‘I Love Muhammad’ बना गुनाह, यूपी से उत्तराखंड तक मुक़दमे, गिरफ़्तारी, बुलडोज़र एक्शन
उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ “आई लव मुहम्मद” का विवाद अब कई राज्यों में फैल चुका है। कानपुर से उठी यह बहस आज उन्नाव, बरेली, लखनऊ, काशीपुर (उत्तराखंड) से लेकर गुजरात और महाराष्ट्र तक पहुँच चुकी है। सवाल यह है कि जहां “जय श्रीराम” कहना राष्ट्रगौरव और हिंदुत्व की पहचान माना जाता है, वहीं “आई लव मुहम्मद” कहना अपराध, साम्प्रदायिकता और दंगा भड़काने वाला कृत्य क्यों करार दिया जा रहा है?
विवाद की शुरुआत
4 सितंबर को कानपुर के मोहल्ला सैयद नगर में “आई लव मुहम्मद” का लाइट बोर्ड लगाया गया। हिंदुत्ववादी संगठनों ने इसे “भावनाएं आहत करने वाला” बताकर विरोध शुरू कर दिया। पुलिस ने बोर्ड हटवा दिया। अगले ही दिन रावतपुर इलाके में जुलूस और बैनर लगाने को लेकर टकराव हुआ और पुलिस ने 10 सितंबर को एफआईआर दर्ज कर दी।
पुलिस का पक्ष
कानपुर के अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त कपिल देव सिंह ने कहा कि यह कार्रवाई केवल “आई लव मुहम्मद” लिखे बैनर पर नहीं हुई, बल्कि बारावफात के पारंपरिक तौर-तरीकों से हटकर “नई प्रथाओं” और बिना अनुमति के जुलूस निकालने पर की गई है। पुलिस CCTV और वीडियो फुटेज की जांच कर रही है।
विवाद का विस्तार
यह मामला सिर्फ कानपुर तक सीमित नहीं रहा। धीरे-धीरे यह उन्नाव, पीलीभीत, कौशांबी, भदोही, बरेली और लखनऊ तक फैल गया। कई जगह पुलिस और भीड़ के बीच झड़पें हुईं। विरोध-प्रदर्शनों और गिरफ्तारियों का सिलसिला शुरू हो गया।
यूपी से निकलकर विवाद उत्तराखंड के काशीपुर पहुँचा। अलीखान क्षेत्र में “आई लव मुहम्मद” जुलूस को लेकर हिंसा भड़की और 400–500 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई। गिरफ्तारियां जारी हैं।
सवाल सिर्फ नारों का नहीं
इस विवाद ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है—क्या धार्मिक नारों के मामले में सत्ता और प्रशासन का रवैया दोहरा है?
- “जय श्रीराम” कहना राष्ट्रवाद
- “गर्व से कहो हम हिंदू हैं” कहना गौरव
लेकिन “आई लव मुहम्मद” कहना अचानक अपराध कैसे बन जाता है?
असल मुद्दा क्या है?
विवाद इस बात का भी है कि इद-ए-मिलादुन्नबी (बारावफात) पर मुस्लिम समुदाय परंपरागत रूप से जुलूस, दुआ और दान करते हैं। लेकिन इस बार “आई लव मुहम्मद” पोस्टरों ने माहौल बदल दिया। इसे लेकर हिंदुत्ववादी संगठन आक्रोशित हुए और पूरे मामले को साम्प्रदायिक रंग दे दिया गया।
निष्कर्ष
“आई लव मुहम्मद” विवाद केवल एक नारे का मुद्दा नहीं है। यह भारत में धार्मिक पहचान, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राजनीतिक नफरत के बढ़ते असर का आईना है। सवाल यह है कि क्या प्रशासन सभी धर्मों और नारों को बराबरी से देखेगा, या यह भेदभाव और गहराता जाएगा?