October 8, 2025 2:11 am
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मोदी-नीतीश का खजाना दांव, विपक्ष आक्रामक

बिहार में चुनावी बुग़ल फूंकते ही मोदी-नीतीश ने महिला वोटरों पर कैश दांव खेला, विपक्ष ने चुनाव आयोग पर उठाए सवाल।

बिहार की रणभूमि में घुसपैठिया बनाम बेरोज़गारी मुद्दा बनाने की ज़मीन तैयार

6 अक्टूबर को आखिरकार चुनाव आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा कर दी — दो चरणों में मतदान 6 और 11 नवंबर को होगा, जबकि मतगणना 14 नवंबर को। दिलचस्प बात यह है कि आयोग ने 5 अक्टूबर को भी प्रेस कॉन्फ़्रेंस की थी, लेकिन तब चुनाव तिथियों का ऐलान टाल दिया गया। विपक्ष का आरोप है कि आयोग ने इंतज़ार किया ताकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आख़िरी दौर की “घोषणाओं” के ज़रिये वोटरों को लुभा सकें।

महिला मतदाताओं पर सीधा ‘कैश’ दांव

चुनाव से ठीक पहले बिहार की राजनीति में पैसों की बाढ़ सी आ गई।
26 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार की 75 लाख महिलाओं के खाते में ₹10-10 हज़ार की राशि ट्रांसफर की। इसके बाद 3 अक्टूबर को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 25 लाख महिलाओं के खाते में ₹10-10 हज़ार डाले। और फिर चुनाव घोषणा के दिन, यानी 6 अक्टूबर की सुबह, नीतीश कुमार ने 21 लाख और महिलाओं के खाते में वही राशि ट्रांसफर की।
कुल मिलाकर 1 करोड़ 21 लाख महिला मतदाताओं को सीधा लाभ पहुंचाया गया — यानी लगभग हर तीसरी महिला मतदाता को।

विपक्ष का आरोप है कि यह सीधा “वोट खरीदने” की कोशिश है।
नीतीश कुमार ने भी इस दौरान कहा कि “ध्यान रखना, चुनाव आ रहा है” — एक बयान जिसे विपक्ष चुनावी आचार संहिता का खुला उल्लंघन बता रहा है।

SIR और ‘घुसपैठिया’ का खेल

इस बार का चुनाव केवल घोषणाओं और कैश ट्रांसफर तक सीमित नहीं है।
“Special Intensive Revision (SIR)” के नाम पर बिहार में मतदाता सूची का बड़े पैमाने पर पुनरीक्षण हुआ, जिसमें 67 लाख वोटर नाम हटाए गए।
लेकिन जब पत्रकारों ने चुनाव आयोग से पूछा कि इन हटाए गए वोटरों में “घुसपैठियों” की संख्या कितनी है, तो कोई आंकड़ा नहीं दिया गया।
विपक्ष का कहना है कि यह जानबूझकर किया गया है ताकि चुनाव प्रचार में बीजेपी और एनडीए “घुसपैठिया आया, घुसपैठिया आया” का राग अलापते रहें।

फिलहाल बिहार में 7 करोड़ 43 लाख मतदाता हैं, और नाम जुड़वाने की प्रक्रिया अभी जारी है। यानी चुनाव आयोग ने अभी भी संशोधन का “स्पेस” खुला रखा है — जिसे विपक्ष राजनीतिक हथकंडा बता रहा है।

बिहार चुनाव: पांच बड़े मुद्दे

  1. बेरोजगारी – हर घर में युवाओं का पलायन जारी है।
  2. पलायन – राज्य से बाहर रोजगार की तलाश में बड़ी आबादी।
  3. पेपर लीक – सरकारी नौकरियों की परीक्षा प्रणाली पर सवाल।
  4. भ्रष्टाचार – पुलों से लेकर इमारतों तक के गिरने की घटनाएँ रोज़ सामने।
  5. कानून-व्यवस्था – अपराध और महिला सुरक्षा पर गंभीर सवाल।

विपक्ष का दावा है कि ये चुनावी मुद्दे एनडीए के ख़िलाफ़ भारी पड़ेंगे, लेकिन बीजेपी अब भी “जंगलराज” के पुराने नैरेटिव को भुनाने की कोशिश में है — जबकि पिछले 20 सालों से नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री हैं।

तेजस्वी यादव का पलटवार

आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने चुनावी रणभूमि में खुद को “मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार” घोषित कर दिया है।
उन्होंने कहा — “जब तेजस्वी मुख्यमंत्री बनेगा, तब बिहार में कोई बेरोज़गार नहीं रहेगा।”
वहीं कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने भी चुनाव आयोग और केंद्र पर निशाना साधते हुए पूछा — “67 लाख वोट काटे गए, लेकिन एक भी घुसपैठिये का आंकड़ा क्यों नहीं बताया गया?”

निष्कर्ष

इस बार का बिहार चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन की लड़ाई नहीं, बल्कि संस्थागत निष्पक्षता, आर्थिक प्रलोभनों और लोकतांत्रिक पारदर्शिता की भी परीक्षा है।
एक ओर प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार “विकास और स्थिरता” का दावा लेकर मैदान में हैं, तो दूसरी ओर तेजस्वी यादव और विपक्ष “रोज़गार, भ्रष्टाचार और SIR की सच्चाई” को मुद्दा बना रहे हैं।
चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर उठते सवाल इस चुनाव को वाकई में “Mother of All Elections” बना चुके हैं।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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