October 6, 2025 2:29 pm
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कैसे फला-फूला RSS की शाखाओं का जाल

RSS की शाखा क्या है? शाखा में बच्चों को क्या सिखाया जाता है और कैसे खेल-कूद के बहाने हिंदू राष्ट्र की विचारधारा को उनके दिमाग में भरा जाता है। पढ़िए यह विश्लेषणात्मक रिपोर्ट।

RSS शाखा – नफरत की राजनीति का सबसे मजबूत आधार

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) भारत का सबसे बड़ा गैर-पंजीकृत संगठन है। इसकी पकड़ इतनी मजबूत है कि देश की राजनीति से लेकर प्रशासन, शिक्षा और मीडिया तक इसकी शाखाएं फैली हुई हैं। पर क्या आप जानते हैं कि इस पूरे नेटवर्क की बुनियाद, यानी RSS का ‘कोश’ क्या है? वह है – RSS की शाखा।

शाखा की संरचना और उद्देश्य

RSS की शाखा का मुख्य उद्देश्य 5-15 साल के लड़कों को खेल-कूद के बहाने अपनी विचारधारा से जोड़ना है। शाखा में तिरंगा नहीं बल्कि भगवा झंडा फहराया जाता है। शाखा की प्रार्थना ‘नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे’ संस्कृत में होती है और बाद में शाखा प्रमुख बच्चों को ‘हिंदू राष्ट्र’ की शपथ दिलाता है। यह शपथ भारत के संविधान से मेल नहीं खाती, बल्कि इसके विपरीत है।

गुरु गोलवलकर का ‘अफीम’ उदाहरण

गुरु गोलवलकर ने शाखा को अफीम से जोड़ा था। उनका तर्क था कि जैसे मोर को अफीम की आदत लगाकर उसे अपने बगीचे में बांध सकते हैं, वैसे ही खेल-कूद के जरिए बच्चों को शाखा की लत लगाई जा सकती है ताकि उनके दिमाग में हिंदू राष्ट्र की विचारधारा ठूंस दी जाए।

महिलाओं की शाखा में भूमिका

RSS की शाखाओं में लड़कियों के लिए कोई जगह नहीं। उनके लिए अलग से ‘राष्ट्र सेविका समिति’ चलाई जाती है, जहां उन्हें महिलाओं के पारंपरिक हिंदू कर्तव्यों का प्रशिक्षण दिया जाता है।

बॉद्धिक सत्र और प्रचारक निर्माण

शाखा का खेल-कूद केवल बहाना होता है। असल उद्देश्य होता है – ‘शाखा-बॉद्धिक’, यानी विचारधारा का प्रशिक्षण।

  • इनमें गांधी-नेहरू का अपमान, स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं की आलोचना, और औरंगजेब, गजनवी, गोरी जैसे मुस्लिम शासकों की क्रूरता की कहानियां सुनाकर नफरत भरी जाती है।
  • बच्चों को ‘हिंदू वीरता’ के मिथकों से जोड़ा जाता है – जैसे प्रताप, शिवाजी, पृथ्वीराज चौहान।

इन शाखाओं से ही प्रचारक निकलते हैं, जो अविवाहित रहते हुए पूरी ज़िंदगी संगठन को समर्पित करते हैं। ये प्रचारक BJP, ABVP, बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद, वनवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठनों में जाते हैं, वहीं प्रशासन, मीडिया और न्यायपालिका तक में घुसपैठ करते हैं।

व्यक्तिगत अनुभव

लेखक बताते हैं कि बचपन में शाखा जाने का अनुभव खेल-कूद की वजह से आकर्षक था। लेकिन एक दिन जब शाखा इंचार्ज ने गांधी और नेहरू के खिलाफ जहर उगलना शुरू किया, तब उन्हें शाखा के असली उद्देश्य का एहसास हुआ और उन्होंने जाना बंद कर दिया।

RSS का बड़ा नेटवर्क और गुरुदक्षिणा का महत्व

सालाना विजयादशमी पर शाखाओं में गुरुदक्षिणा ली जाती है, जो उनकी फंडिंग का बड़ा स्रोत बनता है। आज BJP की सरकार में सरकारी जमीनें, स्कूलों के मैदान और वित्तीय संसाधन भी शाखाओं के लिए खुले हुए हैं। प्रचारक ही शाखाओं में तय करते हैं कि कौन सा बच्चा, किस अभियान के लिए उपयुक्त है।

निष्कर्ष

RSS शाखा सिर्फ एक शाखा नहीं, बल्कि हिंदू राष्ट्र की राजनीतिक परियोजना का पहला स्कूल है।
यहां से निकले स्वयंसेवक समाज में नफरत, असमानता और ब्राह्मणवादी वर्चस्व की राजनीति को आगे बढ़ाते हैं। खेल-कूद के नाम पर बच्चों के मन में नफरत बोने का यह सिलसिला आज भी बेरोकटोक जारी है।

राम पुनियानी

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