October 6, 2025 4:31 pm
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चीन में मोदी क्या मिले शी+पुतिन से, नए वर्ल्ड ऑर्डर की हवाबाज़ी हुई शुरू

Modi meets Xi Jinping & Vladimir Putin at SCO Summit. Godi Media hails new trio, but diplomacy shows U-turns amid Trump tariffs & global pressures.

गोदी मीडिया का नया “ट्रायोका” — डिप्लोमेसी की परेड या यू-टर्न?

मंच पर तस्वीर है—मोदी, शी जिनपिंग और पुतिन की। और मंच के पीछे ताल ठोकता गोदी मीडिया, जिसे मिल गया है एक नया ट्रायोका—एक टिकड़ी, जो विश्व व्यवस्था को बदल रही है, ऐसा दावा किया जा रहा है।
लेकिन सवाल यह है कि क्या सचमुच भारत की विदेश नीति इतनी सशक्त है, या फिर यह केवल गोधी मीडिया का feel good शो है, जिससे भक्तों के सॉफ़्टवेयर अपडेट होते रहें?

गोदी मीडिया की हेडलाइन्स: धमाल और ढोंग

“टैरिफ वाली दादागिरी पर दोस्ती भारी,”
“चीन में बजा मोदी का डंका,”
“मोदी ने डराया, बड़ा मजा आया,”
“मोदी-पुतिन की दोस्ती का डंग, ट्रम्प डंग!”

यही वह मीडिया परेड है जिसमें असल मुद्दे गुम हो जाते हैं। गोधी मीडिया एक अंतरराष्ट्रीय शिखर सम्मेलन को राहुल गांधी पर पलटवार करने का हथियार बना देता है। क्या यही विदेश नीति का मापदंड है?

ट्रायोका यानी टिकड़ी: रूस की गाड़ी से दिल्ली की राजनीति तक

रूस में “ट्रायोका” उस गाड़ी को कहते हैं जिसे तीन घोड़े खींचते हैं।
गोदी मीडिया इसे मोदी-शी-पुतिन की “विश्व विजयी टिकड़ी” बताता है।
लेकिन याद रखिए—इसी चीन को ऑपरेशन पहलगांव के बाद दुश्मन बताया गया था क्योंकि वह पाकिस्तान को मिसाइलें सपोर्ट कर रहा था।
इसी तुर्की को मोदी सरकार ने “सुरक्षा खतरा” कहकर समझौते तोड़े थे।
आज वही तुर्की, वही चीन, SCO के मंच पर गले मिलता नज़र आता है।
तो यह “ट्रायोका” दरअसल अंतरराष्ट्रीय दबाव का यूटर्न है, कोई स्थायी रणनीति नहीं।

अमेरिका का टैरिफ और अम्बानी की मुश्किलें

ट्रम्प का टैरिफ डंडा भारत की कमर तोड़ रहा है—50% टैक्स से निर्यात की हालत खराब है।
इसी के बीच मोदी की SCO मौजूदगी को “ट्रंप पर कूटनीतिक प्रहार” बताया जा रहा है।
लेकिन सच्चाई यह है कि Ambani diplomacy भी अटक गई—अमेरिका में 12 सितंबर को होने वाला नीता अम्बानी का भव्य आयोजन कैंसल करना पड़ा।
यानी ग्लोबल पॉलिटिक्स के बीच बिज़नेस और पर्सनल शो-ऑफ भी चोट खा रहा है।

SCO का बयान: यूटर्न या मजबूरी?

SCO की बैठक में जारी बयान में—

  • पहलगाम आतंकी हमले का विरोध है, लेकिन पाकिस्तान का नाम गायब है।
  • इज़रायल के हमले की भी निंदा की गई, जिस पर भारत अब तक चुप था।

यह साफ़ करता है कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति नफरत की राजनीति से नहीं चलती।
भारत को मजबूरी में वही करना पड़ता है, जिससे पहले वह किनारा कर रहा था।

निष्कर्ष

गोदी मीडिया चाहे इसे विश्व गुरु टिकड़ी बताए, सच्चाई यही है कि मोदी की विदेश नीति बार-बार यू-टर्न ले रही है।
मीडिया की हेडलाइन्स और भक्तों की तालियों के बीच असली सवाल दबा रह जाता है—क्या भारत सचमुच अमेरिका की दादागिरी को चुनौती दे रहा है, या केवल PR diplomacy खेल रहा है?

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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