November 14, 2025 8:26 pm
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मुसलमानों से नफ़रत RSS के DNA में है

पाकिस्तान से नफरत फैलाकर RSS कैसे भारत के मुसलमानों को निशाना बनाता है? जानिए डॉ. राम पुनियानी के इस बेबाक विश्लेषण में

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बोए नफ़रती बीज भी थे भारत-पाक विभाजन के मूल में

भारत में पाकिस्तान को लेकर एक संगठित और योजनाबद्ध नफरत कैसे गढ़ी गई? क्यों हर आतंकी घटना के बाद यह धारणा बनाई जाती है कि “भारतीय मुसलमान” पाकिस्तान समर्थक हैं? और आखिर इस प्रचार का मकसद क्या है? इन सभी सवालों का जवाब हमें आरएसएस (RSS) और उसकी विचारधारा में मिलता है। इन प्रश्नों को इतिहास और वर्तमान संदर्भों के माध्यम से समझ सकते हैं।

आतंकवाद और पड़ोसी देश

यह बात साफ़ है कि पाकिस्तान में आतंकवाद के अड्डे रहे हैं और भारत ने उस पर कार्रवाई भी की है। लेकिन क्या यह कारण पर्याप्त है कि पाकिस्तान को “शत्रु राष्ट्र” घोषित कर दिया जाए?
सच्चाई यह है कि पाकिस्तान के सभी लोग भारत से नफरत नहीं करते।
जो लोग वहां गए हैं, वे बताते हैं कि आम पाकिस्तानियों में भारत के लिए सम्मान और अपनापन है।

भारत-पाक नफरत: एक ऐतिहासिक एजेंडा

भारत-पाक विभाजन केवल भू-राजनीतिक घटना नहीं था, यह विचारधारा का युद्ध भी था।
जब भारतीय राष्ट्रवाद समावेशी आधार पर खड़ा हो रहा था, तब कुछ तबकों ने धार्मिक राष्ट्रवाद की पैरवी शुरू कर दी।

  • एक ओर मुस्लिम लीग ने “मुस्लिम राष्ट्र” की बात की
  • तो दूसरी ओर हिंदू महासभा और RSS ने “हिंदू राष्ट्र” की

वीर सावरकर ने पहली बार कहा कि भारत में दो राष्ट्र हैं—हिंदू और मुस्लिम।
आरएसएस ने इसी सोच को आगे बढ़ाते हुए कहा कि भारत अनादिकाल से हिंदू राष्ट्र है।

गांधी की हत्या और RSS की भूमिका

महात्मा गांधी ने कहा था:

“विभाजन मेरी लाश पर होगा।”

उन्होंने पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देना भी उचित समझा—क्योंकि वह संधि का हिस्सा था।
यही बात RSS समर्थक नाथूराम गोडसे को खटकी—और गांधी की हत्या कर दी गई।

गांधी की हत्या के बाद RSS को बैन कर दिया गया।

नफरत का आज का स्वरूप

आज RSS अपने हिंदू राष्ट्र एजेंडा के तहत पाकिस्तान के नाम पर:

  • देश के अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैला रहा है
  • क्रिकेट मैच के नाम पर मुसलमानों की देशभक्ति पर सवाल उठाता है
  • और पाकिस्तान को हर बार एक दुश्मन राष्ट्र की तरह पेश करता है

जबकि हकीकत में, भारत में रहने वाले मुसलमानों का पाकिस्तान से कोई लेना-देना नहीं है।

बीजेपी और RSS में फर्क?

इस पूरी नफरत की राजनीति से अलग, कुछ नेताओं ने भाईचारे का रास्ता अपनाया:

  • अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था:

“दोस्त बदले जा सकते हैं, पड़ोसी नहीं।”

  • एल. के. आडवाणी ने जिन्ना को सेकुलर कहा था—परंतु उन्हें पार्टी में हाशिये पर डाल दिया गया।
  • जसवंत सिंह ने पार्टीशन को लेकर एक उदार दृष्टिकोण पेश किया—तो उन्हें भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

भारत-पाक संबंध: विकल्प क्या है?

भारत और पाकिस्तान के बीच:

  • व्यापार हो सकता है
  • शिक्षा का आदान-प्रदान हो सकता है
  • स्वास्थ्य सेवा के समझौते हो सकते हैं

पर आरएसएस का एजेंडा यह सब नहीं चाहता। वह “पड़ोसी से नफरत” की आदत को एक स्थायी राजनीतिक औजार की तरह इस्तेमाल करना चाहता है।

निष्कर्ष: नफरत के एजेंडा को समझिए, उसका प्रतिरोध कीजिए

आज जो यह प्रचार किया जाता है कि भारतीय मुसलमान पाकिस्तान समर्थक हैं, वह केवल एक राजनीतिक झूठ है।

भारत के लोगों को यह समझना होगा कि पाकिस्तान की नीतियों से हमारा विरोध हो सकता है, लेकिन वहां के आम लोगों से नफरत फैलाना किसी भी दृष्टि से न्यायसंगत नहीं।

यह समय है कि हम इस नफरत की राजनीति का वैचारिक और संवैधानिक स्तर पर विरोध करें।
क्योंकि अगर नफरत को रोका नहीं गया, तो यह भारत को अंदर से कमजोर कर देगी।

राम पुनियानी

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