रोहिंग्या और बांग्लादेशियों के बारे में खबरों ने मचाई सनसनी
क्या आपने कभी सोचा है कि कोई इंसान सिर्फ इसलिए अपने देश से भगा दिया जाए क्योंकि वह “दूसरा” है? और फिर जब वह किसी और देश में शरण ले तो वहाँ भी उसके साथ जानवरों से बदतर व्यवहार हो?
यह कहानी है उन 120 से अधिक शरणार्थियों की — जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं — जिन्हें भारत की राजधानी दिल्ली या गुजरात से गिरफ्तार कर, समुद्र में ले जाकर फेंक दिया गया। कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं, कोई सार्वजनिक घोषणा नहीं। केवल “जाओ, अपने वतन वापस” कहकर उन्हें लहरों के हवाले कर देना — इस उम्मीद में कि शायद वे तैरकर बच जाएं।
संयुक्त राष्ट्र की प्रतिक्रिया और जांच
यह मामला अब केवल भारत का नहीं रह गया है। संयुक्त राष्ट्र ने इस पर आधिकारिक जांच शुरू कर दी है। उन्होंने भारत सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है कि आखिर कैसे और क्यों रोहिंग्या शरणार्थियों को जान जोखिम में डालकर समुद्र में छोड़ा गया।
संयुक्त राष्ट्र ने इसे “inhuman and life-threatening treatment” बताया है — यानी अमानवीय और जीवन के लिए घातक व्यवहार।
दो साहसिक रिपोर्टिंग का ज़िक्र जरूरी है
- मख्तूब इंडिया नामक पोर्टल ने इस खबर को सबसे पहले ब्रेक किया।
- इसके बाद Scroll.in ने मामले की गहराई से जांच कर, फोटोज़ और साक्ष्य के साथ विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की।
Scroll की रिपोर्ट में बताया गया कि:
- 40 से अधिक रोहिंग्या नागरिकों को दिल्ली से पकड़ कर अंडमान-निकोबार ले जाया गया।
- फिर नेवी के जहाज़ में इंटरनैशनल बॉर्डर तक ले जाकर उन्हें लाइफ जैकेट पहनाकर समुद्र में छोड़ दिया गया।
- इनमें से कई लोगों के पास संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी शरणार्थी कार्ड थे।
सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका
इस पूरी घटना को लेकर कोलिन गोंज़ाल्विस जैसे वरिष्ठ वकील ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की।
लेकिन अदालत ने कहा कि इस पर पर्याप्त प्रमाण नहीं हैं और सुनवाई जुलाई तक टाल दी गई।
कल्पना कीजिए — अगर याचिका में वर्णित बातें सच हैं, तो यह केवल नीतियों की विफलता नहीं, बल्कि हमारी नैतिकता का पतन है।
दूसरा मामला: गुजरात से सुंदरबन तक
Scroll की ही एक और रिपोर्ट से सामने आया कि:
- गुजरात से सैकड़ों बांग्लादेशी नागरिकों को पकड़ा गया।
- इनमें से कम से कम 78 लोगों को सुंदरबन क्षेत्र में समंदर में फेंक दिया गया।
- बांग्लादेश सरकार ने पुष्टि की कि इनमें से कुछ भारतीय नागरिक भी थे!
यह कोई अपवाद नहीं, बल्कि एक पैटर्न बनता जा रहा है।
क्या ये केवल ‘गैरकानूनी प्रवासी’ हैं — या इंसान भी?
इन दोनों घटनाओं में एक बात समान है:
पीड़ित अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय से हैं — रोहिंग्या हों या बांग्लादेशी।
क्या हमारे सिस्टम में मुसलमानों को लेकर इतनी गहरी नफरत बैठ चुकी है कि उन्हें इंसान की बजाय एक “समस्या” के रूप में देखा जा रहा है? सोशल मीडिया और प्रशासन की बयानबाज़ी इस तरफ़ इशारा करती है।
हम और अमेरिका — तुलना का सच
जब अमेरिका ने भारत के गैरकानूनी नागरिकों को बेड़ियों में भेजा, तो भारत सरकार ने आपत्ति जताई थी। लेकिन अब हम खुद शरणार्थियों को समुद्र में फेंक रहे हैं — बिना सुनवाई, बिना अपील, बिना इंसानियत।
क्या यही है “वसुधैव कुटुम्बकम”?
भारत की छवि और अंतरराष्ट्रीय कानून
भारत लगातार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खुद को शरण देने वाला, सहिष्णु और मानवतावादी देश बताता है। लेकिन अगर हम यूएन-मान्यता प्राप्त शरणार्थियों को समुद्र में फेंकते हैं, तो यह केवल भारत की छवि को धूमिल नहीं करता — यह हमें “नाइटमेर” यानी भयावह सपने की स्थिति में ला देता है।
अंत में — एक सवाल हम सब से
क्या हम केवल इसलिए चुप हैं क्योंकि पीड़ित “दूसरे” हैं?
क्या हम उस दिन का इंतज़ार कर रहे हैं जब यह क्रूरता हमारे दरवाज़े तक आ पहुंचे?
शरणार्थी होना जुर्म नहीं है — लेकिन किसी को उसकी शरण में मार डालना ज़रूर है।