चुनावों और लोकतांत्रिक संस्थाओं में पारदर्शिता के लिए लड़ी आजीवन लड़ाई
भारत में चुनावी सुधार और पारदर्शिता की लड़ाई के प्रतीक बने ADR (Association for Democratic Reforms) के संस्थापक सदस्य जगदीप छोकर का 81 वर्ष की आयु में निधन हो गया। हार्ट अटैक से उनका देहांत हुआ और उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार उनका शरीर दान कर दिया गया।
1944 में जन्मे जगदीप छोकर ने अपने जीवन को लोकतंत्र की जड़ों को मज़बूत करने और चुनावी व्यवस्था को पारदर्शी बनाने के लिए समर्पित किया। चाहे मामला चुनावी बॉन्ड्स जैसे भ्रष्टाचार का हो या फिर मौजूदा समय में बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिविज़न (SIR) प्रक्रिया का, वे हमेशा अदालत और जनता के बीच लोकतंत्र की असल आवाज़ बने रहे।
“वन पर्सन, वन वोट, वन वैल्यू” की लड़ाई
जगदीप छोकर ने अपने जीवनभर इस सिद्धांत को बचाने की कोशिश की कि हर नागरिक का वोट बराबर महत्व रखे। उन्होंने बार-बार चेताया कि अगर वोटिंग सूची से बड़ी संख्या में वैध मतदाता बाहर कर दिए गए, तो यह लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा होगा।
28 जुलाई 2025 को बेबाक भाषा को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने साफ शब्दों में कहा था:
“बिहार में यह प्रक्रिया एक पायलट प्रोजेक्ट की तरह चल रही है। अगर यहां सफल हुआ तो पूरे देश में लागू होगा और करोड़ों मतदाता वोट के अधिकार से वंचित हो जाएंगे। यह लोकतंत्र पर सीधा हमला है।”
सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग पर सवाल
छोकर ने इस मामले में चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट दोनों की भूमिका पर चिंता जताई थी। उन्होंने कहा था कि:
- चुनाव आयोग या तो इस समस्या को समझ नहीं रहा या समझना नहीं चाहता।
- सुप्रीम कोर्ट में भी ऐसा ही माहौल दिख रहा है जहां “न्याय में देरी, न्याय से इनकार” वाली स्थिति बन रही है।
- “फेट अकॉम्प्ली” (fait accompli) की स्थिति बन सकती है, यानी जब तक अदालत फैसला लेगी, तब तक चुनाव आयोग चुनाव की अधिसूचना जारी कर देगा और पूरा मामला खत्म हो जाएगा।
“वोटर्स नॉट ट्रेसेबल” की नई चाल
छोकर ने खास तौर पर उस नई श्रेणी की आलोचना की थी जिसे चुनाव आयोग ने शुरू किया है – “Voters Not Traceable”।
उन्होंने बताया था कि लाखों वैध मतदाताओं को अचानक इस श्रेणी में डालकर लापता कर दिया जा रहा है। इससे मतदाता सूची से बड़े पैमाने पर नाम गायब हो सकते हैं और लोकतांत्रिक प्रक्रिया कमजोर होगी।
ADR और लोकतांत्रिक विरासत
ADR और जगदीप छोकर का नाम भारतीय लोकतंत्र में हमेशा एक साथ लिया जाएगा। उन्होंने दिखाया कि न्यायपालिका और चुनाव आयोग पर सिर्फ भरोसा करने के बजाय नागरिक समाज को भी लगातार निगरानी रखनी चाहिए और सवाल पूछने चाहिए।
उनकी लड़ाई सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं थी, बल्कि उस सोच की थी कि लोकतंत्र बिना पारदर्शिता और जवाबदेही के अधूरा है।
निष्कर्ष
जगदीप छोकर का निधन लोकतांत्रिक सुधारों की दुनिया में एक बड़ी क्षति है। उनकी बेबाकी, स्पष्ट दृष्टि और लोकतंत्र के प्रति अटूट समर्पण आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बने रहेंगे।
आज जब मतदाता सूची में गड़बड़ियों और चुनावी पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं, तब उनका संदेश और भी प्रासंगिक हो जाता है –
“एक व्यक्ति, एक वोट, एक मूल्य। यही लोकतंत्र की असली नींव है।”