October 6, 2025 10:13 am
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मोदी का ‘GST बचत उत्सव’: जो दिखता है वह सच नहीं — जूठा नैरेटिव और मीडिया का रोल

जीएसटी कटौती को सेलिब्रेशन में बदलना—सरकार का संदेश, मीडिया का रोल और आम जनता पर असर। बेबाक भाषा का विश्लेषण।

जीएसटी कटौती को सेलिब्रेशन में बदलने की कला — मोदी नेतृत्व, भक्त-मीडिया और जनता के सामने ड्रामा

नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार ने GST में की गई कुछ दरों में कटौती को बड़े उत्सव के रूप में पेश कर दिया है — लेकिन सवाल यह है कि यह असलियत है या जूठा नरेटिव? सरकार-समर्थित मीडिया की स्तुति, दुकानदारों को फूल देने जैसी दूरगामी इमेज बिल्डिंग और राजनैतिक माहौल में इस ‘बचत उत्सव’ का किस उद्देश्य से प्रदर्शन किया जा रहा है — यह वही सवाल है जिसे बेबाक भाषा उठाती है।

मोदी-शैली का नरेटिव बिल्ड-अप अब एक कला बन चुका है। छह-सात साल में लागू किए गए GST (जो अब लोग ‘गब्बर सिंग टेक्स’ कहते हैं) से होने वाली उपभोक्ता लागत और सरकारी राजस्व दोनों की कथित कहानी को बदल कर पेश किया जा रहा है। वही नेता जिनके समय में जीएसटी की दरें बढ़ीं और कई जरूरी वस्तुएँ महँगी हुईं, आज ‘कटौती’ करके उसे सेलिब्रेशन में बदल देते हैं — और मीडिया उस जूठे नरेटिव को जितनी भक्ति से परोसता है, वह भी देखे जाने लायक है।

सरकार ने लोगों से कहा कि 375 वस्तुओं पर दरें कम की गई हैं — पर ध्यान देने वाली बात यह है कि पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस जैसी बुनियादी जरूरतें इस सूची में नहीं हैं। यानी आम आदमी की जेब पर असर कम होने की जो तस्वीर दिखाई जा रही है, वह अधूरी है। ऐसे में यह स्पष्ट हो जाता है कि राजनैतिक संदेश और वास्तविकता के बीच बड़ा अंतर है।

दूसरी तरफ, पंडालों में नेता का दिव्य रूप दिखाकर, भक्तों और समर्थक-मीडिया की मदद से ‘मोदी-रोडशो’ जैसा दृश्य रचा जा रहा है — जहाँ हर पैलेट में नेता विराजमान दिखते हैं और कंपनियाँ ‘थैंक यू मोदी’ कह रही हैं। यह तमाशा सिर्फ चुनावी समय में ही नहीं बल्कि छवियों और प्रतीकों के प्रयोग से बड़े पैमाने पर राजनैतिक फ़ायदे के लिए रचा जा रहा है।

योगी आदित्यनाथ जैसे मुख्यमंत्री इसे ‘उत्सव’ बता कर जनता को सामूहिक खुशियों में शामिल करने की अपील करते हैं, पर जो असली सवाल है वह यह कि क्या ये कटौती चुनावी रणनीति से परे है? क्या यह असल आर्थिक राहत दे रही है या केवल दिखावे की चाशनी है?

उसी समय, नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री, विदेशी गाडियाँ और ग्लॉस परेड के बीच ‘स्वदेशी’ का ढोल पीटना एक विरोधाभास है — और लोग इसे पकड़ रहे हैं। जो लोग इसे ताकतवर इमेज बिल्डिंग मानते हैं, वे यह भी समझते हैं कि पहले बड़ी रकम वसूल कर, बाद में छोटे-छोटे कटौती करके जनता को मनाने की परंपरा राजनीतिक रणनीति का हिस्सा रही है।

निष्कर्ष

GST कटौती का ‘उत्सव’ देखने में चमकदार है, पर उसकी वास्तविकता और उसके असर का जायज़ा लेना ज़रूरी है। मीडिया-प्रसारण और राजनीतिक शो-रन का जादू जनता को भ्रमित कर सकता है — इसलिए तथ्य-आधारित जाना, बुनियादी घरेलू वस्तुओं पर असर देखना और पारदर्शिता माँगना ही नागरिकों का असल काम होना चाहिए। मोधी का जूठा नरेटिव भले ही प्रभावशाली हो, पर नागरिकों को सड़कों पर रहने वाले वसूलों और रोज़मर्रा की उपभोक्ता कीमतों की असल तस्वीर याद रखनी होगी।

कॉल-टू-एक्शन

यदि आप भी इस GST-उत्सव के असली असर के बारे में स्थानीय दुकानदारों या पड़ोसियों से जानकारी जुटा कर भेजना चाहें तो बेबाग भाषा पर अपने रिकॉर्ड/वीडियो/तस्वीरें भेजें — हम ज़मीनी सच्चाई दिखाएँगे।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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