दिन-दहाड़े हत्याओं का बेलगाम सिलसिला और वोटबंदी की चार सौ बीसी पर नीतीश + BJP सरकार घिरी
बिहार में विधानसभा चुनावों की तैयारी शुरू हो चुकी है। लेकिन चुनावी बिगुल के साथ जो सबसे खतरनाक और चिंताजनक संकेत मिल रहे हैं, वे हैं बढ़ती हत्याएं, गैंगवार और सरेआम गोलियों की तड़तड़ाहट।
सुशासन बाबू का बदला हुआ बिहार?
यह वही बिहार है, जहां कभी ‘सुशासन बाबू’ नितीश कुमार की छवि कानून व्यवस्था के मजबूत नेता की थी। लेकिन अब नितीश बाबू बीजेपी की गोद में बैठकर अपने ही शासन को नष्ट करने पर आमादा दिखते हैं।
पटना की गलियों में गोलियों की आवाजें आम हो चुकी हैं। हाल ही में राजधानी में एक गैंगस्टर को मारने के लिए विरोधी गैंग ने पूरी प्लानिंग के साथ एक जाने-माने अस्पताल के भीतर हमला बोला। सरेआम गोलियां चलीं और आराम से हमलावर निकल भी गए। कोई डर, कोई हड़कंप नहीं। आखिर क्यों? क्योंकि बिहार में अब भाजपा का शासन मॉडल है, जिसमें कानून व्यवस्था का हाल किसी से छुपा नहीं।
हत्या पर सांसद का बयान: हत्या तो होती रहती है
इस घटना के बाद सत्ता पक्ष का रवैया और भी चौंकाने वाला है। जेडीयू सांसद ललन सिंह का बयान सुनिए – “अरे भईया, हत्या तो होती रहती है। पहले के राज को भूल गए?”
क्या यही जवाब है आठ करोड़ जनता के सवालों का? तेजस्वी यादव ने हाल ही में कहा कि पिछले कुछ दिनों में पांच से अधिक हत्याएं हो चुकी हैं, और पिछले कुछ हफ्तों में यह आंकड़ा पचास को पार कर चुका है।
वोटबंदी और अपराध का सीधा संबंध
यह अपराध का ग्राफ यूं ही नहीं बढ़ रहा। Special Intensive Revision (SIR) यानी वोटर लिस्ट की जबरन छंटनी और दलित-गरीब-मुस्लिम वोटरों को सूची से बाहर करने की साजिश से जनता में जबरदस्त आक्रोश है।
भागपा (माले) महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने चेतावनी दी है कि:
“अगर नाम काटे गए तो जवाब देना होगा। लड़ाई एक-एक वोट के लिए होगी।”
सवाल सिर्फ इतना नहीं कि वोटर लिस्ट से नाम काटे जा रहे हैं। प्रशासन का रवैया पूरी तरह तानाशाही वाला है। किसान, मजदूर, प्रवासी – सबको घुसपैठिया साबित करने की कोशिश चल रही है। जब पटना जैसे शहर में गोलियां चल रही हों, तो गांव-कस्बों की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।
बीजेपी-नितीश की चुप्पी क्यों?
नगर विकास मंत्री जीवेश मिश्रा का नकली दवाओं का मामला हो या बिहार में लगातार बढ़ता अपराध – हर जगह बीजेपी और नितीश कुमार की चुप्पी कई सवाल खड़े करती है।
- क्या सत्ता बचाने के लिए अपराधियों को खुली छूट दी गई है?
- क्या अपराध और वोटबंदी, दोनों का मकसद एक ही है – जनता को डराना?
- क्या यही सुशासन मॉडल है, जिसमें ‘माइक्रो मैनेजमेंट’ के नाम पर लोकतंत्र का गला घोंटा जाए?
बिहार में बदलाव की आहट
इतिहास गवाह है कि बिहार ने हमेशा बड़े राजनीतिक बदलावों को जन्म दिया है। जेपी आंदोलन हो या मंडल आंदोलन – बिहार की जनता ने अन्याय के खिलाफ सड़क पर उतरकर जवाब दिया है।
इस बार भी विपक्ष ने साफ कर दिया है:
“लड़ाई जमीन पर होगी। हक छोड़ेंगे नहीं।”
2025 के चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि संविधान, लोकतंत्र और बिहार की अस्मिता बचाने की लड़ाई होंगे।
सुशासन बाबू और मोदी जी, क्या आप सुन रहे हैं? बिहारियों की लोकतांत्रिक ताकत को कम आंकना, आपकी सबसे बड़ी भूल साबित हो सकती है।