मोदी सरकार ने इस समय क्यों चला ये दांव? विपक्षी सरकारें निशाने पर
संसद का मानसून सत्र अपने अंतिम दौर में था। विपक्ष पहले ही सरकार पर “वोट चोर” और “गद्दी चोर” के नारे लगाकर घेराबंदी कर रहा था। बिहार की ऐतिहासिक वोटर अधिकार यात्रा से लेकर दिल्ली की संसद की सीढ़ियों तक एक ही बात गूंज रही थी — “लोकतंत्र बचाओ”। इसी बीच रात आठ बजे अमित शाह की तरफ़ से नोटिफिकेशन आता है कि सरकार 130वां संविधान संशोधन बिल पेश करने जा रही है।
यह बिल कहता है कि यदि किसी मुख्यमंत्री, मंत्री या प्रधानमंत्री पर गंभीर आपराधिक आरोपों में गिरफ्तारी होती है और वह 30 दिन तक हिरासत में रहते हैं, तो उन्हें अपने पद से हटना होगा।
पहली नज़र में यह कानून सख्त और भ्रष्टाचार विरोधी लगता है, लेकिन असली सवाल यह है कि इसे इस वक्त क्यों लाया गया और इसका निशाना कौन है?
क्यों है यह बिल विवादों में?
- समय पर सवाल
- अगस्त 2025 में जब विपक्ष मोदी सरकार के खिलाफ़ सड़क से संसद तक आक्रामक है, तभी यह बिल पेश करना बताता है कि असल मकसद विपक्ष को डराना है।
- संसद में विपक्ष ने सवाल उठाया — “अगर यह कानून ईमानदारी के लिए है तो बीजेपी में शामिल होने के बाद नेताओं के सारे केस क्यों बंद हो जाते हैं?”
- विपक्षी सरकारों पर सीधा हमला
- देश में बची विपक्षी सरकारें — पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, पंजाब, हिमाचल, केरल।
- अब किसी भी सीएम या मंत्री पर ED/CBI केस डालकर 30 दिन में सरकार गिराना आसान होगा।
- एजेंसियों का हथियार
- सुप्रीम कोर्ट ने ED को पहले ही फटकार लगाई है कि उनके 5000 मामलों में सिर्फ़ 5% सज़ा होती है।
- CBI को “पिंजरे का तोता” कहा गया है। अब इन्हीं एजेंसियों के आधार पर चुनी हुई सरकारों को गिराने का रास्ता खोल दिया गया है।
विपक्ष का गुस्सा
- प्रियंका गांधी: “यह बिल लोकतंत्र खत्म करने का हथियार है। सरकार जानबूझकर विपक्ष को खत्म करना चाहती है।”
- अभिषेक मनु सिंघवी: “यह कानून विपक्षी सरकारों को अस्थिर करने का नया औजार है, सत्तापक्ष को कभी चोट नहीं पहुंचेगी।”
- Dipankar Bhattacharya (CPIML): “यह डेकोरियन, खतरनाक और संघीय ढांचे पर सीधा हमला है। चुने हुए प्रतिनिधियों को हटाना जनता के वोट का अपमान है।”
- साकेत गोखले: “जब वोट चोरी उजागर हो रही है, मोदी-शाह तानाशाही थोपने के नए हथकंडे खोज रहे हैं।”
सड़क से संसद तक माहौल
संसद के भीतर विपक्ष के नारे –
“वोट चोर, गद्दी चोर”
“लोकतंत्र बचाओ”
बिहार की सड़कों पर INDIA गठबंधन की यात्रा में भी यही आवाज़ –
“लोकतंत्र पर हमला बर्दाश्त नहीं होगा”
यह सिर्फ़ कांग्रेस या लेफ़्ट का मुद्दा नहीं, बल्कि आम आदमी पार्टी तक ने विपक्ष के सुर में सुर मिलाया।
पुराने उदाहरणों से डर क्यों बढ़ा?
- हेमंत सोरेन (झारखंड) – गिरफ्तारी के बाद इस्तीफ़ा, फिर सरकार को अस्थिर करना।
- अरविंद केजरीवाल (दिल्ली) – जेल में रहते हुए भी सीएम पद पर बने रहे। अब यह बिल साफ़ तौर पर इसी “मिसाल” को टारगेट करता है।
- सत्येंद्र जैन – दो साल जेल में रहे, चार साल केस चला और अंत में अदालत ने कहा “सबूत नहीं मिला”।
इन उदाहरणों से विपक्ष को साफ़ दिख रहा है कि केंद्र सरकार चाहती है किसी भी विपक्षी नेता को 30 दिन में सत्ता से हटाया जा सके।
संघीय ढांचे पर हमला
भारतीय संविधान भारत को “Union of States” मानता है। राज्यों की सरकारें स्वतंत्र हैं। लेकिन इस बिल के ज़रिए राज्यपालों (जो केंद्र के एजेंट माने जाते हैं) को ताक़त दी जाएगी कि वे चुने हुए मुख्यमंत्री और मंत्रियों को हटा सकें।
महुआ मोइत्रा का कहना है –
“लोकसभा और विधानसभा ही चुने हुए नेताओं को हटा सकती है। लेकिन यह बिल चुने हुए प्रतिनिधियों को केंद्र की कठपुतली बनाने का प्रयास है।”
राजनीतिक समीकरण और साज़िशें
- बिहार चुनाव – विपक्ष का कहना है कि यह बिल नीतीश कुमार को खत्म करने और बिहार में नई बाज़ी खेलने के लिए लाया गया।
- योगी और फडणवीस फैक्टर – कयास यह भी हैं कि यूपी और महाराष्ट्र की राजनीति पर भी इसका असर पड़ेगा।
- नायडू की भूमिका – वाइस प्रेसिडेंट चुनाव में नायडू किसे समर्थन देंगे, इस बिल के ज़रिए दबाव बनाने की कोशिश बताई जा रही है।
लोकतंत्र की अंतिम घंटी?
वामदलों ने इसे साफ़ तौर पर “फासिस्ट मूव” बताया है। उनका कहना है कि यह बिल न सिर्फ़ विपक्ष बल्कि लोकतंत्र की हत्या है।
- अब चुनी हुई सरकारों को गिराना पहले से आसान हो जाएगा।
- जनता के वोट की ताक़त सीधे-सीधे केंद्र की एजेंसियों और राज्यपालों के हाथ में जाएगी।
- यह संविधान के संघीय ढांचे और लोकतांत्रिक संतुलन को खत्म कर देगा।
निष्कर्ष
मोदी सरकार का 130वां संविधान संशोधन बिल सिर्फ़ एक “भ्रष्टाचार विरोधी” कदम नहीं है, बल्कि लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है। जब संसद और सड़कों से विपक्ष सरकार की जवाबदेही मांग रहा है, तब इस बिल के ज़रिए विपक्ष को चुप कराने की कोशिश हो रही है।
यह सिर्फ़ कांग्रेस बनाम बीजेपी का मामला नहीं, बल्कि भारत के लोकतांत्रिक भविष्य का सवाल है।