October 8, 2025 2:10 am
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नया गोडसे और नफरत का संगठित इकोसिस्टम

सुप्रीम कोर्ट के CJI बी.आर. गवई पर जूता फेंकने की घटना ने न्यायपालिका और लोकतंत्र की नींव को हिला दिया है। यह सिर्फ एक अपराध नहीं, बल्कि नफरत और वैचारिक हिंसा का नया चेहरा है।

दलित CJI पर जूता फेंकने वाले को हीरो बना रहे गोडसे को पूजने वाले

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बी.आर. गवई पर जूता फेंकने की घटना ने न केवल न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाई है, बल्कि यह भी दिखाया है कि देश के भीतर नफरत का एक संगठित इकोसिस्टम किस हद तक फैल चुका है। इस घटना के बाद जिस व्यक्ति — अधिवक्ता राकेश किशोर — ने यह हरकत की, वह आज मीडिया का “हीरो” बना बैठा है। एनआई जैसे सरकारी एजेंसी तक उसके घर पहुंचकर लंबा इंटरव्यू कर रही है। सवाल यह है कि एक अपराधी को इतना नैरेटिव-स्पेस कौन देता है?

नया “गोडसे” और दो रुपये की ट्रोल आर्मी

यह कोई इत्तफाक नहीं कि इस अधिवक्ता की विचारधारा वही है जिसे देश ने कभी नाथूराम गोडसे के रूप में देखा था। गोडसे ने गांधी की हत्या की थी, और आज के “नए गोडसे” न्याय की आत्मा पर हमला कर रहे हैं। यह वही मानसिकता है जो हिंसा को धर्म की रक्षा के नाम पर महिमामंडित करती है।
राकेश किशोर ने खुलेआम कहा कि “परमात्मा ने मुझे कहा कि जाकर सुप्रीम कोर्ट को लज्जित करो।” इस बयान को भी एक विचारधारात्मक ढाल की तरह पेश किया जा रहा है — जैसे अपराध नहीं, कोई धार्मिक कर्तव्य निभाया गया हो।

चिंता की बात यह है कि सोशल मीडिया के संगठित ट्रोल नेटवर्क और यूट्यूब चैनल इस व्यक्ति को “सनातनी हीरो” बनाकर पेश कर रहे हैं। वही लोग जो कभी प्रधानमंत्री की मां के अपमान पर आंसू बहा रहे थे, आज एक दलित CJI पर हुए हमले पर तालियां बजा रहे हैं।

सत्ता, पुलिस और मीडिया की चुप्पी

दिल्ली पुलिस ने इस अपराधी को जेल भेजने के बजाय उसका जूता तक वापस कर दिया। एनआई उसका इंटरव्यू लेकर नैरेटिव सेट कर रही है। यह सब दिखाता है कि सत्ता-तंत्र किस तरह नफरत के अपराधियों को वैचारिक संरक्षण दे रहा है।
यह वही सिस्टम है जिसने पहले भी नफरती प्रचारकों और बलात्कार के दोषियों को “संत” और “गुरु” बनाकर जनता के सामने रखा। अब वही प्रयोग सुप्रीम कोर्ट और न्यायपालिका के खिलाफ हो रहा है।

दलित CJI और नफरत का चेहरा

यह पूरी घटना तब और गंभीर हो जाती है जब हम याद करते हैं कि CJI गवई देश के पहले दलित मुख्य न्यायाधीश हैं। उनके प्रति यह हमला केवल एक व्यक्ति पर नहीं, बल्कि उस सामाजिक न्याय की अवधारणा पर हमला है जिसे संविधान ने गढ़ा है।
यह कोई संयोग नहीं कि जिन “ग्रेट सनातनियों” को हिंदू धर्म के अपमान का डर सताता है, वे एक दलित जज पर हुए हमले पर चुप हैं — या उसका महिमामंडन कर रहे हैं।

गोडसे से राकेश किशोर तक: हिंसा की वैचारिकी

आज जो “नया गोडसे” कहा जा रहा है, वह दरअसल उस लंबे वैचारिक सिलसिले की कड़ी है जिसमें संविधान, न्यायपालिका और लोकतंत्र को “विघ्न” माना जाता है। गोडसे ने कहा था कि गांधी ने हिंदू राष्ट्र के रास्ते में रुकावट डाली, और आज के ये लोग कह रहे हैं कि CJI गवई “हिंदू विरोधी” हैं।
यह फर्क सिर्फ औजारों का है — तब पिस्तौल थी, अब सोशल मीडिया और जूता है।

संविधान पर हमला, लोकतंत्र पर संकट

यह हमला उस विचार पर है जिसने भारत को एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र बनाया। गवई पर जूता फेंकने वाला व्यक्ति कहता है कि वह “गांधीवादी” है, लेकिन खुलेआम हिंसा की पैरवी करता है। यह भाषा वही है जो आज के राजनीतिक नैरेटिव में सामान्य बना दी गई है — विरोध मत करो, नहीं तो “शत्रु” कहलाओ।

इस नफरती ब्रिगेड को न केवल सोशल मीडिया बल्कि सत्ता की चुप्पी से भी बल मिल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद एक समय कहा था — “यह पूरे देश का अपमान है।” लेकिन अब जब अपमान न्याय की कुर्सी पर बैठी दलित आत्मा का हुआ है, तो मौन गहरा है।

अंत में

आज जब कोई पत्रकार संविधान की बात करता है, तो ट्रोल आर्मी उस पर झपट पड़ती है। लेकिन एक अधिवक्ता खुलेआम हिंसा का आह्वान करता है, तो उसे “देव प्रेरित” बता दिया जाता है। यही है मौजूदा भारत की सबसे बड़ी विडंबना — नफरत अब नया धर्म बन चुकी है और गोडसे उसका नया देवता।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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