October 6, 2025 4:31 pm
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अगर अश्विनी नहीं वाकई फ़िरोज होता तो क्या फिर भी मीडिया चुप रहता?

मुंबई धमाका साजिश में आरोपी अश्वनी कुमार निकला, लेकिन मीडिया चुप है। सोचिए, अगर यही आरोपी मुसलमान होता तो कैसी सनसनी मचती। पढ़िए नफरत फैलाने वाले इकोसिस्टम की पड़ताल।

मुंबई धमाका साजिश: मीडिया और नफरत के एको-सिस्टम पर बड़ा सवाल

मुंबई को दहलाने की धमकी देने वाला शख्स, जिसने पुलिस को संदेश भेजकर दावा किया कि 34 ह्यूमन बम (सुसाइड बॉम्बर) शहर में सक्रिय हैं और गणेश विसर्जन के दौरान एक करोड़ लोगों की जान खतरे में है—वह कोई फिरोज नहीं, बल्कि अश्वनी कुमार निकला।

यह खुलासा जितना चौंकाने वाला है, उससे कहीं बड़ा सवाल खड़ा करता है—अगर यही शख्स मुसलमान होता, तो मीडिया, टीवी चैनल, अख़बार और सोशल मीडिया किस तरह का माहौल बना रहे होते?

मुसलमान होता तो होता कोहराम

कल्पना कीजिए, अगर यह व्यक्ति वास्तव में कोई “फिरोज” होता, तो मीडिया और राजनीतिक गलियारों में चौबीस घंटे कोहराम मचा होता। हेडलाइन से लेकर बहस तक, हर जगह मुसलमानों को बदनाम करने की मुहिम तेज़ हो जाती। लेकिन चूँकि आरोपी हिंदू निकला, मामला खामोशी से दबा दिया गया।

न तो बड़े चैनलों पर इस खबर की चर्चा हुई, न ही व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी और आईटी सेल्स ने इसे हवा दी। आरोपी का नाम तक छुपाने की कोशिश की गई, ताकि “हिंदू आतंकवादी” जैसी छवि न बने।

नफरत का यह एको-सिस्टम

यह कोई पहली घटना नहीं है। भारत में ऐसा एक एको-सिस्टम लगातार खड़ा किया जा रहा है, जिसमें मुसलमानों को हर हाल में आतंकी या अपराधी के रूप में पेश किया जाता है।

  • अश्वनी कुमार ने भी इसी नफरती मानसिकता के तहत अपने दोस्त फिरोज को फँसाने के लिए इतनी बड़ी साज़िश रची।
  • मुंबई पुलिस, एटीएस और यूपी पुलिस को घंटों अलर्ट रहना पड़ा, रेड अलर्ट जारी हुआ, जांच में भारी संसाधन खपाए गए।
  • लेकिन गिरफ्तारी के बाद जैसे ही सच सामने आया कि आरोपी हिंदू है, मामला धीरे-धीरे ग़ायब कर दिया गया।

रायचूर का पत्थरबाज़ी वीडियो और सच

ठीक उसी दौरान कर्नाटक के रायचूर का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें गणेश विसर्जन के जुलूस पर पत्थर फेंके जाने का दावा किया गया। व्हाट्सऐप और सोशल मीडिया पर इसे “मुसलमानों की करतूत” बताकर नफरत फैलाने की कोशिश हुई।

लेकिन फैक्ट-चेक (Alt News, मोहम्मद जुबैर और प्रतीक सिन्हा) ने साफ किया कि यह दो हिंदू गुटों के बीच का संघर्ष था। यानी हकीकत और वायरल नैरेटिव में ज़मीन-आसमान का फर्क।

एयरपोर्ट पर झूठा आरोप: तुषार का मामला

गुरुग्राम के एक युवक तुषार ने CISF के एक मुस्लिम जवान पर झूठा आरोप लगाया कि उसने उसकी Apple घड़ी चुरा ली। जांच में आरोप गलत निकला, लेकिन इस घटना को भी मुसलमानों को बदनाम करने के लिए उछाला गया।

असली खतरा: नफरत का फैलता ज़हर

इन घटनाओं से साफ होता है कि सबसे बड़ा खतरा सिर्फ़ किसी अश्वनी कुमार जैसे व्यक्ति की हरकत नहीं है, बल्कि उस राजनीतिक-वैचारिक माहौल का है जो लगातार मुसलमानों के खिलाफ जहर उगल रहा है।

यह माहौल ही है जो किसी को भी “मुसलमान = आतंकी” मानने के लिए प्रेरित करता है। कभी बीफ के नाम पर, कभी झूठे आरोपों के नाम पर, और कभी बम धमाकों की फर्जी कहानियों के नाम पर।

निष्कर्ष

मुंबई धमाका साजिश ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि असली खतरा व्यक्ति से ज़्यादा उस एको-सिस्टम से है, जो झूठ और नफरत को पनपाता है। अगर समाज को बचाना है, तो सबसे पहले इसी नफरती इकोसिस्टम को बेनकाब और खत्म करना होगा।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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