प्रशांत भूषण कहते हैं, मोदी भरोसेमंद नेता नहीं, वह तानाशाह हैं और communal भी
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और सार्वजनिक बुद्धिजीवी प्रशांत भूषण पिछले तीन दशकों से सत्ता से सीधा सवाल पूछने के लिए जाने जाते हैं। वे अदालतों में पारदर्शिता, न्यायपालिका की जवाबदेही और चुनावी व्यवस्था की शुचिता पर लगातार मुखर रहे हैं।
इस लंबे इंटरव्यू में उन्होंने SIR (Special Intensive Revision), चुनाव आयोग, न्यायपालिका, हिंदू राष्ट्र और प्रधानमंत्री मोदी पर विस्तार से बात की।
SIR: “पहली बार पूरे देश में नागरिकता साबित करने की ज़िम्मेदारी जनता पर डाली गई”
प्रशांत भूषण कहते हैं:
“SIR के ज़रिये कहा जा रहा है कि हर व्यक्ति साबित करे कि वह नागरिक है। यह आज़ादी के बाद पहली बार हो रहा है। यह संविधान के विपरीत है।”
उनका दावा है कि SIR की प्रक्रिया और टाइमलाइन, दोनों ही असामान्य हैं:
- कम समय
- भारी दबाव
- बूथ लेवल अधिकारियों की मौतें
- बड़े पैमाने पर इस्तीफे
वे याद दिलाते हैं:
“Representation of People Act के फॉर्म-6 में साफ लिखा है कि नागरिकता सिर्फ self-declaration से साबित होती है। कोई दस्तावेज़ देने की ज़रूरत ही नहीं है। फिर अचानक हर नागरिक को prove करने को कह देना कहाँ से वैध है?”
मंशा पर सवाल: “मशीन-रीडेबल वोटर लिस्ट क्यों नहीं?”
भूषण बताते हैं:
- सुप्रीम कोर्ट को आदेश देना पड़ा तब बिहार के 65 लाख कटे नाम सामने आए।
- चुनाव आयोग कहता है मशीन-रीडेबल लिस्ट से प्राइवेसी भंग हो जाएगी।
भूषण का कटाक्ष:
“यह हास्यास्पद है। असली उद्देश्य है कि किसी को पता ही न चले कि किसका नाम काटा गया, किसके फर्जी नाम जोड़े गए।”
उनके अनुसार, टाइमिंग और इरादा, दोनों ही संदेह पैदा करते हैं:
“चुनाव आयोग पहले कभी इतनी संदेह की स्थिति में नहीं था।”
“SIR के ज़रिये वोटिंग राइट छीनने की कोशिश”
जब पूछा गया कि SIR का बड़ा लक्ष्य क्या है, भूषण सीधे कहते हैं:
“लक्ष्य है अल्पसंख्यकों को सेकेंड क्लास सिटिजन बनाना। उनसे वोटिंग राइट छीनना।”
वे BJP की पुरानी मांग याद दिलाते हैं:
- हिंदू राष्ट्र
- मुस्लिम और क्रिश्चियन को सेकेंड क्लास नागरिक
भूषण बताते हैं:
“पहले सोचा संविधान बदल देंगे। फिर समझ आया कि सेक्युलरिज्म, इक्वालिटी बेसिक स्ट्रक्चर है, बदल नहीं सकते।”
फिर NRC आया, लेकिन:
“असम में सुप्रीम कोर्ट मॉनीटर कर रहा था। ज़्यादातर बाहर किए गए लोग हिंदू निकले। योजना उलट गई।”
उसके बाद CAA:
“जो हिंदू बाहर हो गए, उन्हें refugee बताकर citizenship देने का प्रस्ताव। लेकिन वे तो भारतीय नागरिक थे, पलायन नहीं।”
अब SIR:
“SIR के जरिये उन्हीं लोगों को नागरिकता पर शक के आधार पर बाहर करना आसान है।”
भूषण का आरोप:
“यह केंद्रीकृत है। डिजिटल सिग्नेचर का उपयोग कर ERO के नाम से नोटिस भेज दिए जाते हैं।”
“बिहार तो ट्रायल था, असली निशाना पश्चिम बंगाल है”
भूषण बताते हैं:
“कल ही किसी ने बताया कि बिहार सिर्फ पायलट था। असली SIR का निशाना बंगाल है।”
क्या चुनाव जीतने का नया टूल है?
“हाँ। चुनौतियां कोर्ट में हैं। देखते हैं सुप्रीम कोर्ट क्या कहता है।”
Judiciary पर भरोसा?
CJI DY Chandrachud ने कहा था कि वे आम आदमी का भरोसा वापस लाना चाहते हैं।
भूषण का जवाब:
“आ सकता है, अगर ईमानदारी और निष्पक्षता से फैसले हों। लेकिन आज भरोसा बहुत कम हो चुका है।”
कारण:
- आम आदमी वकील नहीं कर सकता
- तारीखें बढ़ती रहती हैं
- फैसले देर से होते हैं
- कई फैसले गलत
- कुछ जज समझदार नहीं
- कुछ दबाव में
- कुछ कम्यूनल
“लोगों के मन में डर है कि न्यायपालिका की आलोचना की तो Contempt लगेगा। इसलिए बहस नहीं होती।”
“जज कौन ईमानदार है, कौन सरकार का है — सबको पता है”
वे कहते हैं:
“कोर्ट में नियमित काम करने वाले वकील समझते हैं कि कौन जज निष्पक्ष है, कौन सरकार के कब्जे में। कौन समझदार है, कौन नहीं।”
यह न्याय के लिए खतरनाक है।
“Justice डिलीवर होना मुश्किल है।”
AI न्यायपालिका का भविष्य?
भूषण का साहसिक दावा:
“3-4 साल में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ज्यादातर मामलों का बेहतर, निष्पक्ष फैसला कर सकती है। मैं दो लेख लिख चुका हूँ इस पर।”
चंद्रचूड़ और गवई की विरासत?
भूषण स्पष्ट:
“कोई विरासत बहुत अच्छी नहीं रही।”
एक ही बड़ा अपवाद:
- electoral bonds पर फैसला
लेकिन:
- appointment controversies
- Ayodhya judgement से पहले मंदिर जाकर प्रार्थना का बयान
- सरकार से स्वतंत्र छवि नहीं
“Modi जी elected dictator हैं”
आख़िर में, जब पूछा गया कि PM Modi को कैसे देखते हैं, भूषण कहते हैं:
“मैं उन्हें credible leader नहीं मानता। उनके भाषण में झूठ, communal comments, दर्जनों समस्याएं।”
चुनाव?
“Free and fair election नहीं रह गए। जब एक पार्टी के पास पचास गुना पैसा हो, पूरा तंत्र control में हो, तो निष्पक्ष चुनाव कैसे हो सकते हैं?”
बिहारी चुनाव का उदाहरण:
“सरकारी पैसे से दस-दस हजार रुपए की घूस, बूथ ड्यूटी उन्हीं को दे दी जिन्हें पैसा दिया। फिर निष्पक्ष चुनाव कैसे?”
“Hindu Rashtra de-facto बन चुका है”
मोहन भागवत के बयान पर:
“घोषणा की ज़रूरत नहीं। जब आप अल्पसंख्यकों को दबा रहे हों, mob lynching होने दें, bulldozer चलें और न्यायपालिका हस्तक्षेप न करे — तब de-facto हिंदू राष्ट्र बन ही गया।”
फिर जोड़ते हैं:
“केवल वोटिंग राइट पूरी तरह नहीं छीना। SIR इसी का साधन है।”
उम्मीद?
भूषण का निष्कर्ष:
“Public opinion न्यायपालिका को भी influence करता है। सही बात पर आवाज उठनी चाहिए। खटखटाना पड़ेगा।”
