असम में हेमंत बिस्वा सरमा की नफ़रती राजनीति का उभरता चेहरा
असम के मुख्यमंत्री हेमन्त बिस्वा सरमा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राह पर चलते हुए एक ओर कॉर्पोरेट दोस्तों को खुलेआम ज़मीनें बाँट रहे हैं, तो दूसरी ओर स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता को कुचलने की कोशिश कर रहे हैं। हाल ही में सरमा सरकार ने आदिवासी बहुल क्षेत्र में 3000 बीघा ज़मीन एक सीमेंट कंपनी को देने का फ़ैसला लिया, जिसे स्थानीय लोग “कॉर्पोरेट लूट” बता रहे हैं। अदालत तक को कहना पड़ा कि इतनी बड़ी ज़मीन एक कंपनी को मिलना इस बात का संकेत है कि वह कितनी ताक़तवर है।
3000 बीघा ज़मीन और कॉर्पोरेट को गिफ़्ट
सरमा सरकार ने इसे “बंजर ज़मीन” बताकर कंपनी को देने की दलील दी, लेकिन सवाल यह है कि आदिवासी इलाकों में इतनी बड़ी ज़मीन कॉर्पोरेट को क्यों और कैसे दी गई? कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने इसे सीधा-सीधा मोदी सरकार के “मित्र पूंजीवाद” से जोड़ा और आरोप लगाया कि यह सब अडानी को फ़ायदा पहुँचाने के लिए किया जा रहा है। हालाँकि अडानी ने इस कंपनी से कोई संबंध न होने की बात कही है।
लेकिन मामला सिर्फ़ अडानी-अंबानी तक सीमित नहीं है। असल मुद्दा यह है कि जनजातीय ज़मीन को कॉर्पोरेट के हाथ सौंपकर सरकार किस तरह की विकास नीति लागू कर रही है।
स्वतंत्र मीडिया पर हमला – ‘द वायर’ निशाने पर
इसी के साथ असम पुलिस लगातार स्वतंत्र मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ‘द वायर’ और उसके संपादक सिद्धार्थ वर्धराजन व वरिष्ठ पत्रकार करण थापर पर देशद्रोह के मामले दर्ज कर रही है।
- पहली एफआईआर पर जब सुप्रीम कोर्ट ने राहत दी, तो तुरंत दूसरी दर्ज कर दी गई।
- आरोप है कि ऑपरेशन सिंदूर से जुड़ी रिपोर्टिंग में असम पुलिस ने इसे “देशद्रोह” मान लिया।
- पत्रकार संगठनों जैसे एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने इसका कड़ा विरोध किया और कहा कि यह प्रेस की स्वतंत्रता का गला घोंटने की कोशिश है।
भारत में प्रेस की स्थिति
विश्व स्तर पर भारत की प्रेस फ्रीडम रैंकिंग 180 देशों में 151वीं है। इसका ताज़ा उदाहरण असम पुलिस द्वारा ‘द वायर’ पर लगातार की जा रही कार्रवाई है।
दोहरे मानक
हेमन्त बिस्वा सरमा एक ओर “डेमोग्राफ़िक चेंज” और “अवैध कब्ज़ों” के नाम पर नफ़रती भाषण देते हैं, वहीं दूसरी ओर आदिवासी ज़मीनों को सस्ते में कॉर्पोरेट कंपनियों को सौंप रहे हैं। सवाल उठता है – क्या सरकार का विकास मॉडल सिर्फ़ कॉर्पोरेट को लाभ पहुँचाने के लिए है और मीडिया की स्वतंत्र आवाज़ को दबाने के लिए?