December 25, 2025 3:22 am
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नये साल के एडवांस तोहफ़े में रेल किराया बढ़ा

मोदी सरकार ने एक साल में दूसरी बार रेल किराया बढ़ाया। हादसे, देरी, बदहाल स्टेशन और सुरक्षा संकट के बीच ‘आधुनिकीकरण’ के दावे कितने खोखले हैं—पढ़िए पूरी रिपोर्ट।

आम यात्रियों पर बोझ, ‘आधुनिकीकरण’ के नाम पर खोखले दावे

देश के रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के नेतृत्व वाली मोदी सरकार ने एक बार फिर रेल यात्रियों की जेब पर सीधा हमला किया है। रेल किराए में बढ़ोतरी का नया फैसला 26 दिसंबर से लागू होने जा रहा है। यह एक साल के भीतर दूसरी बार रेल किराया बढ़ाने का फैसला है।

नए नियम के तहत 215 किलोमीटर से अधिक दूरी की यात्रा करने वाले यात्रियों को अब हर किलोमीटर के लिए 1 से 2 पैसे अतिरिक्त चुकाने होंगे। इससे पहले इसी साल 1 जुलाई को भी किराया बढ़ाया गया था। रेलवे का दावा है कि इस बढ़ोतरी से उसे सालाना करीब 600 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आमदनी होगी, जिसे ‘रेलवे के आधुनिकीकरण’ में खर्च किया जाएगा।

लेकिन सवाल यह है कि क्या ज़मीनी हकीकत रेलवे के इन दावों से मेल खाती है?

न समय पर ट्रेन, न सुरक्षा, न बुनियादी सुविधाएं

देश का आम रेल यात्री आज भी उन्हीं पुरानी समस्याओं से जूझ रहा है।

  • ट्रेनें लगातार लेट चल रही हैं
  • दुर्घटनाओं पर कोई ठोस रोक नहीं लग पा रही
  • स्टेशनों पर साफ़-सफाई बदहाल है
  • शौचालय गंदे हैं
  • सुरक्षा व्यवस्था कमजोर है
  • जनरल कोचों की भारी कमी है

महंगाई पहले से आसमान छू रही है और ऐसे समय में किराया बढ़ाना आम यात्रियों पर एक और अतिरिक्त बोझ डालने जैसा है। रेलवे के ‘आधुनिकीकरण’ के दावे यात्रियों को उनकी रोज़मर्रा की यात्रा में कहीं दिखाई नहीं देते।

कांग्रेस का हमला: बिना जवाबदेही के मनमाने फैसले

कांग्रेस नेता अजय कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार एक के बाद एक ऐसे फैसले ले रही है, जिनसे निचले और मध्यम वर्ग की जेब पर लगातार हमला हो रहा है।

कांग्रेस के मुताबिक 2013 से अब तक रेलवे द्वारा जारी सर्कुलरों के ज़रिये किराए में कुल 107 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हो चुकी है।

खास बात यह है कि अब अलग से रेल बजट भी खत्म कर दिया गया है। यानी न संसद में रेलवे पर अलग से चर्चा होती है, न जवाबदेही तय होती है। कभी भी कोई आदेश जारी कर दिया जाता है और यात्रियों को उसे मानने के लिए मजबूर कर दिया जाता है। यह सब ऐसे वक्त में हो रहा है जब महज़ एक महीने बाद फरवरी में आम बजट आने वाला है।

खड़गे के आंकड़े: प्रचार ज्यादा, काम नदारद

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस मुद्दे पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक विस्तृत पोस्ट करते हुए सरकार को कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ठोस काम करने के बजाय खोखले प्रचार में व्यस्त है, जिसकी कीमत रेलवे और यात्री दोनों चुका रहे हैं।

खड़गे ने कई अहम आंकड़े भी गिनाए—

  • NCRB रिपोर्ट (2014–2023) के अनुसार रेल हादसों में 2.18 लाख लोगों की मौत
  • भारी प्रचार के बावजूद ‘कवच’ सुरक्षा प्रणाली 3% से भी कम रेल मार्गों पर लागू
  • पूरे रेलवे नेटवर्क में यह कवरेज 1% से भी कम
  • रेलवे में 3 लाख से अधिक पद खाली, युवाओं को स्थायी नियुक्ति नहीं
  • ठेका प्रथा लगातार बढ़ रही है
  • लोको पायलटों को बुनियादी आराम तक नहीं मिल पा रहा

‘अमृत भारत योजना’ और वंदे भारत की सच्चाई

संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट के मुताबिक ‘अमृत भारत स्टेशन योजना’ के तहत 453 स्टेशनों के अपग्रेड का दावा किया गया था, लेकिन अब तक सिर्फ एक स्टेशन ही अपग्रेड हो सका है।

वहीं वंदे भारत ट्रेन को लेकर 160 किमी प्रति घंटे की रफ्तार का प्रचार किया जाता है, जबकि हकीकत में इसकी औसत रफ्तार सिर्फ 76 किमी प्रति घंटा है।

इसके अलावा, वरिष्ठ नागरिकों को मिलने वाली रेल रियायतें पहले ही खत्म कर दी गई हैं, जिनसे सरकार अब तक 8,913 करोड़ रुपये वसूल चुकी है।

असली सवाल: पैसा जा कहां रहा है?

अगर आधुनिकीकरण इतना ही तेज़ी से हो रहा है, तो—

  • हादसे क्यों नहीं रुक रहे?
  • स्टेशन क्यों बदहाल हैं?
  • सुरक्षा प्रणालियां क्यों अधूरी हैं?
  • कर्मचारियों की भारी कमी क्यों बनी हुई है?

इन हालात में किराया बढ़ाने का फैसला जनता से जवाबदेही छीने जाने और रेलवे को मुनाफे की मशीन में बदलने की राजनीति को उजागर करता है।

सवाल साफ है—
क्या आम जनता पर यह अतिरिक्त बोझ डालना ही रेलवे सुधार का एकमात्र रास्ता बचा है?

मुकुल सरल

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