क्रिसमस के पहले ईसाई समुदाय पर हमले: मोदी राज में नफरत की खुली छूट
क्रिसमस आया है।
लेकिन इस देश में शांति, प्रेम और करुणा का त्योहार मनाने से पहले ही भगवा ब्रिगेड सड़कों पर उतर आई है।
चर्चों के अंदर घुसकर धमकी देना, प्रार्थना कर रही महिलाओं से बदसलूकी करना, गरीब टोपी बेचने वालों को सरेआम डराना—
ये कोई अलग-थलग घटनाएँ नहीं हैं, बल्कि मोदी राज का सुनियोजित सच हैं।
हम बेबाक भाषा पर जो तस्वीरें दिखा रहे हैं, वे देश के लोकतांत्रिक और संवैधानिक चरित्र पर सीधा सवाल खड़ा करती हैं।
चर्च के अंदर गुंडागर्दी, नेत्रहीन महिला से बदसलूकी
मध्य प्रदेश से सामने आई तस्वीरें दिल दहला देने वाली हैं।
भारतीय जनता पार्टी की एक नेता खुद भगवा उपद्रवियों को लीड करते हुए चर्च के अंदर पहुँचती हैं और वहाँ प्रार्थना में बैठी एक नेत्रहीन महिला को निशाना बनाया जाता है।
सवाल पूछे जाते हैं—
“किसकी परमिशन से यहाँ बैठे हो?”
“प्रिस्ट यहाँ नहीं चलेगा।”
“ग्रंथ का नाम बताओ।”
यह भाषा सिर्फ असभ्य नहीं है, यह सांप्रदायिक आतंक की भाषा है।
यह फ्रिंज एलिमेंट नहीं है
अक्सर कहा जाता है कि ये ‘फ्रिंज एलिमेंट’ हैं।
लेकिन सच्चाई यह है कि ये वही लोग हैं जिनके साथ
- प्रधानमंत्री मोदी कैमरे के सामने चर्च जाकर मोमबत्ती जलाते हैं
- RSS प्रमुख क्रिसमस सेलिब्रेशन की तस्वीरें ट्वीट करते हैं
और उसी वक्त
VHP और RSS से जुड़े संगठन चर्चों पर हमले करते हैं।
ये दो चेहरे नहीं हैं—
यह एक ही सत्ता का दोहरा चरित्र है।
केरल सरकार को बयान जारी करना पड़ा
स्थिति इतनी भयावह हो चुकी है कि केरल सरकार को आधिकारिक बयान जारी करना पड़ा—
कोई भी स्कूल, कोई भी संस्थान क्रिसमस सेलिब्रेशन कैंसल नहीं करेगा।
सोचिए, एक लोकतांत्रिक देश में सरकार को यह कहना पड़ रहा है क्योंकि
RSS और उससे जुड़े संगठनों का आतंक फैला हुआ है।
विश्व हिंदू परिषद का खुला ऐलान
RSS से जुड़ा विश्व हिंदू परिषद खुलकर कहता है—
“देश में हिंदुओं को क्रिसमस नहीं मनाना चाहिए।”
तो फिर सवाल सीधा है—
अगर किसी और धर्म का त्योहार मनाना अपराध है,
तो यह देश किस दिशा में जा रहा है?
हरिद्वार और ओडिशा से भी वही तस्वीर
हरिद्वार में गंगा किनारे होने वाला आयोजन
भगवा उपद्रवियों के दबाव में कैंसल कराया जाता है।
ओडिशा में
सड़क किनारे टोपी बेच रहा एक गरीब व्यक्ति—
जो भारत का नागरिक है—
उसे भगवा कपड़े पहने लोग धमकाते हैं—
“किसकी इजाज़त से बेच रहे हो, यहाँ से भागो।”
यही है आज का भारत।
2014 के बाद कोई भी त्योहार सुरक्षित नहीं
यह सिर्फ क्रिसमस का मामला नहीं है।
ईद, होली, दिवाली—
2014 के बाद से कोई भी त्योहार
RSS–BJP की नफरती राजनीति से सुरक्षित नहीं रहा।
त्योहार अब प्रेम और भाईचारे के नहीं,
राजनीतिक ध्रुवीकरण के औज़ार बना दिए गए हैं।
कैथोलिक बिशप्स और ‘गार्डन-गार्डन’ राजनीति
हम उन कैथोलिक बिशप्स से भी सवाल पूछते हैं
जो सत्ता के साथ फोटो खिंचवाकर
यह संदेश देने की कोशिश करते हैं कि
“All is well.”
जब उसी वक्त
चर्चों पर हमले हो रहे हैं, प्रार्थनाएँ रोकी जा रही हैं।
बेबाक भाषा की साफ़ बात
RSS, VHP और BJP की राजनीति
- न मुसलमानों के पक्ष में है
- न ईसाइयों के पक्ष में
- न शांति प्रिय हिंदुओं के पक्ष में
यह राजनीति नफरत की फैक्टरी है
जो हर त्योहार को जलाने पर आमादा है।
सवाल आपसे है—
क्या आप भी इस नफरती ब्रिगेड का हिस्सा बनना चाहते हैं
जो क्रिसमस को देश से “डिलीट” करने पर तुली है?
