मुसलमानों के खिलाफ नफरत और हिंसा की सुनामी
मुसलमानों के खिलाफ नफरत और हिंसा आज भारत में किसी एक घटना या किसी एक राज्य तक सीमित नहीं रह गई है। यह एक बाढ़ या यूँ कहें कि सुनामी का रूप ले चुकी है, जो देश के कोने-कोने से सामने आ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘न्यू इंडिया’ में जिस तरह से मुसलमानों के खिलाफ ज़हर उगला जा रहा है, उसने हिंदू नौजवानों के एक बड़े हिस्से को नफरत से भरे ‘एजेंट’ में तब्दील कर दिया है।
एक घटना पर नज़र डालते ही उससे जुड़ी अनगिनत और घटनाएं सामने आने लगती हैं। यही वजह है कि यह सवाल टाला नहीं जा सकता—इस सबका ज़िम्मेदार कौन है? प्रधानमंत्री मोदी पूरी तरह चुप हैं, लेकिन उनकी पार्टी के नेता और ‘प्रिय नेता’ खुलेआम हिंसा का आह्वान कर रहे हैं।
शुवेंदु अधिकारी का खुला जनसंहार का आह्वान
पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के विधायक और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष शुवेंदु अधिकारी का बयान इस नफरती राजनीति की सबसे भयावह मिसाल है। उन्होंने खुले मंच से यह कहा कि जिस तरह से इज़राइल ने गाज़ा में ‘जनोसाइड’ किया, उसी तरह भारत में भी मुसलमानों का क़त्लेआम होना चाहिए। यह कोई सड़कछाप बयान नहीं है, बल्कि एक चुने हुए जनप्रतिनिधि का सीधा-सीधा हिंसा का आह्वान है।
हैरानी की बात यह है कि ऐसे बयानों पर न तो प्रधानमंत्री मोदी बोलते हैं, न ही सरकार कोई सख़्त कार्रवाई करती है। उलटे ऐसे नेताओं को आगे बढ़ाया जा रहा है, जिससे छोटे-छोटे कस्बों और शहरों में लिंचिंग, मारपीट और संविधान की धज्जियां उड़ाने का सिलसिला तेज़ होता जा रहा है।
बरेली की घटना: ‘लव जिहाद’ के नाम पर गुंडागर्दी
उत्तर प्रदेश के बरेली में सामने आई घटना ने इस नफरत की ज़मीनी सच्चाई को उजागर कर दिया। एक रेस्टोरेंट में नर्सिंग की छात्राएं जन्मदिन मना रही थीं। अचानक बजरंग दल के लोग वहाँ पहुँचते हैं और ‘लव जिहाद’ के नाम पर हंगामा शुरू कर देते हैं। भीड़ सीधे मारपीट पर उतर आती है।
इस पूरी घटना में सबसे ज़्यादा हिम्मत उस हिंदू लड़की ने दिखाई, जिसने साफ़ कहा कि पार्टी में हिंदू और मुसलमान दोनों थे, लेकिन केवल दो मुसलमान दोस्तों को निशाना बनाया गया। लड़की के अनुसार, भीड़ ने जमकर मारपीट की, बदतमीज़ी की और पुलिस तमाशबीन बनी रही।
योगी आदित्यनाथ की पुलिस का रवैया भी सवालों के घेरे में है। जिन बजरंग दल के लोगों के चेहरे वीडियो में साफ़ दिखाई देते हैं, उनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती। उलटे शुरुआत में कार्रवाई उन्हीं मुसलमान युवकों के खिलाफ की जाती है, जिन्हें ‘शांति भंग’ के नाम पर आरोपी बना दिया गया।
नफरती एजेंटों का बेख़ौफ़ तंत्र
यह इकलौती घटना नहीं है और न ही आख़िरी। देश भर से ऐसे वीडियो सामने आ रहे हैं, जिनमें नफरत फैलाने वाले लोग अपने अपराधों के वीडियो खुद ही सोशल मीडिया पर डालते हैं और खुद को ‘हीरो’ की तरह पेश करते हैं। यह सब इस बात का संकेत है कि इन्हें सत्ता का संरक्षण हासिल है।
प्रधानमंत्री मोदी के राज में यह कहना मुश्किल नहीं है कि नफरत की यह सुनामी किसके इशारे पर आई है। पूरी राजनीतिक लीडरशिप, पुलिस और प्रशासन की चुप्पी इस सच्चाई को और पुख़्ता करती है।
चुनाव, नफरत और ‘बनाना रिपब्लिक’
पश्चिम बंगाल में चुनाव नज़दीक हैं और नफरत ‘फुल टॉस’ पर खेली जा रही है। बीजेपी के एक और नेता कहते हैं कि जिन लोगों के नाम वोटर लिस्ट से कट गए हैं, उन्हें डिटेंशन सेंटर में डाल दिया जाएगा। यह बयान भारत को एक ‘बनाना रिपब्लिक’ में बदलने की मानसिकता को दिखाता है।
उत्तर प्रदेश के बस्ती से लेकर मुंबई और उत्तराखंड तक, खुलेआम मुसलमानों के ख़िलाफ़ जनसंहार के नारे लगाए जा रहे हैं। ऐसे नारे, जिन्हें दिखाना या दोहराना भी मुश्किल है। ‘हिंदुस्तान में रहना होगा तो जय श्रीराम कहना होगा’ जैसे नारे इस देश की लोकतांत्रिक आत्मा को खोखला कर रहे हैं।
रोज़मर्रा की ज़िंदगी में नफरत
नफरत अब सिर्फ़ रैलियों और भाषणों तक सीमित नहीं है। उत्तर प्रदेश में एक मज़दूर से पूछा जाता है कि उसे ‘हिंदू बस्ती’ में आने की इजाज़त किसने दी। बालासोर रेलवे स्टेशन से आई तस्वीरें बताती हैं कि अब क़ानून-व्यवस्था नफरती भीड़ के हाथ में है।
लखनऊ में एक मुस्लिम महिला को सिर्फ़ इसलिए सरेआम अपमानित किया जाता है क्योंकि उसने मज़ाक में प्रधानमंत्री का नाम ले लिया। भीड़ उसे ‘आतंकवादी’ कहकर घेर लेती है। सवाल यह है—क्या यही ‘न्यू इंडिया’ है?
तमाशबीन समाज और ख़ामोश सत्ता
हर लिंचिंग, हर हिंसक घटना पर समाज का एक बड़ा हिस्सा तमाशबीन बना रहता है। यह ख़ामोशी भी नफरत के समर्थन का ही एक रूप है। यह देश की सेहत के लिए बेहद ख़तरनाक है।
प्रधानमंत्री मोदी से सीधा सवाल है—इस नफरत भरे भारत का ज़िम्मेदार कौन है? क्या कभी आप अपनी चुप्पी तोड़ेंगे? क्या कभी इस ज़हर के खिलाफ़ खड़े होंगे? या फिर ‘न्यू इंडिया’ को यूँ ही नफरत की आग में झोंकते रहने दिया जाएगा?
मोदी जी, अब तो जिम्मेदारी लीजिए। कुछ तो बोलिए।
