरव
इन सभी नामांकनों के दौरान निकले जुलूसों ने स्पष्ट कर दिया है कि पार्टी का जनाधार अब केवल सीमित इलाकों तक नहीं रहा। भोजपुर की धरती से उठ रही यह लाल लहर, सत्ता की राजनीति में एक निर्णायक हस्तक्षेप का संकेत है।
निष्कर्ष: बिहार में नई इबारत लिखने की तैयारी
पिछले चुनाव में 19 सीटों पर लड़ी भाकपा (माले) ने 12 सीटें जीती थीं — जो किसी भी पार्टी का सबसे ऊंचा स्ट्राइक रेट था। इस बार पार्टी अपने उसी जनाधार और संगठनात्मक ताकत के बूते, गठबंधन के झगड़ों से ऊपर उठकर, मैदान में उतर चुकी है।
बिहार का यह चुनाव इसलिए भी अहम है क्योंकि यह दिखाएगा कि क्या जनता भाकपा (माले) जैसे वैकल्पिक, संघर्षशील और पारदर्शी मॉडल को और मज़बूती से स्वीकार करती है या सत्ता के पारंपरिक समीकरण ही फिर से लौटते हैं।