छात्र संघ ने छेड़ी प्रवेश परीक्षा की लड़ाई, अनशन जारी लेकिन VC ख़ामोश
🔴 क्या हो रहा है JNU में?
दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) एक बार फिर छात्र आंदोलन का केंद्र बनी हुई है।
26 जून से JNUSU (JNU Students’ Union) के सदस्य भूख हड़ताल पर बैठे हैं। उनकी मांगें सिर्फ शिक्षा से जुड़ी नहीं, बल्कि JNU के विचार और उसके उद्देश्य की रक्षा से भी जुड़ी हैं।
📌 छात्रों की प्रमुख मांगें क्या हैं?
📝 1. JNU की अपनी प्रवेश परीक्षा (JNU Entrance Exam) बहाल हो
पहली और सबसे बड़ी मांग है कि PhD में दाखिले के लिए JNU की अपनी प्रवेश परीक्षा बहाल की जाए।
- पहले JNU स्वतंत्र प्रवेश परीक्षा आयोजित करता था।
- लेकिन अब यह UGC-NET परीक्षा के जरिए NTA के हवाले कर दी गई है।
- छात्रों का कहना है कि NTA की विश्वसनीयता संदिग्ध है और यह गरीब, ग्रामीण, दलित, मुस्लिम, महिला छात्रों के लिए JNU के दरवाजे बंद करने का प्रयास है।
📊 2. 24 मई के रेफरेंडम का सम्मान हो
- 24 मई को JNU में जनमत संग्रह हुआ, जिसमें लगभग सभी छात्रों ने JNU की परीक्षा बहाली का समर्थन किया।
- शिक्षकों ने भी इस मांग का समर्थन किया, लेकिन प्रशासन और कुलपति बात करने को तैयार नहीं।
🗣️ JNU का आइडिया क्या है?
JNU का विचार हमेशा से रहा है –
“समानता का अधिकार, अवसर की समानता और वंचित वर्गों को उच्च शिक्षा में जगह देना।”
भूख हड़ताल कर रहे छात्र नेताओं का कहना है:
“JNU की परीक्षा सिर्फ एक एंट्रेंस टेस्ट नहीं थी, यह एक सपनों का दरवाजा थी, जहां गरीब, दलित, मुस्लिम, महिलाएं भी पढ़ने का सपना देख पाती थीं। इस परीक्षा को हटाकर JNU का विचार ही खत्म किया जा रहा है।”
⚠️ क्या कहता है प्रशासन?
प्रशासन का तर्क है कि NTA की परीक्षा राष्ट्रीय मानक तय करती है।
लेकिन छात्र और शिक्षक दोनों मानते हैं कि:
- JNU की परीक्षा लोकतांत्रिक और समावेशी थी।
- NTA का सिस्टम सामाजिक विविधता को खत्म करेगा।
✊ आंदोलन का संदेश
JNU का यह आंदोलन सिर्फ परीक्षा के लिए नहीं, बल्कि शिक्षा के लोकतांत्रिक अधिकार की रक्षा का आंदोलन बन गया है।
छात्रों का कहना है:
“हम चुप नहीं बैठेंगे। यह सिर्फ एक एंट्रेंस एग्जाम नहीं था, यह बराबरी की उम्मीद थी। इसे खत्म कर JNU के विचार पर हमला किया जा रहा है।”
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